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राजस्थान में सचिन पायलट ले सकते है 20 मई से पहले शपथ, गहलोत को मिला रवानगी का संदेश

महेश झालानी
29 April 2022 9:05 AM GMT
राजस्थान में सचिन पायलट ले सकते है 20 मई से पहले शपथ, गहलोत को मिला रवानगी का संदेश
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कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय ले लिया है । पार्टी द्वारा 13 मई से आयोजित तीन दिवसीय चिंतन शिविर के बाद अशोक गहलोत की कभी भी विदाई हो सकती है । इस निर्णय से गहलोत भी वाकिफ है । इसलिए आजकल उनके बयान और भाषण में सचिन पायलट की बगावत का उल्लेख अवश्य होता है । इसके अलावा आंतरिक पीड़ा स्पस्ट रूप से देखने को मिलती है ।

ऐसा माना जा रहा है कि गहलोत के स्थान पर सचिन पायलट की ताजपोशी होगी । करीब पौने दो साल रहेंगे पायलट के पास बतौर मुख्यमंत्री । इस दौरान उन्होंने प्रदेश की जनता से जो पीसीसी चीफ के नाते वादे किए थे, उनको तेजी से पूरा किया जाएगा । यदि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनते है तो गहलोत का क्या होगा, राजनेताओ और अफसरशाही में यह जबदस्त चर्चा है ।

यह तो तय है कि सचिन की तरह गहलोत भी राजस्थान छोड़कर जाने वाले नही है । गहलोत की मंशा अभी दस साल तक राजनीति से सन्यास लेने की कतई नही है । ऐसे में उनके पास दिल्ली जाने के अलावा कोई विकल्प नही है । अगर ये दोनों ही राजस्थान में रहते है तो मारधाड़ पहले की तरह बरकरार रहेगी ।

सचिन पायलट के पास फिलहाल खोने को कुछ नही है । जो कुछ भी था, वह छूट चुका है । इनके पास केवल विधायकी बची है जिसे कोई छीन नही सकता है । उधर गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत के पुनर्वास हेतु चिंतित है । वे चाहते है कि उनके रहते हुए वैभव विधायक बन जाए । गहलोत के कुर्सी से उतरने के बाद कोई वैभव को पार्षद भी नही बनाने वाला है ।

सोनिया से हुई बातचीत में सचिन ने साफ शब्दों में कह दिया कि यदि आप पहले की तरह 15-20 सीट लाने की ख्वाहिशमंद है तो जो चल रहा है, उसे चलने दो । अगरचे राजस्थान में कांग्रेस की सरकार पुनः बने, इसके लिए मुख्यमंत्री का बदलना ही एकमात्र विकल्प है । इनके सीएम रहते पार्टी को कितनी सीट मिली, दोहराने की आवश्यकता नही है ।

ज्ञात हुआ है कि सचिन की बात को न केवल सोनिया ने अहमियत दी बल्कि राहुल और प्रियंका के भी समर्थन किया । पार्टी नेतृत्व यह तो मानता है कि गहलोत को संगठन चलाने में तो महारत अवश्य हासिल है, लेकिन सरकार चलाने में वे फिसड्डी है । आज भ्रस्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और अराजकता चरम पर है ।

बातचीत के दौरान सोनिया को अवगत कराया गया कि कार्यकर्ताओ को मिलने वाले पदों पर अफसर काबिज होगये है और कार्यकर्ता यतीम की तरह धक्के खाने को विवश है । क्या ऐसे उत्साहहीन कार्यकर्ताओ के भरोसे फिर से राजस्थान में सरकार आ सकती है ? सोनिया के सामने सचिन ने पूरी बेबाकी से यह सवाल रखा ।

सत्ता को चलाने के लिए निश्चय ही कुछ समझौते करने पड़ते है । लेकिन राजस्थान में अपनी कुर्सी बचाने के लिए सीएम ने पूरा सरकारी खजाना खोल दिया है । पार्टी के समर्पित विधायकों के बजाय निर्दलीय और बीएसपी के विधायक मलाई चाटने में सक्रिय है । एक सचिन पायलट को परास्त करने के लिए सरकारी खजाने को निर्ममता से बर्बाद करना महापाप है । जनता तबाही के मंजर को विवश होकर देख रही है । शीघ्र ही इस तबाही को रोका नही गया तो जनता पार्टी को पूरी तरह तबाह कर देगी । जनता जब अपनी पर उतर आती है तो बड़े बड़े दरख़्त उखड़ जाते है । बड़ी नफासत और तर्क के साथ सचिन ने सोनिया के सामने तफसील से अपनी बात रखी ।

उधर दिल्ली से इशारा मिलने के बाद गहलोत ने बोरिया बिस्तर समेटने प्रारम्भ कर दिए है । जब भी किसी मंत्री की विदाई होने वाली होती है, उससे पहले वह अपने कार्यालय और निवास से अवांछित पत्र, दस्तावेज आदि नष्ट करवा देता है । सीएमओ में अधिकांश फालतू कागजात नष्ट करवा दिए गए है । बचे हुए कागजातों की छंटाई जारी है । तीन-चार दिन पहले तो बहुत देर रात तक कागजो को नष्ट करने का सिलसिला चलता रहा ।

जब से मुख्यमंत्री को उनको हटाने की मनहूस खबर मिली है, वे पूरी तरह उदास होगये है । औपचारिकता पूरी करने की गरज से वे चिंतन शिविर आयोजन का स्वांग कर रहे है । हकीकत यह है कि उनकी रुचि और तबीयत दोनो गड़बड़ाने लगी है । तभी तो किसी को नकारा-निकम्मा तो किसी को सार्वजनिक मंच से मेंटली डिस्टर्ब बताने लगे है । लगता है कि सीएम की कुर्सी हिलते देखकर वे भी अस्त-व्यस्त और डिस्टर्ब होगये है ।

पुख्ता तौर पर तो कुछ नही कहा जा सकता है । लेकिन 15 मई के बाद गहलोत के लिए अशुभ दिनों की शुरुआत हो सकती है । नए मुख्यमंत्री के रूप में पायलट शपथ ले सकते है और गहलोत को सामान समेटना पड़े । इस सबकी स्क्रिप्ट तैयार हो चुकी है । केवल फिल्माना बाकी है ।

महेश झालानी

महेश झालानी

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