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जब सुषमा स्वराज ने सदन में सजा कुबूल की थी..

संसद् भवन के बाहर खड़े पत्रकारों के समक्ष सुषमा को 'नाटकबाज' बताती रहेंगी।

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संसद में संवाद हो, बहस हो, बहस कभी-कभार गरमागरम भी हो तो उसे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत माना जाता है। पर संसद में बहस के स्थान पर हंगामा हो, पूर्व नियोजित, पूर्व घोषणा करके डंके की चोट पर नारेबाजी हो, कोई काम ही न होने दिया जाए और गंभीर सवालों पर भी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी सदन में चर्चा के लिए तैयार ही न हो तो इसे आप क्या कहेंगे?

अफसोस कि कांग्रेस संसद् के मानसून सत्र में यही कर रही है। पहले पंजाब के गुरुदासपुर में आतंकी हमला हुआ, फिर ऊधमपुर में हुआ, देश के बहुत बड़े हिस्से में बाढ़ से लाखों लोग तबाह हैं। ऐसी बहुत सारी समस्याओं से देश जूझ रहा है। इस बीच छह दशकों से लटकी चली आ रही पुरानी नगा समस्या पर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ। क्या कायदे से इन सभी सवालों पर संसद में बहस नहीं होनी चाहिए? पर, कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है। उसने तो सदन को न चलने देने का प्रण ले रखा है? कांग्रेस इस जिद्द पर अड़ी है कि ललितगेट में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तथा व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें। सुषमा स्वराज ने गुरुवार को संसद् में ललितगेट पर अपने बयान में सवाल उठाया कि क्या किसी कैंसर रोगी की मदद करना गलत है? सुषमा स्वराज ने कहा कि उन्होंने ललित मोदी की नहीं, कैंसर से जूझ रही उनकी पत्नी की मानवीय आधार पर मदद की थी। सुषमा ने पूछा कि यदि मेरी जगह सोनिया गांधी होती तो क्या वे ऐसी भारतीय नागरिक (ललित मोदी की पत्नी) की मदद नहीं करती? जो किसी केस में वांछित (अपराधी) नहीं है और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से वर्षों से जूझ रही है?

सुषमा ने आगे कहा कि यदि कैंसर से पीड़ित महिला की मदद करना अपराध है तो मैं देश के समक्ष अपना गुनाह कबूल करती हूँ और इसके लिए सदन मुझे जो सजा देना चाहे, मैं भुगतने के लिए तैयार हूँ। यदि सोनिया गांधी मेरी जगह होतीं तो क्या वे ऐसी कैंसर पीड़ित महिला को मरने के लिए छोड़ देतीं? जाहिर है मामला मानवीय संवेदना का है। अब सुषमा ने तो अपना पक्ष रख दिया, क्या अब सोनिया गांधी उन्हें संसद् में जवाब देंगी? उनके दावों को खारिज करेंगी? या फिर संसद् भवन के बाहर खड़े पत्रकारों के समक्ष सुषमा को 'नाटकबाज' बताती रहेंगी।

उधर, व्यापम घोटाले की जाँच अब सीबीआई कर रही है। छापेमारी शुरू हो चुकी है। पर कांग्रेस तो हंगामा करने पर मानो आमादा है। कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि यूपीए के दौर में भी कई मंत्रियों ने इस्तीफे दिए थे। अब उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने इस्तीफे कब दिए थे?अगर बात ए.राजा की करें तो उन्होंने टेलीकॉम मंत्री पद से तब इस्तीफा दिया, जब स्पेक्ट्रम घोटाले में उनके खिलाफ केग ने गंभीर टिप्पणियाँ की थीं। दरअसल केग की रिपोर्ट के बाद चारों तरफ से दबाव झेल रहे राजा के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा था।

साभार : बेलाग-लपेट

लेखक : आर. के सिन्हा

Desk Editor
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