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यूपी चुनाव स्पेशल: आगामी विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा क्या होगा

माजिद अली खां
30 July 2021 8:36 AM GMT
यूपी चुनाव स्पेशल: आगामी विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा क्या होगा
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं वैसे वैसे कुछ सवाल लोगों के जहन में भी उठ रहे हैं कि आखिरकार उत्तर प्रदेश का चुनाव किस मुद्दे पर लड़ा जाएगा. क्या यह मुद्दा विकास होगा या वही पुराना मंदिर मस्जिद, जातीय समीकरण होगी या फिर हिंदू ध्रुवीकरण. राज्य में पिछले 30 बरसों में इन्हीं मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते रहे हैं। अब हम आगामी विधानसभा चुनाव की बात करें और बारी बारी इन चारों बिंदुओं पर गहन विचार करें तो बात समझ में आएगी कि चुनाव लड़ने वाले सभी दलों के लिए कौन सा मुद्दा प्राथमिकता रखता है।

सबसे पहले हम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी के लिए उसका परंपरागत मुद्दा मंदिर और हिंदू ध्रुवीकरण ही लाभदायक रहता है। फिर कैसे उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय जनता पार्टी अपने परंपरागत मुद्दे से भटक कर ऐसे मुद्दे पर चुनाव लड़े जहां उसकी कोई सुनने वाला ना हो. इसलिए देखने में आ रहा है कि भाजपा का आईटी सेल धीरे धीरे ऐसे मुद्दे और खबरों को हवा दे रहा है जो हिंदू ध्रुवीकरण के लिए राह हमवार कर सकें। हालांकि भारतीय जनता पार्टी बार बार विकास को अपना मुद्दा बता रही है लेकिन उसके पास विकास के नाम पर बताने के लिए कुछ भी नहीं है. इस दशा में भारतीय जनता पार्टी के पास वही पुराना ढर्रा रह जाता है कि किसी भी सूरत में राज्य में हिंदू मुस्लिम की चर्चा कराकर चुनाव जीत लिया जाए. पिछले दिनों जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की बात कह कर इस बहस को जिंदा करने की कोशिश की गई थी कि इससे जनसंख्या नियंत्रित होगी और मुसलमानों की बढ़ रही आबादी पर विराम लगेगा, क्योंकि देश में यह अफवाह सदा से रही है हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में बच्चे ज्यादा पैदा होते हैं, लेकिन आंकड़े इसकी इसका समर्थन नहीं करते. जनसंख्या नियंत्रण को वैसे तो विकास से जोड़ा जा रहा था लेकिन भारतीय जनता पार्टी के समर्थित समाचार स्रोत लगातार इस बहस को हिंदू मुस्लिम का बहाना बनाकर पेश कर रहे थे. भारतीय जनता पार्टी को करीब से जानने वाले इस बात पर सहमत हैं कि यदि चुनाव धार्मिक आधार पर ना हुआ तब भारतीय जनता पार्टी के लिए जीतना बहुत मुश्किल होगा. भारतीय जनता पार्टी को असदुद्दीन ओवैसी कि मुस्लिम मजलिस से भी बड़ी उम्मीदें हैं क्योंकि इस बार मजलिस ने राज्य में 100 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े करने का ऐलान किया है और मजलिस के अध्यक्ष बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी अपना एक दौरा भी राज्य का कर चुके हैं जिसमें मुस्लिम नौजवानों की भारी भीड़ देखी गई थी. भारतीय जनता पार्टी को इससे ये उम्मीद जगी है कि जैसे-जैसे ओवैसी मुस्लिम ध्रुवीकरण की कोशिश करते जाएंगे वैसे वैसे हिंदू ध्रुवीकरण भाजपा के पाले में स्वत: होता जाएगा अब भाजपा को इस में कितनी सफलता मिलेगी यह तो समय ही बताएगा.

भाजपा के बाद अब हम बात करते हैं विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी की तो उसके लिए भी विकास कोई मुद्दा नहीं है. बल्कि समाजवादी पार्टी का कहना यह है कि अखिलेश सरकार ने अपने समय में बहुत विकास कराया है इसलिए लोग भरोसा करेंगे और अखिलेश की वापसी जरूर होगी लेकिन इसके साथ ही वह जातीय समीकरणों का भी सहारा ले रहे हैं. उन्हें भी उम्मीद यह है कि मुसलमान और यादवों के साथ साथ कुछ पिछड़ी जातियों और ब्राह्मण का वोट मिल जाए तो समाजवादी पार्टी सत्ता में वापसी कर सकती है इसलिए समाजवादी पार्टी भी ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है. अखिलेश यादव ब्राह्मणों को रिझाने के लि लिए परशुराम की भव्य मूर्ति लगाने की घोषणा कर चुके हैं

अब बात करते हैं तीसरे नंबर पर रहने वाली बहुजन समाज पार्टी की जिसका मुख्यतः वोट बैंक दलित माना जाता है वह भी जातीय समीकरणों के सहारे बाजी मारने के लिए कमर कस रही है. बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मणों को बसपा की ओर रिझाने के लिए सक्रिय कर दिया है जिसके तहत सतीश चंद्र मिश्रा ब्राह्मणों में अपनी पैठ बना रहे हैं और दलित ब्राह्मण समीकरण के सहारे बड़े वोट बैंक पर कब्जा करना चाहते हैं. इसलिए मायावती ने अयोध्या में राम मंदिर बनवाने तक का वादा भी कर लिया इसका मतलब यह है यह बहुजन समाज पार्टी अब दलितों की बजाए सब की पार्टी बनना चाहती है लेकिन उसके लिए यह बहुत बड़ी टेढ़ी खीर होगी. प्रमुख रूप से इन तीनों दलों के बाद चौथे नंबर पर आती है कांग्रेस, कांग्रेस का राज्य में कोई विशेष जनाधार नहीं है और ना उसके पास कोई जातीय समीकरण है बल्कि कांग्रेस सिर्फ भाजपा के मुकाबले मजबूत विपक्ष का नारा देकर तमाम वर्गों को अपनी ओर समेटने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर क्योंकि कांग्रेसी ही मुख्य विपक्ष है इसलिए उसे ही सभी वर्गों, सभी समुदायों और सभी समाजों का समर्थन मिलना चाहिए.

कुल मिलाकर कहा जाए के 4 बड़े दल अपने अपने जातीय और धार्मिक समीकरणों के सहारे ही उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं. अगर हम उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में अपनी मजबूत हैसियत रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल की बात करें तो वह अपने परंपरागत वोट बैंक जाट समाज और मुसलमानों के समर्थन की उम्मीद के साथ अपने पैर जमा रहा है. देश में चल रहे किसान आंदोलन का भी राज्य विधानसभा चुनाव पर प्रभाव पड़ना तय है. इसका कारण है गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में ज्यादातर आंदोलनकारी उत्तर प्रदेश के हैं जो मुख्यतः पश्चिम उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. खास तौर से जाट और सिख समाज का इस आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान है. इन परिस्थितियों को देखते हुए यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाला विधानसभा चुनाव विकासवादी एजेंडे पर होगा या धार्मिक एजेंडे पर. जातीय एजेंडे पर होगा या ध्रुवीकरण एजेंडे पर. हालांकि सभी दल अपने आप को एक से बढ़कर एक विकासवादी बताने की कोशिश करेंगे लेकिन आखिरी वक्त में चुनाव जातीय समीकरणों में ही उलझ कर रह जाएगा और विकास कहीं भटक कर गड्ढे में गिर जाएगा

माजिद अली खां

माजिद अली खां

माजिद अली खां, पिछले 15 साल से पत्रकारिता कर रहे हैं तथा राजनीतिक मुद्दों पर पकड़ रखते हैं. 'राजनीतिक चौपाल' में माजिद अली खां द्वारा विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक विश्लेषण पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किए जाते हैं. वर्तमान में एसोसिएट एडिटर का कर्तव्य निभा रहे हैं.

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