लखनऊ

जानिए- कौन है वो अधिकारी जिसने अखिलेश को प्लेन में चढ़ने से रोका, 8 साल में 16 बार हो चुका है ट्रांसफर!

Special Coverage News
13 Feb 2019 6:22 AM GMT
जानिए- कौन है वो अधिकारी जिसने अखिलेश को प्लेन में चढ़ने से रोका, 8 साल में 16 बार हो चुका है ट्रांसफर!
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काम के दौरान सख़्त रहने वाले वैभव ऑफ़ द रिकॉर्ड बेहद हंसमुख और व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं। उनके क़रीबी बताते हैं कि इतने बड़े पद पर पहुंचने के बाद भी वैभव उतने ही शालीन हैं जितने विश्वविद्यालय में या सर गंगानाथ झा परिसर में रहा करते थे।

मामला है अमौसी एयरपोर्ट का। अखिलेश अपने काफ़िले से अमौसी एयरपोर्ट पहुंचते हैं। जहां उनका इंतज़ार लखनऊ प्रशासन कर रहा है। अखिलेश गाड़ी से नीचे उतरते हैं। एडीएम लखनऊ वैभव मिश्रा आगे बढ़ कर उनसे बात करने की कोशिश करते हैं। अखिलेश भड़क उठते हैं।

कहते हैं दूर से बात करो, हाथ मत लगाना, हाथ मत लगाना। इतने में अखिलेश के सुरक्षा कर्मी एडीएम वैभव मिश्रा को खींचकर पीछे कर देते हैं। वैभव लगातार मुस्कुराते हुए कहते हैं कि सर मैं आपको हाथ नहीं लगा रहा हूं बस बात करनी है।

अखिलेश कहते हैं साइड में बात करो।

फिर वैभव कुछ कहते हैं।

तब अखिलेश वैभव से पूछते हैं कितना पढ़े लिखे हो?


पूर्व मुख्यमंत्री एडीएम लखनऊ से पूछ रहे हैं कितना पढ़े हो?

एडीएम लखनऊ हैं वैभव मिश्रा। 2008 पीसीएस के टॉपर। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रहे वैभव मिश्रा पॉलिकल साइंस से स्नातक और परास्नातक हैं।

प्रतापगढ़ के पट्टी क्षेत्र से आने वाले वैभव मिश्रा बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

25 नवंबर 1980 को जन्में वैभव जब मात्र दो साल के थे तभी एक दुर्घटना में उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। पिता सेना में वारेंट ऑफिसर थे।

मां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थी। उन्होंने वैभव और इनके बड़े भाई विक्रांत का पालन पोषण किया। विक्रांत सिनेमा क्षेत्र में सक्रिय हैं।

वैभव 2006 में जूनियर रीसर्च फेलो हुए। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सर गंगानाथ झा छात्रावास के कमरा संख्या 93 में रहते थे। वैभव ने अपने ममेरे भाई विवेक पाण्डेय से सिविल सेवा में जाने की प्रेरणा ली। जो उनसे पहले इसी कमरे में रहते थे। विवेक ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में 40 वीं रैंक प्राप्त की थी। भाई से प्रेरित होकर वैभव ने 2007 में सिविल सेवा की तैयारी के लिए दिल्ली का रुख़ किया।

इस दौरान वैभव लगातार 2008, 2009, 2010 की IAS परीक्षा का साक्षात्कार देते रहे। इस बीच 2009 में वैभव का चयन इंटर कॉलेज प्रवक्ता पद पर हो गया जहां इन्होंने लगभग छह महीने अपनी सेवा दी।

छह महीने इसलिए क्योंकि 2010 में उत्तराखंड PCS में उनका चयन हो गया था। जहां उनकी तीसरी रैंक थी।

इसके बाद 2011 में UPPCS 2008 का परिणाम आया।

जिस शख़्स ने टॉप किया था उसका नाम था वैभव मिश्रा।

UP PCS 2008 Topper ; VAIBHAV MISHRAUP PCS 2008 Topper ; VAIBHAV MISHRA

UP PCS 2008 Topper ; VAIBHAV MISHRA

अपनी पहली पोस्टिंग से ही बेहद कठोर, ईमानदार और निष्पक्ष रहे वैभव लगातार सत्ता के निशाने पर रहे। 8 बरस की सेवा में वैभव का 16 बार ट्रांसफर किया गया है।

अपने तबादलों को लेकर वैभव कहते हैं " इससे फ़र्क नहीं पड़ता है कि मेरा तबादला कहां होता है। मैं अपना काम पूरी ईमानदारी,निष्ठा और निडरता से करता हूं।"

वैभव का मानना है कि कार्यकाल की अवधि से ज़्यादा यह मायने रखता है कि आपने उस अवधि में कैसा काम किया है।

वैभव ने अपने हर क्षेत्र को अतिक्रमणमुक्त करने में विशेष भूमिका निभाई है। 2017 में जब वैभव इलाहाबाद सदर में तैनात थे तब उन्होंने मीरगंज के वेश्यालयों को स्थानांतरित करने में विशेष भूमिका निभाई थी।

इतना ही नहीं वैभव ने बालू खनन माफियाओं पर भी नक़ेल कसने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, यही कारण था कि उरई जलौन में एक खनन माफिया ने उन्हें ट्रैक्टर से कुचलने का प्रयास भी किया था।

अपनी निडर कार्यशैली और लगातार तबादलों के कारण चर्चित हैं वैभव मिश्राअपनी निडर कार्यशैली और लगातार तबादलों के कारण चर्चित हैं वैभव मिश्रा

अपनी निडर कार्यशैली और लगातार तबादलों के कारण चर्चित हैं वैभव मिश्रा

काम के दौरान सख़्त रहने वाले वैभव ऑफ़ द रिकॉर्ड बेहद हंसमुख और व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं। उनके क़रीबी बताते हैं कि इतने बड़े पद पर पहुंचने के बाद भी वैभव उतने ही शालीन हैं जितने विश्वविद्यालय में या सर गंगानाथ झा परिसर में रहा करते थे।

वैभव के क़रीबी मित्र अनुज बताते हैं कि वह संबंधों को ज़िंदा रखना अच्छी तरह जानते हैं। हर रविवार किसी न किसी मित्र या जूनियर को फ़ोन करना उनका नियम है। सफलता की इतनी सीढ़ियां चढ़ने के बाद भी वैभव से अहंकार कोसों दूर रहता है। उनकी बैच के लगभग सभी लोग सिविल सेवा में हैं। जो जूनियर तैयारी कर रहे हैं वैभव लगातार उनका उत्साहवर्धन करते रहते हैं।

लोगों की मदद करना वैभव की आदत में शुमार है।

लेकिन ये मदद हमेशा उनकी ईमानदारी के परिधि में या ग़ैर प्रशासनिक होती है।

न्यूज़िया को उम्मीद है कि अब अखिलेश यादव के साथ साथ देश और प्रदेश की जनता भी जान गई होगी कि एडीएम लखनऊ वैभव मिश्रा कितना पढ़े हैं।

साभार

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