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अपना एमपी गज्जब है..10: बलात्कारी को फांसी का कानून बस कानून बन कर रह गया!

अरुण दीक्षित
15 Sep 2022 6:02 AM GMT
अपना एमपी गज्जब है..10: बलात्कारी को फांसी का कानून बस कानून बन कर रह गया!
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अब सवाल यह है कि इस दावे के आगे क्या हुआ?जिन बलात्कारियों को फांसी की सजा मिली क्या वे फांसी के फंदे तक पहुंचे? या अभी भी जेल में आराम से जिंदगी काट रहे हैं।

अरुण दीक्षित

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2017 में विधानसभा में जब 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म पर फांसी की सजा के प्रावधान वाला विधेयक पेश कराया था तो उसे दलीय राजनीति से ऊपर उठकर समर्थन मिला था। सदन में सर्वसम्मति से उसे पारित किया गया।

उस विधेयक को फिर केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा गया।केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश के विधेयक को मंजूरी देने की बजाय अपना अलग कानून बनाने का फैसला किया।2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने उस पर हस्ताक्षर किए थे।

इस कानून को लेकर मैंने मुख्यमंत्री शिवराज की लम्बी लम्बी तकरीरें सुनी थीं। आज भी बलात्कारी को फांसी की सजा दिलाने का कानून बनाने का उनका दावा कायम है।

अब सवाल यह है कि इस दावे के आगे क्या हुआ?जिन बलात्कारियों को फांसी की सजा मिली क्या वे फांसी के फंदे तक पहुंचे? या अभी भी जेल में आराम से जिंदगी काट रहे हैं।

यह सवाल भोपाल के नामी स्कूल की तीन साल की छात्रा के साथ उसे स्कूल लाने वाली बस के ड्राइवर द्वारा बलात्कार किए जाने के बाद फिर उठा है।सवाल यह है कि उस कानून का क्या अर्थ जो अपराधियों को डरा भी न सके।

आगे की बात से पहले घटना जान लीजिए।भोपाल के नीलबड़ इलाके में एक नामी स्कूल है!स्कूल का नाम है बिलाबोंग इंटरनेशनल स्कूल।स्कूल प्रबंधन का दावा है कि वह विदेशी पैटर्न पर शिक्षा देता है। इसके लिए बच्चों के मां बाप से मोटी रकम बसूलता है।

सोमवार को इस स्कूल के एक बस ड्राइवर ने स्कूल की तीन साल की छात्रा से दुष्कर्म किया।मामला सामने आया तो पुलिस ने बस ड्राइवर को पोस्को के तहत गिरफ्तार कर लिया।दो बच्चों के बाप बस ड्राइवर के साथ बस में जाने वाली आया से भी पूछताछ की गई है।

घटना के सामने आने के बाद स्कूल प्रबंधन पूरी बेशर्मी से कहानियां गढ़ रहा है।स्कूल के प्रिंसिपल आशीष अग्रवाल ने बच्ची के कपड़े बदले जाने की वजह पानी गिर जाना बताया।घटना पर खेद जताने की बजाय तर्क दिया कि हम पुलिस जांच में सहयोग कर रहे हैं।हमने ड्राइवर को पूरी छानबीन के बाद रखा है।

उधर पुलिस भी स्कूल प्रबंधन को बचाने की कोशिश में लगी है।जबकि जब हर बात का पैसा स्कूल प्रबंधन लेता है तो जिम्मेदारी उसकी भी बनती है।

सत्तारूढ़ दल के प्रदेश प्रवक्ता द्वारा घटना की निंदा और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की मांग के बाद खुद मुख्यमंत्री ने भी चिंता जताने की औपचारिकता निभा दी है।

एक तथ्य यह भी है कि बड़े बड़े दावों और सख्त कानून के बाद भी मध्यप्रदेश बलात्कार और महिलाओं के पार्टी अपराधों में शीर्ष पर बना हुआ है।खुद को बच्चों का मामा बताने वाले मुख्यमंत्री के बड़े दावों के बाद भी प्रदेश में बलात्कार रुकना तो कम भी नहीं हो रहे हैं।

2018 में जब कानून बना था तब मध्यप्रदेश में बलात्कारियों को ताबड़तोड़ फांसी की सजा सुनाई गई थी। उस साल कुल 21 अभियुक्तों को फांसी की सजा दी गई थी।इनमें 18 बलात्कारी थे।जबकि 3 अन्य ने जघन्य अपराध किए थे।एक मामले में तो सिर्फ 5 दिन में ही फैसला हो गया था।

बाद के सालों में भी बलात्कार के आरोपियों को फांसी की सजा दी जाती रही है।लेकिन यह संख्या काफी कम हो गई है।

उल्लेखनीय बात यह है कि पिछले 4 सालों में इन सजाओं की चर्चा तो बहुत हुई पर एक भी दरिंदा फांसी के फंदे तक नही पहुंचा है।1998 के बाद मध्यप्रदेश में एक भी अपराधी को फांसी पर नही लटकाया गया है।इस समय प्रदेश की जेलों में तीन दर्जन से ज्यादा कैदी फांसी से बचने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।इनकी याचिकाएं अदालतों में लंबित हैं।

इसके बाद सबसे पहला सवाल आपके मुंह पर आएगा - इसके लिए जिम्मेदार कौन! इस सवाल के जवाब में आप पाएंगे कि इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है।

सरकार ने कानून बनाने के बाद अपने कर्तव्य को पूरा हुआ मान लिया।जिला स्तर पर सरकार के अभियोजन विभाग द्वारा पैरवी करके दरिंदों को फांसी की सजा दिलाई गई।लेकिन जिला अदालतों से आगे सरकार बढ़ी ही नहीं।हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है,इस ओर सरकार की मशीनरी ने न देखा न ही इस बारे में सोचा।अगर कुछ किया भी होगा तो उसका परिणाम सामने नही आया।

होना यह चाहिए था कि ऐसे जघन्य अपराधों की निगरानी के लिए सरकार कुछ अलग से व्यवस्था करती।ऊपर की अदालतों में इन मामलों की देखभाल के लिए अलग से इकाई बनाती।यह सुनिश्चित करती कि अबोध बच्चियों के साथ दुराचार करने वाले अपराधी कानून के ढीले पेंचों का सहारा न ले सकें।ऐसे मामलों की सुनवाई हर अदालत में प्राथमिकता के आधार पर हो।इन पर फैसला भी जल्दी हो।लेकिन सरकार यह व्यवस्था करना भूल गई।और तो और वह जिन वकीलों को नियुक्त करती है वे भी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। योग्यता की बजाय सिफारिश पर नियुक्त होने वाले ये वकील अपनी नियुक्ति को बनाए रखने के लिए गणेश परिक्रमा में लगे रहते हैं।

अगर ऐसा होता और इस दौरान किसी एक भी बलात्कारी को फांसी हो जाती तो शायद अपराधियों के मन में कुछ खौफ कायम होता।

लेकिन कानून बनाने के लिए अपनी पीठ ठोकने वाले लोग यह काम करना भूल गए।वे आज भी अपनी पीठ ठोक रहे हैं।

और दरिंदे आज भी वेखौफ अपना काम कर रहे हैं।ये श्रेय लेने से नही चूक रहे और वे अपराध करने से। इसका खामियाजा मासूम बच्चियां भुगत रही हैं।

आखिर अपना एमपी गजब है।

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

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