लखनऊ

सरकारी खजाना नहीं हुआ अनलॉक, लड़खड़ाती अर्थवयवस्था का दंश झेल रहे गरीब और मजदूर

Shiv Kumar Mishra
8 Sep 2020 11:38 PM GMT
सरकारी खजाना नहीं हुआ अनलॉक, लड़खड़ाती अर्थवयवस्था का दंश झेल रहे गरीब और मजदूर
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ये आंकड़े इस बात की ताकीद करने के लिए काफी हैं कि सरकार को बुरी तरह चरमराई अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करनी होगी.

भास्कर दुबे

लखनऊ 9 सितंबर2020 : कारोबारी सहूलियत के मामले में भारत के राज्यों में उत्तर प्रदेश 12वें स्थान से छलांग लगाकर दूसरे स्थान पर आ गया. जो इस ब का संकेत है कि सरकार ने कारोबारियों के लिए सहूलियतें प्रदान करने की दिशा में काम किया है. लेकिन सूबे की सरकार के खजाने का अनलॉक न होना "इज ऑफ़ डूइंग" की इस कामयाबी को मुहं चिढा रहा है. कोरोना महामारी के बीच लाकडाउन के कारण जीडीपी की विकास दर में 40 साल में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गयी जो लगभग माईनस 24 प्रतिशत थी. इसमें भी विनिर्माण क्षेत्र की दर पिछले साल की इसी अवधि में तीन फीसदी की तुलना में माईनस 39.3 हो गयी. ये आंकड़े इस बात की ताकीद करने के लिए काफी हैं कि सरकार को बुरी तरह चरमराई अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करनी होगी.

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर पारदर्शिता और विकेंद्रीकरण की व्यवस्था के साथ सरकारी धन के व्यय की सोच नई दिल्ली से उत्तर प्रदेश आते आते कमजोर हो गयी. वित्तीय समावेशन के लिए सरकारी योजनाओं के धन को सरकारी खजाने से सीधे लाभार्थी के खाते में या कार्यदायी संस्था की खर्च करने वाली इकाई के खाते में सीधे सीधे ट्रांसफर करने की मंशा के तहत PFMS व्यवस्था लागू की गयी. लेकिन कोषागार की वेबसाइट पर प्रदर्शित डाटा के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष की लगभग आधी अवधि में इस व्यवस्था के अधीन कुल प्राविधानिक धनराशी लगभग 82,108/- करोड़ रूपये में से 16,139/- करोड़ रूपये ही रिलीज किये गये हैं. जिसमें से 13,479/- करोड़ रूपये का व्यय किया गया है. यह तस्वीर तब है जब कि बाजार में रूपये की कमी है और सरकार से अधिक धनराशी प्रवाहित करने की अपेक्षा की जा रही है.

सवाल यह है कि जब सरकार ही बाजार में पैसा नहीं डालेगी तो अर्थव्यवस्था को सहारा कौन देगा? क्योंकि कारोबारियों को मिलने वाली सहूलियत उनके मुनाफे के लिए फायदेमंद हो सकती है लेकिन कोरोना की मार से कराह रहे समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति को फौरी मदद की दरकार है. जो मनरेगा, श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन, स्मार्ट सिटी मिशन जैसी सुस्त पड़ी योजनाओं में रुकी हुई धनराशी को तत्काल रिलीज किये जाने से ही संभव होगा. मजे कि बात तो यह है कि कई विभागों के अफसर केंद्र सरकार कि गाईड लाईन से इतर PFMS के लिए बैंक खाते खुलवाने से बचने की कोशिश कर रहे हैं. जोकि प्रधानमंत्री मोदी की वित्तीय समावेशन, विकेंद्रीकरण और पारदर्शिता की मंशा को धता बताने का ही एक प्रयास है.

बहरहाल योजनाओं की धनराशि के समय से रिलीज न होने के कारणों में केन्द्र सरकार से अनुदान की राशि का समय से न मिलने के साथ साथ विभागों द्वारा PFMS के अधीन संचालित योजनाओं के लिए खाते खुलवाने में आनाकानी जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन इसके कारण बाजार में मुद्रा की आपूर्ति और योजनाओं के रुकने से मजदूरी के अवसरों में कमी का सबसे ज्यादा कुप्रभाव गरीबों और मजदूरों पर पड़ रहा है.

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