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भागवत जी, आप हम हिंदुओं को क्यों बदनाम कर रहे हैं? हमने कब कहा कि हम मुस्लिमों के साथ नहीं रहेंगे?

संदीप देव
महात्मा गांधी अली बंधुओं के मंच पर जब गये तो हिंदुओं को खूब कोसा। परिणाम, मोपलाओं ने मालाबार में हिंदुओं का विनाश कर दिया। अलि बंधुओं की नजर में गांधी कभी उनके नहीं हुए, बल्कि उसने तो एक निम्न मुसलमान को भी गांधी से बेहतर बता डाला।
आज मोहन भागवत जब ख्वाजा के मंच पर पह़ुचे तो उन्होंने भी हिंदुओं को ही कोसते हुए 'लिंचर' कहा, जबकि अभी कहीं लिंचिंग की कोई घटना नहीं हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं की कथित एक बड़ी संस्था के प्रमुख ने हिंदुओं को बदनाम कर दिया, विदेशी मीडिया के 'हिंदू को बदनाम करो वाले एजेंडे को आगे बढ़ा दिया। मुस्लिम का साथ पाने के लिए हिंदुओं को कोसना आखिर जरूरी क्यों है?
भागवतजी ख्वाजा के मंच पर तात्कालिक बंगाल में हिंदुओं के संहार का भी तो जिक्र कर सकते थे और कह सकते थे कि मुस्लिम समाज अपनी कट्टरता छोड़े, हिंदू तो प्रकृति से ही सहिष्णु है, वह उन्हें अपना मानकर आजतक जीता रहा है। परंतु भागवत जी ने हिंदुओं को ही नसीहत दे डाली कि जो मुस्लिमों के साथ नहीं रहना चाहता है वह हिंदू नहीं है।
भागवत जी, आप हम हिंदुओं को क्यों बदनाम कर रहे हैं? हमने कब कहा कि हम मुस्लिमों के साथ नहीं रहेंगे? उल्टा कश्मीर से बंगाल और केरल तक वो कह रहे हैं हिंदुओं से कि या तो मुसलमान बन जाओ या मिट जाओ! काश आप एक बार भी उनसे कहते कि धर्मांतरण और लव जिहाद का धंधा बंद कीजिए और सौहार्द के साथ रहना सीखिए। बंगाल में 7000 हिंदू महिलाओं का यौन शोषण और हिंदू संहार से लेकर उमर गौतम के धर्मांतरण रैकेट का मुद्दा अभी सामयिक था न कि लिंचिंग का?
पता नहीं क्यों, सबको गांधी होने की बीमारी लगी है, जबकि गांधी होने का परिणाम इस देश ने विभाजन और लाखों हिंदुओं ने पलायन और संहार के रूप में भुगता है।
इतिहास साक्षी है कि हिंदू बार-बार अपनों के द्वारा ही छला गया है, परंतु अपने शास्त्रों के ज्ञान से अनजान हिंदू फिर-फिर वही गलती दोहराता रहा है। हमें आदि शंकराचार्य से तुलसीदासजी तक के उदाहरणों को समझ कर ज्ञान मार्ग के जरिए हिंदू पुनर्जागरण की लहर पैदा करनी ही होगी, अन्यथा दूसरों के भरोसे बैठे रह कर हम अपना बचाखुचा भी खो देंगे।




