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आश निराश भई: यह पेपर लेस बजट किसानों के लिए रुथलेस है - डॉ राजाराम त्रिपाठी

Shiv Kumar Mishra
1 Feb 2021 5:25 PM GMT
आश निराश भई: यह पेपर लेस बजट किसानों के लिए रुथलेस है - डॉ राजाराम त्रिपाठी
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किसानों को मदद के नाम पर बैंक का दरवाजा तथा मंडी के नाम पर डिजिटल मंडी की झांकी

अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि किसानों के लिए यह वजह प्रसिद्ध गायक के एल सहगल के प्रसिद्ध गाने की पंक्ति से अभिव्यक्त किया जा सकता है । किसानों को मदद के नाम पर बैंक का दरवाजा दिखा दिया गया।

डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि देश के किसानों के लिए 16.5 लाख कृषि ऋण को प्रावधान किया गया है, किंतु किसानों की आय बढ़ाने की लिए माननीय वित्त मंत्री से ठोस गेम चेंजर योजना की उम्मीद थी,,,किंतु अब तो यही कहा जा सकता है कि 2022 तक किसानों की आय दुगना होना तो अब दूर की कौड़ी है,,, हां किसानों का कर्जा निश्चित रूप जरूर दुगना होता दिख रहा है।

डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि कृषि में जरूरी ढांचागत पूंजी निवेश के लिए बजट में राशि आवंटन के बजाय, भविष्य में इसके लिए एक फंड स्थापित कर डेढ़ लाख करोड़ रुपयों जुटाने का आश्वासन दिया गया है। खेती के लिए सकल बजट आवंटन में लगभग 7% की कमी की गई है वहीं किसान सम्मान निधि के लिए प्रावधानित राशि में भी लगभग 13% की कटौती की गई है।

डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि "न्यूनतम समर्थन मूल्य" में पहले की भांति डेढ़ गुना बढ़ोतरी करने की तोतारटंत बात तो की गई,, किंतु बेहद जरूरीस्वामीनाथन कमेटी की तर्कसंगत अनुशंसा"सीटू प्लस" फार्मूले की आधार पर कृषि लागत गणना करने की बात अभी भी नहीं की गई।

1- लगातार कृषि आदान खाद बीज दवाई तथा विशेषकर डीजल के दामों में भारी बढ़ोतरी से कृषि में प्रति एकड़ लागत 25% तक बढ़ गई है जिससे खेती भारी घाटे का सौदा बनते जा रहा है। किसान को इस घाटे से उबारने के लिए इस बजट में कोई ठोस रणनीति दिखाई नहीं देती।

2- जैविक खेती के लिए इस बजट में उचित बजट आवंटन की उम्मीद थी पर उस पर भी कुछ नहीं हुआ। जैविक बजट के नाम पर इस साल भी देश के किसान "जीरो बजट" का झुनझुना ही हाथ आया है।

3-किसानों को उचित मूल्य दिलवाने तथा बेहतर विपणन की सुविधा देने के नाम पर इस पेपर लेस डिजिटल बजट में 1000 नए डिजिटल बाजार की झांकी दिखा की की गई.. जबकि इस बाजार से 90% भारत का किसान इस डिजिटल बाजार में जुड़कर अपनी फसल बेचने के तौर तरीकों से भी परिचित नहीं है।

4-कृषि अनुसंधान लगातार बजट की कमी से जूझ रहा है उस दिशा में भी ठोस पहल नहीं हुई।

5- क्षेत्र के लिए "भारतीय कृषक सेवा का गठन" किए जाने की बहुप्रतीक्षित मांग के पूरे होने की भी संभावना थी किंतु वह घोषणा भी इस वजह से नहीं हो पाई।

6- देश के हर नागरिक पर कर्जा अर्थात पर कैपिटा ऋण राशि, पिछले कुछ सालों में बढ़कर लगभग दुगनी हो गई है।

और अंत में,,, यह पेपर लेश बजट यह उद्घोष करता हुआ नजर आया कि अब सार्वजनिक संपत्तियां को बेचकर आर्थिक संसाधन जुटाने की बात की जा रही है, तो अब एयरपोर्ट, बिकेगा,सड़के बिकेंगी,,बिजली ट्रांसमिशन लाइन, रेलवे का डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के हिस्से, ,गेल, ,इंडियन ऑयल की पाइप लाइन और स्टेडियम भी बिकेंगे,,,,वेयरहाउस वगैरह सब कुछ बेचेगी सरकार .. और अगर यह तीनों कानून रद्द नहीं हुए तो,,,इस देश के खेत खलिहान भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों कौड़ियों में बिक जाएंगे।

पहली बार भारत में इस तरह से सरकारी संपतियों की सरकारी " महा सेल" लग रही है।

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