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लोकतंत्र में धरना प्रदर्शन का अधिकार और शिक्षक अभ्यर्थियों पर हुये निर्मम लाठीचार्ज पर विशेष

लोकतंत्र में अन्याय अत्याचार जुल्म ज्यादती के खिलाफ धरना प्रदर्शन सविनय आंदोलन करने का रास्ता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिखा गये हैं और उन्होंने हिंसा को कभी मान्यता नहीं दी भले ही आजादी की लड़ाई को लेकर एकता खंडित होकर नरम दल और गर्म दलों में विभाजित हो गयी।लोकतांत्रिक प्रणाली में अपने हक के लिये शांतिपूर्वक अहिंसात्मक ढंग से धरना प्रदर्शन करना हर नागरिक का अधिकार है।सरकार का दायित्व बनता है कि वह धरना प्रदर्शन करने का मौका किसी को भी न दे और हर आदमी को स्वतः उसका हक मिल जाय।
धरना प्रदर्शन करने के बाद जो बात मानी जाती है अगर वही बात पहले ही मान ली जाय तो शायद धरना प्रदर्शन मारपीट करने का मौका ही न मिले।कभी कभी प्रशासनिक लापरवाही मनमानी धरना प्रदर्शन का कारण बन जाती है और लोगों को बाध्य होकर धरना प्रदर्शन करना पड़ता है।प्रायः पुलिस को लाठी भांजने का मौका तब मिलता है जबकि प्रदर्शन हिंसक होकर उपद्रव करने पर आमादा हो जाते हैं लेकिन कभी कभी अहिंसक धरना प्रदर्शन आंदोलन भी शासन प्रशासन की लापरवाही के चलते पुलिस की लाठियों का शिकार हो जाता है। अभी दो दिन पहले राजधानी लखनऊ एवं पूर्व राजधानी इलाहाबाद में बेरोजगारों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ और उन्हें शिक्षक की भूमिका निभाने के लिये न्याय माँगना मँहगा पड़ गया।सभी जानते हैं कि सरकार ने साढ़े अरसठ हजार शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी तहत कौंसलिंग करके अभ्यर्थियों को अपनी कौंसलिंग कराने के लिये जिलों का आँवटन हो रहा था।
कौंसलिंग की तय समय सीमा तीन सितंबर को समाप्त हो रही थी लेकिन छः हजार से ज्यादा लोग कौंसलिंग के लिये जिला आँवटित होने से छूट गये थे।छूटे लोग पिछले रविवार को लखनऊ राजधानी में कौंसलिंग के लिये समय सीमा बढ़ाने की माँग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे थे। वह लोग अवकाश के बावजूद राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र पर सुबह से एकत्र हो गये और लाठियां खाने के बावजूद तबतक नहीं हटे जबतक उन्हें कौंसलिंग कराने के लिये समय बढा़ने का लिखित आदेश नहीं मिल गया। इस दौरान लाठीचार्ज से कई अभ्यर्थियों को बेगुनाह गंभीर चोटें आई और उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश भी की।
जो कार्य रोडजाम धरना प्रदर्शन करने बाद किया गया वहीं कार्य अगर धरना शुरू होते ही वार्ता के दौरान कर दिया गया होता तो लाठीचार्ज की नौबत नहीं आती। शिक्षक पद के लिये हुयी परीक्षा में उर्त्तीण सभी लोगों को कौंसलिंग की सुविधा उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व बनता है।अगर समय सीमा समाप्त हो रही थी और लोग अवशेष बच रहे थे तो समय सीमा स्वतः बढ़ा दिया जाना चाहिए था।अगर खुदबखुद इस जिम्मेदारी का निर्वहन कर लिया गया होता तो शायद धरना प्रदर्शन लाठीचार्ज खूनखराबे और आत्महत्या करने की नौबत नहीं आता है।इस स्थिति के लिये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ ऐसी सख्त कार्यवाही करनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की कृतिम समस्या को लेकर अशांति एवं कानून व्यवस्था की समस्या पैदा करने की नौबत न आये।धरना प्रदर्शन लाठीचार्ज गोलीचार्ज के बाद माँग मानने की प्रथा बंद होनी चाहिए।धन्यवाद।।