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Bulldozer Row: यूपी में एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा… बुलडोजर एक्शन पर SC में सुनवाई अगले हफ्ते तक टली

Desk Editor Special Coverage
16 Jun 2022 1:04 PM IST
Bulldozer Row: यूपी में एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा… बुलडोजर एक्शन पर SC में सुनवाई अगले हफ्ते तक टली
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Bulldozer Row: उत्तर प्रदेश में प्रशासन की बुल्डोजर कार्रवाई के खिलाफ गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है. कोर्ट ने यूपी सरकार से 3 दिन में बुल्डोजर की कार्रवाई पर जवाब मांगा है.

Bulldozer Row: भारतीय जनता पार्टी की पूर्व प्रवक्ता नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) की ओर दिए गए पैगंबर मोहम्मद को लेकर आपत्तिजनक बयान के विरोध में उत्तर प्रदेश में हिंसक घटनाओं के बाद हुई उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से की गई बुलडोजर कार्रवाई (Bulldozer Action) के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिन्द की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई अगले हफ्ते तक के लिए टल गई है. कोर्ट ने यूपी सरकार से मामले में हलफनामा मांगा है, जिस पर सरकार ने 3 दिन का वक्त मांगा. इस पर कोर्ट ने अगले हफ्ते तक के लिए सुनवाई टाल दी है. साथ ही यह भी कहा कि कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाए.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जमीयत के वकील चंद्र उदय सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है वह पूरी तरह से असंवैधानिक है एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. जमीयत के वकील ने यह भी कहा कि लोगों को सुनवाई करने का मौका दिया जाए.

जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दलील दी गई कि बुलडोजर कार्रवाई पर 10 मई को नोटिस भेजा गया था, नोटिस का जवाब नहीं मिलने पर ढहाने की कार्रवाई की गई है. सिर्फ सनसनी फैलाया जा रहा है. सरकार किसी समुदाय विशेष के खिलाफ काम नहीं कर रही है.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि डिमोलिशन की कार्रवाई से पहले कम से कम 15 दिन नोटिस देना चाहिए और 40 दिन का समय दिया जाना चाहिए ताकि पीड़ित अपील कर सकें, इससे उन लोगों के पास डिमोलिशन को रोकने के लिए संवैधानिक और अन्य उपाय करने का एक मौका तो होगा.

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट के सामने अप्रैल महीने में जहांगीरपुरी में हुई बुलडोजर कार्रवाई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक का हवाला भी दिया. उत्तर प्रदेश में हाल ही में हिंसा की घटना के बाद हुई बुलडोजर कार्रवाई के बारे में बताते हुए कहा कि यूपी में सिर्फ आरोपों के आधार पर घर तोड़ दिए गए, वो घर और इमारतें 20 साल से ज्यादा पुराने थे. भले ही संपत्ति आरोपी के परिजनों या परिवार के अन्य सदस्य के नाम पर थी लेकिन उन्हें भी तोड़ा गया. तोड़ने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि वो अवैध निर्माण था.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कानूनों में किसी निर्माण पर कार्रवाई से पहले उसके मालिक को 15 दिन का नोटिस देने और संपत्ति के मालिक को कार्रवाई रुकवाने के लिए अपील करने के लिए 30 दिन का समय देने जैसे प्रावधान हैं, लेकिन यूपी में उनका पालन नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि ये मकान 20 से ज्यादा साल से बने हुए थे, लेकिन कई मामलों में आरोपी के नहीं बल्कि उनके बुजुर्ग माता-पिता के मकानों को भी तोड़ दिया गया. जमियत ने मांग किया कि कोर्ट तुंरत कार्रवाई पर रोक लगाए. इस पर जस्टिस बोपन्ना ने कहा कि नोटिस जरूरी होते है, हमें इसकी जानकारी है.

इस पर उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता तथ्यों को बदल कर पेश कर रहे हैं. जो जहांगीपुरी मामले में एक भी पीड़ित है उनमें से एक भी कोर्ट नहीं आया है. SG मेहता ने कहा कि हर किसी का अपना एजेंडा है. एक राजनीतिक पार्टी की तरफ से याचिका दाखिल की गई है.यूपी प्रशासन के तरफ से पेश हुए हरीश साल्वे ने कहा कि मामले में कोर्ट कौन आया यह देखना चहिए?

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