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मोदी–संघ की नई चाल/रणनीति: अब सवर्ण हिन्दुओं की जरुरत नहीं है!

अमरेश मिश्रा
अटल जी की अस्थि-कलश यात्रा महज़ एक मुखौटा है ताकि मोदी-शाह गुपचुप अपने असली एजेंडा पर काम करते रहें। असल में मोदी एक दीर्घालिक फासीवादी तानाशाह बनने के अपने चिर प्रतीक्षित सपने को दलित-पिछड़ों की राजनीति के माध्यम से साकार करने की भरसक कोशिश कर रहे है।
ध्यान देने वाली बात है कि अपने इस सपने को पूरा करने के लिए अब मोदी ने खुद को पूरी तरह सवर्ण हिन्दूओं से दूर कर लिया है। इस दिशा में एससी/एसटी एक्ट में संशोधन से मोदी की राजनीति ने एक नया मोड़ ले लिया है।
इसके अलावा पिछड़ा आयोग, दलित-पिछड़ों को लुभाने के लिए अनेकों सरकारी योजनाएं और राजनीतिक कार्यक्रम भी भाजपा द्वारा शुरू किए गए हैं। यहाँ तक कि हाल ही में नए राज्यपालों और भाजपा के पदाधिकारियों की नियुक्ति में भी दलित-पिछड़ों को तरज़ीह दी गई है।
यह 2017 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा की उस रणनीति के एकदम विपरीत है जिसके तहत सवर्ण हिन्दुओं को ख़ास तवज्जो दी जा रही थी और उन्हें भारी भरकम पदों से नवाज़ा जा रहा था।
अब यह देखने वाली बात होगी कि मोदी की यह पिछड़ा-दलितोन्मुखी 'सोशल इंजीनियरिंग' उम्मीद के मुताबिक परिणाम लाती है या नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि यूपी के उपचुनावों में लगातार हुई हार से मोदी और शाह ने सही-गलत जो भी--सबक तो ज़रूर सीखा है।
मोदी-शाह के लिये 2019 मे सवर्ण हिन्दू उसी स्तिथि मे हैं, जिस स्तिथि मे 2014 के दौरान मुसलमान थे। इसीलिए काशी के अलावा अन्य स्थानों पर भी हिन्दू मंदिरों को गिराने में कोई संकोच नहीं बरता जा रहा है।
उनका मानना है कि केवल दलितों और पिछड़ों के भारी समर्थन से ही मोदी अगले 10-15 सालों तक बिना किसी रोक – टोक के दिल्ली की गद्दी पर क़ाबिज़ रह सकते है। इस नई चाल/ रणनीति में संघ मोदी के साथ खड़ा है...