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हम न हंस पा रहे हैं, न रो पा रहे बेसुरा राग है, बस वही गा रहे ..

राह अनजान है हमसफर अजनबी आंख मूंदे हुए बस चले जा रहे !

हम न हंस पा रहे हैं, न रो पा रहे  बेसुरा राग है, बस वही गा रहे ..
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आज 30 अगस्त है । अर्थात् प्रथम पांक्तेय वरिष्ठ नवगीतकार डाॅ. योगेन्द्र दत्त शर्मा का जन्मदिन। इस अवसर पर उनके विपुल साहित्य से किसी एक रचना का चयन करना बहुत कठिन है। फिर भी उनके ताज़ा नवगीतों से एक रचना का चयन करके पटल पर प्रस्तुत है । डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई !

□ गीत-योगेन्द्र दत्त शर्मा

.......

हम न हंस पा रहे हैं

न रो पा रहे

बेसुरा राग है, बस वही गा रहे !

सिलसिलेवार

चेहरे बदलती हुई

अनवरत घट रही एक ही त्रासदी

देख भी हम रहे

भोग भी हम रहे

याद करते हुए मौन नेकी-बदी

राह अनजान है

हमसफर अजनबी

आंख मूंदे हुए बस चले जा रहे !

पथ-प्रदर्शक हुआ गुम

किसी मोड़ पर

रह गये हम हतप्रभ खड़े दिग्भ्रमित

वंचना का घटाटोप

चारों तरफ

कर रही विष-बुझी यह हवा संक्रमित

लग रहा है

बरसकर रहेगा कहर

क्रूर बादल लगातार मंडरा रहे !

दर्द की कंदरा में

धंसे जा रहे

हिम-जड़ित चोटियों से फिसलते हुए

पी रहे हैं

अपचनीय आसव सतत

शब्द की अर्थ-ध्वनि को निगलते हुए

अब उगे, तब उगे सूर्य

यह सोचकर

अब अंधेरे बियाबान भी भा रहे !

-- © योगेन्द्र दत्त शर्मा

(प्रस्तोता-जगदीश पंकज)

Desk Editor
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