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लालबहादुर शास्त्री के जीवन से प्रेरणा लें

Shiv Kumar Mishra
11 Jan 2021 3:14 AM GMT
लालबहादुर शास्त्री के जीवन से प्रेरणा लें
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ज्ञानेंद्र रावत

भारत मां के महान सपूत, पूर्व प्रधानमंत्री और "जय जवान-जय किसान" का उदघोष करने वाले देश के लाल श्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्य तिथि पर आदर,सम्मान सहित भावपूर्ण श्रृद्धांजलि। विश्व इतिहास में पाकिस्तान के दर्प को खण्ड-खण्ड करने की जब-जब बात की जायेगी, आपका नाम स्वर्णाच्छरों में लिखा जायेगा। ऐसी दिव्यात्मा को शत-शत नमन।

आज देश अपने पूर्व प्रधानमंत्री स्व० लाल बहादुर शास्त्री जिनके नेतृत्व में देश ने 1965 में पाकिस्तान के दर्प को खण्ड-खण्ड कर समूची दुनिया में भारतीय सेना की वीरता को स्थापित किया था, की पुण्यतिथि पर उन्हें अपनी भावभीनी श्रृद्धांजलि अर्पित कर रहा है।

लेकिन दुख इस बात का है कि देश का किसान कृषि विरोधी कानून के विरोध में बीते महीनों से आंदोलित है। लेकिन सरकार हठधर्मिता के चलते पीछे हटने को तैयार नहीं है और किसानों को बदनाम करने के हरसंभव घृणित हथकण्डे इस्तेमाल कर रही है जबकि दावे कुछ भी किये जायें असल में आंदोलनरत किसानों को देश के सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है। किसानों की पीडा़ देख आज जवान और किसान की महत्ता समझ "जय जवान-जय किसान " का जयघोष करने वाले हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आत्मा किसान की बदहाली पर रो रही होगी और यह सोचने पर विवश होगी कि मेरे देश के कर्णधारों को क्या हो गया है जो देश के अन्नदाता किसान को तबाह करने पर तुले हुए हैं।

विडम्बना तो यह है जबकि सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेता शास्त्री जी का नाम लेते नहीं थकते। यदि वह शास्त्री जी का इतना ही आदर करते हैं तो उनकी पुण्यतिथि पर सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि चंद पूंजीपति मित्रों के आगे नतमस्तक न होकर सरकार किसान भगवान का मान रखते हुए हठधर्मिता त्यागकर उनकी मांगें मान ले। यदि सरकार ऐसा करती है तो यह देश के इतिहास का एक ऐसा अभूतपूर्व निर्णय होगा जो स्वर्णाच्छरों में लिखा जायेगा। इससे अन्नदाता किसान की ही महत्ता नहीं बढे़गी बल्कि सीमा की रक्षा में तैनात किसान संतान उस जवान की भी प्रतिष्ठा बढे़गी जिसकी वीरता के दावे करती हमारी सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समय-समय पर करते नहीं थकते। इससे शास्त्री जी के पदचिन्हों पर चलने के मौजूदा सरकार के दावे का भी मान बढे़गा। इसमें दो राय नहीं।


( लेखक ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)



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