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Uttar Pradesh Assembly elections : ध्रुवीकरण की बुनियाद पर ही होगा उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव

Shiv Kumar Mishra
2 Aug 2021 8:56 AM GMT
Uttar Pradesh Assembly elections : ध्रुवीकरण की बुनियाद पर ही होगा उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव
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Uttar Pradesh Assembly elections

उबैद उल्लाह नासिर

अगले वर्ष के आरम्भ में ही उत्तर प्रदेश उत्तराखंड और पंजाब समेत कई राज्यों में विधान सभा के चुनाव होना है Iकल तक अजेय समझी जाने वाली बीजेपी को एहसास हो गया है कि अजेय होने का उसका भ्रम ममता बनर्जी ने तोड़ दिया है अब चुनाव जीतने के लिए भावनातमक और धार्मिक मुद्दे ज़्यादा कारगर नहीं होंगे जनता अब असल मुद्दों पर भी वोट देते समय ध्यान अवश्य देगी यही कारण है की जहां जहां उसकी राज्य सरकारें हैं वहाँ सत्ता मुखालिफ लहर से बचने के लिए वह अपने मुख्य मंत्रियों को बदल रही है उत्तराखंड और कर्नाटक में तो उसने आसानी से यह काम कर लिया लेकिन उत्तर प्रदेश में मामला बिगड़ गया यहाँ योगी जी मोदी और अमित शाह ही नहीं आरएसएस के सामने भी झुकने से इनकार कर दिया और मुख्य मंत्री बदलने की कोशिशों पर पानी फेर दिया I दरअसल योगी जी ने अपने पूरे शासन काल में खुद अपनीं पोजीशन मज़बूत करने पर सब से ज्यादा ध्यान दिया I उन्होंने पूरी दबंगई और बिना किसा हिचकिचाहट के साम्प्रदायिक कार्ड खेला खुद को मोदी से बड़ा हिन्दू ह्रदय सम्राट साबित किया यही नहीं जिस प्रकार उन्होंने गोरखनाथ पीठ का महंत बनते ही अपनी खुद की हिन्दू युवा वाहिनी तैयार की और उसे एक ऐसा संगठन बना दिया जिसके सामने क्षेत्र के माफिया भी बौने हो गए थे I

वैसे मुख्य मंत्री बनते ही उन्हों ने अपने इस संगठन को पूरे प्रदेश में फैला दिया और अब वह बीजेपी के सामने सीना तान के खड़े होने की स्थिति में हैं I इसमें किसी को शक नहीं है की उनकी निगाहें दिल्ली पर हैं ज़ाहिर है की अगर वह मोदी अमित शाह और आरएसएस के दबाव में इस्तीफ़ा दे देते तो न केवल दिल्ली के राजसिंहासन पर विराजमान होने का उनका सपना चकनाचूर हो जाता बल्कि उनकी राजनीति भी समाप्त हो सकती थी I योगी जी के इस प्रकार ताल ठोंकने का असर यह हुआ की बीजेपी ने उनको हटाने के बजाय अपने आधे से अधिक विधायकों के टिकट काट कर सताविरोधी लहर की काट का फैसला किया है I साम्प्रदायिकता या किसी भी अतिवादी विचारधारा में मुख्य बात यही है की वह उग्रता से अति उग्रता की ओर मुसलसाल बढ़ती ही रहती है कभी अडवानी जी उग्र हिंदुत्ववादियों की आँखों का तारा थे लेकिन गुजरात दंगों के कारण मोदी जी लोकप्रियता इन तत्वों में अडवानी जी से ज्यादा हो गयी और आज अडवानी जी एक कोने में पड़े अपनी जिंदगी के दिन गिन रहे हैं इसी प्रकार अब योगी जी उग्र हिंदुत्व के मामले में मोदी जी को पीछे छोड़ दिया है I आरएसएस को भी योगी जी इसी कारण भाने लगें, भले ही आज वह मोदी जी के साथ दिखाई दे रही है I हाँ एक मामले में मोदी को अब भी योगी जी पर वरदहस्त हासिल है और वह है कॉर्पोरेट जगत में उनकी स्वीकार्यता हालाँकि योगी ने भी कई इन्वेस्टमेंट समिट करवा के कॉर्पोरेट तक भी पहुँच बनाने की कोशिश की लेकिन अब भी मोदी ही कॉर्पोरेट जगत को ज्यादा प्यारे हैं I

विकास रोज़गार किसानो की सहायता आदि के चाहे जितने बड़े बड़े दावे योगी सरकार करे और इस पर जनता से मिले टैक्स का चाहे जितना पैसा खर्च कर दे सच्चाई यह है कि जनता से सम्बंधित मुद्दों को ले कर योगी सरकार अवाम के बीच कुछ भी कहने और उसकी बुनियाद पर वोट मांगने की पोजीशन में नहीं है I बेरोज़गारी चरम पर तो है ही सब से ज्वलंत मुद्दा कोरोना की दूसरी लहर में हज़ारों लोगों की मौत और किसानो का आन्दोलन है I उत्तर प्रदेश का कोई भी वोटर ऐसा नहीं है जो यह कह सके की कोरोना की इस दूसरी लहर में उसने अपने किसी करीबी को नहीं खोया है ऑक्सीजन,अस्पताल में बेड,एम्बुलेंस और दवा के लिए दर दर भटकते लोगों की कराहें और अपने करीबियों की लाश को अपने काँधे पर ले जाते हुए लोगों की चीत्कार अब भी कानों में सुनाई देती है गंगा में उफनाती चील कव्वों द्वारा नोची जा रही लाशों को कोई इंसान तो नहीं भूल सकता और न ही ईमानदारी से सीना ठोंक के यह दावा किया जा सकता की यह सब कुछ सरकार की लापरवाही और खतरा भांप कर पहले से तय्यारी न करने के करण नहीं हुआ Iलगभग आठ महीनों से किसान अपना घर बार छोड़ कर धरने पर बैठे है करीब 500 किसान शहीद हो चुके हैं लेकिन बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार के कण पर जूं नहीं रेंग रही है यही नहीं गन्ना के किसानों का न केवल समय पर भुगतान नहीं हो रहा है बल्कि विगत चार वर्षों से गन्ने के मूल्यों में एक पैसे का भी इजाफा नहीं किया गया है जबकि डीज़ल बिजली खाद बीज और आवश्यक दवाइयों के मूल्य कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं I धान के किसानों को अपनी उपज MSP से आधे पर बेचनी पड़ी थी यही हाल गेहूं के किसानों का हुआ 1975/-प्रति क्विंटल MSP की जगह उन्हें अपना गेहूं 1400 -1500/- प्रति क्विंटल बेचना पडा है I छुट्टा जानवर किसानो के लिए सब से बड़ी समस्या बन गए हैं अपने खेतों में लोहे के तार की बाड़ लगवाने पर उन्होंने हज़ारों रुपया खर्च किया फिर भी इस समस्या से छुटकारा नहीं मिल रहा है जबकि गोशाला के नाम पर दल विशेष के लोग करोरों रुपया डकार रहे हैं I

बीजेपी इन मुद्दों के ले कर चिंतित तो है लेकिन उसे अपने राम बाण पर पूरा विश्वास है भले,ही यह राम बाण बंगाल में प्रभावी ना रहा हो लेकिन हिंदी पट्टी विशेषकर उत्तर प्रदेश में इसके प्रभावी होने की पूरी सम्भावना है I याद कीजिये 2017 में उस ने शमशान कब्रिस्तान ईद पर बिजली तो दिवाली में क्यों नहीं आदि का ऐसा पांसा फेंका था कि अखिलेश राहुल की जोड़ी बुरी तरह धराशायी हो गयी थी और मायावती अब तक अपने ज़ख्म चाट रही हैं I बीजेपी को पूरा विश्वास है कि ध्रुवीकरण फिर उसकी नयया पर लगा देगा इस पर काम भी शुरू हो गया धर्मांतरण और आतंकवाद के नाम पर गिरिफ्तारियां,आबादी कण्ट्रोल कानून आदि इसी सिलसिले की कड़ियाँ समझी जा है लोगों का कहना है कि जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आता जाएगा इसमें नयी नयी कड़ियाँ जुडती जायेंगी I"इंशा अल्लाह योगी को दुबारा मुख्य मंत्री नही बन्ने देंगे"जैसे मूर्खतापूर्ण बयान देकर ध्रुविकरण की इस हवा को और तेज़ किया जा रहा है I

उधर विपक्ष ने भी अपनी गोटें बिछाना शुरू कर दिया है समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तुरूप की चाल चलते हुए राष्ट्रीय लोक दल से समझौता कर लिया है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन के चलते सभी वर्ग के किसानों विशेषकर जाटो में बीजेपी के प्रति गहरी नाराजगी पायी जाती है ऐसे में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी का गठजोड़ अचछा सियासी फायदा दे सकता है अन्य छोटे और जातीय दलों से भी समाजवादी पार्टी समझौता कर रही है पब्लिक परसेप्शन भी यही बन गया है कि समाजवादी पार्टी ही बीजेपी को टक्कर दे सकती है इसका भी उसे फायदा मिल रहा है विशेषकर फ्लोटिंग वोटर्स उसकी तरफ मुड़ सकते हैं उधर मायावती जो अब तक लगभग सुषुप्ता अवस्था में थीं वह भी जाग गयी हैं और 2007 में उन्हें सफलता दिलाने वाले सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूला को लागु करने के लिए ब्राह्मण वोटों पर नज़र लगाए हैं इसके लिए उनके लेफ्टिनेंट सतीश चन्द्र मिश्र ने अयोध्या जा कर राम लला के दर्शन किये राम मंदिर बसप द्वारा बनवाने का एलान किया और प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलनों के नाम पर ब्राह्मणों को रिझाने की मुहीम चला रहे हैं I

इस से कोई इंकार नहीं कर सकता विगत दो तीन वर्षों में योगी और मोदी सरकारों के खिलाफ सब से ज्यादा मुखर अगर कोई दल रहा है तो वह कांग्रेस है I पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी न केवल हर मामले में ट्वीट कर के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को सीधे पात्र लिख कर और खुद भी मौके पर पहुँच कर जन समस्याओं के लिए मुखर रही हैं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पर योगी सरकार ने जितने मुक़दमे दर्ज किये और जितनी बार उन्हें जेल भेजा वह भी अपने आप में एक रिकॉर्ड हैI एक ओर आम ख्याल यह है की कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा अब भी बहुत कमज़ोर है दूसरी ओर पार्टी पदाधिकारियों का दावा है की ब्लाक स्तर तक उन्होंने ढांचा खडा कर दिया हैI इसका एक फायदा तो यह अवश्य हुआ है कि जह्गान अब तक कांग्रेस को किसी गिनती में नहीं माना जाता था वहीँ अब कांग्रेस के नाम पर भी सियासी बहस होती है I सियासी पंडितों वरिष्ठ पत्रकारों और प्रबुद्ध वर्ग का ख्याल है की यदि कांग्रेस अपने परम्परागत वोट बैंक पर फिर तवज्जह दे तो प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकती है I ध्यान रहे की वैसे तो कांग्रेस एक अम्ब्रेला आर्गेनाईजेशन कही जाती है जिसके नीचे समाज के सभी वर्ग के लोग पनाह लेते हैं लेकिन ब्राहमण(13%) मुस्लिम(20%) और दलित (21%) वोटों के बल पर उस ने प्रदेश पर लगभग चालीस वर्षों तक राज्य किया I मंडल कमंडल धर्म और जाति की राजनीती में यह तीनो वर्ग उस से छिटक गए और कांग्रेस सियासी बनबास में चली गयी अब इन वर्गों विशेषकर ब्राह्मणों और मुसलामानों के एक बड़े और संजीदा वर्ग को एहसास हो रहा है की कांग्रेस से अलग हटकर भले ही उन्होंने कांग्रेस को सियासी बनबास में भेज दिया हो लेकिन इससे खुद उन्कोऔर देश व समाज को बहुत नुकसान उठाना पडा है, यह वर्ग उसकी ओर लौट सकता है बशर्त यह की कांग्रेस इसके लिए पहल करे I उतर प्रद्रेश की आज की सियासत में सभी पार्टियां ब्रह्मणों को रिझाने पर लगी हैं लेकिन कोई भी ब्राह्मण मुख्य मंत्री देने का एलान नहीं कर रही है I पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेशके आखिरी ब्राह्मण मुख्य मंत्री थे दूर दूर तक ऐसा कोई इमकान नहीं दिखाई पड़ता कि कोई पार्टी निकट भविष्य में किसी ब्राह्मण को मुख्य मंत्री बनाएगी I सियासी पंडितों का ख्याल है कि यदि कांग्रेस पंडित जवाहर लाल नेहरु की नातिन प्रियंका गांधी को बतौर मुख्यमंत्री पेश करे तो न केवल ब्राह्मण और मुस्लिम बल्कि हर जाति वर्ग का नवजवान और महिलायें उसकी ओर आकर्षित हो सकती है। प्रियंका गाँधी को कांग्रेस का तुरुप का इक्का समझा जा रहा है। लेकिन यदि किसी करणवश कांग्रेस प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाना चाहती तो फिर उसके पास प्रमोद तिवारी के रूप में एक और इक्का है। प्रमोद तिवारी ने एक ही चुनाव चिन्ह से एक ही क्षेत्र से नौ बार विधायक और एक बार राज्य सभा सदस्य बनने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। पूरे उत्तर प्रदेश में उनकी एक अलग पहचान है वह कुशल संगठनकर्ता कुशल वक्ता सियासी सूझ बूझ में माहिर जनता की नब्ज़ पहचानने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं।

बीजेपी की ओर से योगी,समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की ओर से मायावती मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। ऐसे में यदि कांग्रेस पुराने ढर्रे पर चलते हुए बिना मुख्यमंत्री का चेहरा सामने किये चुनाव मैदान में उतरती है तो फिर उसका भगवान ही मालिक होगा।

उत्तर प्रदेश का चुनाव वैसे तो सभी पार्टियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के लिए इसका विशेष महत्त्व है बीजेपी यदि यू पी हार गयी तो 2024 में दिल्ली उसके लिए दूर हो जायेगी और यदि कांग्रेस अच्छा परफॉरमेंस न कर सकी तो फिर उसके वजूद पर लगा सवालिया निशान और गहरा हो जाएगा I यह चुनाव देश की दिशा और दशा भी तय करेंगे ी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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