अमरोहा

दम घुटकर मरती, अमरोहा की यार-ए-वफादार ...

Shiv Kumar Mishra
25 March 2021 7:52 AM GMT
दम घुटकर मरती, अमरोहा की यार-ए-वफादार ...
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अमरोहा की मशहूर नदी है सोत, इसका इतिहास अपने-आप में विज्ञान का विषय है। इसकी विशालता का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है, कि यह गंगा के बाद दूसरी सबसे बड़ी जनपदीय नदी है।

इस नदी के बारे मे कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध के दौरान मुस्लिम सैनिक प्यास बुझाने के लिए सोत नदी के किनारे आए थे। उस समय प्यास बुझाने के लिए उनके पास कोई अन्य स्रोत नही था और सैनिक प्यास के कारण मरणासन्न हो गए थे, लेकिन सोत नदी ने सभी सैनिको की प्यास बुझाई, इसी कारण सैनिको ने इसे "यार-ए-वफादार" नाम दिया था। इस नदी के किनारे हजरत सुल्तान उल आरफीन की सुप्रसिद्ध मज़ार भी है। सोत नदी की एक खास बात और है कि यह सौ मीटर तक भी सीधी नही चलती इसलिए इसे सांपू भी कहा जाता है

ख्वाजा अम्न जुनैद साहब लिखते हैं -

मुंशी मुन्नू लाल मुन्सरिम के "जग्राफ़िया ए मुरादाबाद" (1872) के मुताबिक़ सोत नदी का उद्गम जगह फैज़ुल्लाह गंज है जबकि तारीख़ ए असगरी (1889) के मुताबिक़ इसका उद्गम होने की जगह गांव पीला कुंड है। ये नदी अमरोहा अतरासी रोड( जहां 6 मार्च 1988 को किसानों का 18 दिन तक सत्याग्रह आंदोलन चला था) , फिर जोया के पास हाइवे से निकल कर संभल - बिलारी होती हुई बदायूं ज़िले के राजनगर के पास इसका सफर पूरा हो जाता है. बदायूं ज़िले में इसका फाट अमरोहा और संभल के मुक़ाबले में ज़्यादा चौड़ा हो जाता है.

कहा जाता है औपनिवेशिक काल सन् 1921 में भारी बारिश से पानी का लेवल बढ़ने की वजह से पुल टूट गया था। स्थानीय निवासी बताते हैं यह पुल बेहद कमजोर था जिसके कारण मुरादाबाद से औद्योगिक नगरी गजरौला की तरफ जा रही पैसेंजर के कई डिब्बे, इंजन सहित समा गए थे, लगभग 45 लोगो को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, यह हादसा अमरोहा के लिए ऐसा मर्म था जिसे शब्दो मेंं व्यक्त करना काफी मुश्किल था। देश-शहर के साहित्यकार इस घटना सेे काफी व्यथित हुए। कहा जाता है -

इस ट्रेन की पिछली बोगी में हिंदुस्तान के मशहूर हकीम मसीह उल मुल्क हकीम अजमल खां साहब और उनके शागिर्द हकीम रशीद अहमद खां अमरोहवी शिफा उल मुल्क भी थे।

दर असल ये एक बरसाती नदी है। किसी दौर में ये अमरोहा के इलाक़े में खूब बहती थी लेकिन अब कहीं कहीं थोड़ा थोड़ा पानी दिखाई देता है। बदायूं में इसमें अब भी पानी बाक़ी रहता है। बड़ी सरकार हज़रत अबू बक्र मुए ताब का मज़ार बदायूं में सोत के किनारे है।

1745 में मुग़ल शहंशाह मुहम्मद शाह (1719-1748) रूहेला सरदार नवाब अली मुहम्मद खां (रामपुर के पहले नवाब ) जब उनकी राजधानी आँवला में थी।उनकी बढ़ती हुई ताक़त को देख कर लखनऊ के नवाब सफदर जंग ने जो उस वक़्त दिल्ली में रह रहे थे बादशाह को अली मुहम्मद खान के खिलाफ उकसाया था। बादशाह ने शाही लश्कर के साथ अली मुहम्मद खाँ पर हमला किया और उन्हें गिरफ्तार कर के दिल्ली ले गया(हयात ए हाफिज़ रहमत खां, अल्ताफ बरेलवी, सफ़ा 63)

रास्ते में आते जाते बादशाह ने #सोतनदी के किनारे पड़ाव किया जो उस वक़्त ज़ोर शोर से बह रही थी और उसके दोनों तरफ़ खुशनुमा हरा भरा माहौल था। इसके किनारे बादशाह और उसके लश्कर ने राहत का एहसास किया और ख़ुश होकर इस छोटी सी नदी को #यारए_वफादार" के खिताब से नवाज़ा.

(तारीख़ ए असगरी सफ़ा 8)

आज से दो वर्ष पूर्व, सन् 2019 में संभल जिले की सोत नदी में पांच दशक बाद पानी आया तो किसानों के चेहरे खिल उठे। क्योंकि भू-जल का स्तर सुधरने के आसार थे। साथ ही जरूरत पड़ने पर सिंचाईं के लिए पानी भी मिल सकता है। अमरोहा जिले से संभल जिले में प्रवेश करने वाली सोत का जिले में 58 किलोमीटर हिस्सा है। नदी की जमीन पर तमाम लोगों ने अवैध कब्जे कर लिए। इससे नदी सूख गई और विलुप्त होने लगी।

अब इसे पाट कर जगह जगह अवैध रूप खेती की जा रही है। कई साल पहले ज़िलाधिकारी ऋतु महेशवरी ने सोत की सफाई का अभियान चलाया था लेकिन उनका ट्रांसफर हो गया। वर्तमान ज़िलाधिकारी ने फिर इसकी सफाई का बीड़ा उठाया है। ये काम हो जाए तो मुहम्मद शाह के दौर की तरह फिर पानी बहने लगे और हरियाली फैले तो ये अमरोहा के लिए फिर यार ए वफादार साबित हो।

प्रत्यक्ष मिश्रा ( पत्रकार )

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