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15 अगस्त की पूर्व बेला पर अंग्रेज़ ब्राहमणो के बारे मे क्या सोचते थे?

सन 2004 मे मशहूर ब्रिटिश scholar Heather Streets ने एक किताब लिखी: 'Martial Races: the Military, Race and Masculinity in British Imperial Culture, 1857-1914...'इस किताब मे अंग्रेजों ने भारत मे किस सोच के तहत सेनाएं बनायी--किस 'नस्ल' को अपना दोस्त और किसको अपना दुश्मन समझा--इस बात का ज़िक्र है। किताब मे प्रमाण सहित 1857 की जंग-ए-आज़ादी, जिसकी शुरुआत अमर शहीद मंगल पांडे ने पहली गोली दाग कर की, के दौरान एक बड़े अंग्रेज़ अफसर का क़ोट छपा है...
जिसमे वो अफसर खास तौर पर उत्तर प्रदेश के ब्राहमणो और सवर्णो के बारे मे चिढ़ कर कहता है: "यदि हमने ब्राह्मणों पर भारत मे लगाम नही लगाई और शिकंजा नही कसा, तो इस देश मे हमारे पांव नही जमेंगे। गंगा पट्टी (Gangetic Belt) के ब्राहमण बाकी जगह के ब्राहमणो की तरह नही हैं। इनमे कान्यकुब्ज, सरजूपारी और भूमिहार ब्राहमण लड़ाकू प्रवृत्ति के हैं। इनमे राष्ट्रिय स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ हैं।
यह अपने साथ गंगा पट्टी (Gangetic Belt) की अन्य जातियों को भी लड़ाकू बना देते हैं। हमने इन्हे बहुत सह लिया। अब हम आगे किसी सशस्त्र सवर्ण जाति पर कभी विश्वास नही करेंगे। हमने उन्हें सत्ता में भागीदार बनाया, फिर भी उन्होंने कैसी 'दगाबाजी' की? दिल्ली, कानपुर, मेरठ, आगरा, बनारस, गोरखपुर, आज़मगढ़, इलाहबाद और लखनऊ मे 50,000 से ज़्यादा अंग्रेज़ सैनिक और अफसर काट डाले। अंग्रेज़ साम्राज्य की प्रतिष्ठा देखते ही देखते धूल मे मिला दी..."
अमरेश मिश्र वरिष्ठ पत्रकार