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पाकिस्तान के वो मशहूर और माअरूफ आलिम ए दीन जिनका ताल्लुक भारत के अमरोहा से है

Desk Editor
1 Oct 2021 2:16 PM GMT
पाकिस्तान के वो मशहूर और माअरूफ आलिम ए दीन जिनका ताल्लुक भारत के अमरोहा से है
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4 जून 1986 ई. को मुल्तान में आपका इंतेकाल हुआ अवाम की बहुत बड़ी तादाद ने आपकी नमाज ए जनाज़ा अदा की

अमरोहा : जिनका पाकिस्तान की जमात ए अहले सुन्नत, जमीयत उलमा ए पाकिस्तान, और दावत ए इस्लामी, तंजीम उल मदारिस जैसी जमाअतों और तंजीमों को कायम करने में अहम किरदार है।

जिन्होंने 1943 मुल्तान में मदरसा अनवार उल उलूम कायम किया। जी हां हम ज़िक्र कर रहे है पाकिस्तान की उस मशहूर हस्ती की जिन्हें वहां आज भी ग़ज़ाली जमां , इमाम ए अहले सुन्नत के लक़ब से याद किया जाता है।

गज़ाली जमां अल्लामा सय्यद अहमद सईद काज़मी

अल्लामा साहब की पैदाइश भारत के सूबे उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर में मौहल्ला कटकुई पर जुमेरात 13 मार्च 1913 ई. को हुई आप अभी 6 साल के ही थे के आपके वालिद सय्यद मुहम्मद मुख्तार अहमद शाह काज़मी का इंतेकाल हो गया। इनका नसब 35 पुश्तों से सय्यदना इमाम मुसा काज़िम से और 42 पुश्तों से सय्यदना अली करम अल्लाहु वजहुल करीम से जा मिलता है इमाम मुसा काज़िम से निस्बत की बिना पर इन्हें काज़मी कहा जाता है।

इनके सबसे बड़े भाई मुहम्मद खलील काज़मी ने इन्हें पाला क्योंकि इनके खानदान के तमाम अफराद आला तालिम याफ्ता थे लिहाज़ा इन्होंने अपनी बुनियादी तालिम अपनी वालिदा से हासिल की बाद में इन्हें इनके चचा ने हदीस की सनद और तसव्वुफ़ की तालिम दी, कम उम्र में ही आप अपने इल्म की वजह से मशहूर हो गए थे।

1935 में आप अमरोहा से मुल्तान (पाकिस्तान) की तरफ हिज़रत कर गए 1935 से इन्होंने लाहौरी दरवाजे के बाहर मस्जिद हाफिज फतह शेर में खुत्बा दिया, इन्होंने हज़रत चुप शाह की मस्जिद में हदीस का दर्स, बुखारी शरीफ के बाद तकमील मिश्कात शरीफ शुरू किया यहाँ वो अपने इल्म की वजह से अवाम और ख्वास में मशहूर हो गए।

बहावलपुर इस्लामिया युनिवर्सिटी में लम्बे समय तक बा हैसियत शैख़ उल हदीस तदरीसी फराइज़ को सर अंजाम दिया आपने पाकिस्तान में सियासी खिदमत को भी अंजाम दिया और मुस्लिम लीग को ज्वाइन किया और काइद ए आज़म मुहम्मद अली जिन्ना से खतो किताबत किया करते थे।

आपकी बहुत सारी तसानिफ है :-

1.मिलाद उन नबी स०

2. गुस्ताख ए रसूल की सज़ा

3. तौहिद और शिर्क

4. अहलेबेत अतहार पर मुस्ताकिलान सलाम का जवाज़

5. हक्कुल मुबीन

वगैरह वगैरह...

4 जून 1986 ई. को मुल्तान में आपका इंतेकाल हुआ अवाम की बहुत बड़ी तादाद ने आपकी नमाज ए जनाज़ा अदा की

और शाही मस्जिद ईदगाह के पहलू में दफन किया गया..

आज भी अमरोहा के मौहल्ला कटकुई पर आपके खानदान के लोग रहते है जो काज़मी कहलाते है..

- मुंतज़िर अहमद अब्बास अमरोही

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