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कौन है बाबा नीब करौरी महाराज जी ? जिन्हें उनके भक्त महाराज जी के नाम से संबोधित करते हैं.

Shiv Kumar Mishra
12 Oct 2021 4:09 AM GMT
कौन है बाबा नीब करौरी महाराज जी ? जिन्हें उनके भक्त महाराज जी के नाम से संबोधित करते हैं.
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Who is Baba Neeb Karauri Maharaj Ji

भारतभूमि कई सिद्ध आत्माओं की जन्मभूमि रही है. इसे ऋषि मुनियों की कर्म भूमि होने का सौभाग्य प्राप्त रहा है. ऐसे ही एक महान संत हुए बाबा नीब करौरी महाराज जी, जिनकी दिव्यता के मुरीद भारतभूमि से लेकर पूरे विश्व के जनमानस रहे. एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स और फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग, बाबा नीब करौरी महाराज को अपनी आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बताते हुए आए हैं.

नीब करौरी महाराज जी को उनके भक्त महाराज जी के नाम से संबोधित करते हैं. महाराज जी का जन्म सन 1900 में अकबरपुर गांव, फ़िरोज़ाबाद ज़िला, उत्तरप्रदेश के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिताजी का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था.परिवार वालों ने महाराज जी का नाम लक्ष्मण दास शर्मा रखा था.

ग्यारह वर्ष की आयु में बालक लक्ष्मण दास का विवाह करा दिया गया. लेकिन उनका मन गृहस्थ जीवन में नहीं लगा और उन्होंने गृह त्याग दिया. कुछ वक़्त साधु की तरह भटकने के बाद, पिता दुर्गा प्रसाद शर्मा की विनती पर लक्ष्मण दास घर लौट आए और सांसारिक जीवन जीने लगे.

मगर नियति में आध्यात्मिक संसार और जीवन लिखा था. सन 1958 में महाराज जी ने सांसारिक जीवन त्याग दिया.उन्होंने पूरे उत्तर भारत की यात्रा की। यहां एक रोचक प्रसंग मिलता है. जब महाराज जी अपने गांव से उत्तर भारत की यात्रा पर निकले तो टिकट कलेक्टर ने उन्हें फर्रुखाबाद जनपद के गांव नीब करौरी के निकट ट्रेन से उतार दिया. महाराज जी के पास ट्रेन का टिकट नहीं था। महाराज जी उतर गए. मगर फिर ट्रेन नहीं चल सकी. यात्रियों ने टीसी से कहा कि यह एक महान संत हैं और इनकी आज्ञा के बिना अब यह ट्रेन नहीं चलने वाली. टीसी ने तब महाराज जी से क्षमा याचना की और ट्रेन को चलने की आज्ञा देने की विनती की. इस पर महाराज जी ने दो शर्त रखी. पहली यह कि नीब करौरी को एक रेलवे स्टेशन घोषित किया जाए.और आगे से साधु महात्माओं से अच्छी तरह से पेश आया जाए. रेलवे अधिकारियों ने दोनों शर्त मान ली और फिर ट्रेन चल पड़ी.

अपनी यात्राओं के दौरान महाराज जी अलग अलग स्थानों पर रुकते. उनके अलग अलग नाम रखे गए. भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार उनको पुकारता.महाराज जी प्रभु श्री राम और हनुमान जी की भक्ति करते थे. अपने भक्तो को हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह देते थे.गुजरात में तपस्या करने के बाद महाराज जी ने अपने दो आश्रम स्थापित किए. फर्रुखाबाद और कैंची में.यह दोनों आश्रम विदेशियों के आकर्षण का केंद्र बने.हिप्पी आंदोलन के दौरान जो विदेशी भारत भूमि अाए, वह महाराज जी के संपर्क में आने पर उनके अनन्य भक्त बन गए.राम दास, कृष्ण दास उनके विदेशी भक्तो के नाम थे, जिनका नामकरण महाराज जी ने स्वयं किया.

महाराज जी ने सन 1964 में कैंची, उत्तराखंड में अपने आध्यात्मिक धाम की स्थापना की. अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष महाराज जी कैंची धाम में रहे.कैंची धाम विश्व विख्यात स्थल है. यहां हर वर्ष 15 जून को विशाल भंडारा होता है, जहां एक दिन में तक़रीबन एक साल से अधिक लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं.

महाराज जी की कुछ बहुत साफ़, सीधी, सटीक बातें थीं. सभी से प्रेम करो, ईश्वर का स्मरण करो, भूखों को भोजन कराओ, सभी के साथ सेवा भाव रखो.

11 सितंबर 1973 को वृंदावन के एक अस्पताल में महाराज जी ने अपने भौतिक शरीर का त्याग कर दिया. वृंदावन में ही उनका समाधि स्थल है. आज महाराज जी के करोड़ों भक्त पूरी दुनिया में सेवा और प्रेम का संदेश दे रहे हैं. यही सच्ची प्रार्थना है.

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