लखनऊ

ब्राह्मण के सहारे यूपी की सियासत !!

Shiv Kumar Mishra
19 July 2021 4:45 AM GMT
ब्राह्मण के सहारे यूपी की सियासत !!
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ऐसे में देखना होगा किचुनावों के दौरान सत्ता या विपक्ष में बैठे दल किन मुद्दों पर ज़ोर डाल कर उन्हें लुभाने की कोशिश करते है.

अवनीश विद्यार्थी

कहते है दिल्ली की सियासत का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है और उत्तर प्रदेश में सियासी पकड़ बनाए रखने के लिए महत्वपूर्णब्राह्मण वोट बैंक अहम भूमिका अदा करता है। उत्तर प्रदेश में करीब 11 से 14 फ़ीसदी ब्राह्मण वोट हैं । जो लखनऊ में सरकार बनाने मेंबड़ी भूमिका निभाता हैं, कहते जिस ओर ब्राह्मण वर्ग रुख़ करता है मानो सत्ता उसे ही कुर्सी का इशारा कर रही होती है । सूबे के 21 मुख्यमंत्रियों में से 6 मुख्यमंत्री यूपी में ब्राह्मण रहे हैं। जिसमें तीन बार तो अकेले नारायण दत्त तिवारी ने ही कमान संभाली फिलहालमोदी मंत्रिमंडल में उत्तर प्रदेश से केवल महेंद्र नाथ पांडेय ही ब्राह्मण कैबिनेट में चेहरा थे हाल ही में हुए विस्तार में अजय मिश्रा टेनी कोमंत्रिमंडल में शामिल कर गृह राज्य मंत्री बनाया गया है , वैसे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी पहली केंद्र सरकार मेंसात ब्राह्मण मंत्री थे, जो कि उस मंत्रिमंडल का 30 फीसदी था।

उत्तर प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव अहम थे जब ब्राह्मण और दलित वोट बैंक के जुगाड़ से बहुजन समाज पार्टी को सूबे में बहुमतवाली सत्ता मिल गई हर कोई इस समीकरण के परिणाम से हैरान था , 54 टिकटों में से 41 ब्राह्मण जीत कर विधानसभा पहुँच गए थेफिर क्या था सरकार में भी ब्राह्मणों का ज़ोर था , वैसे ब्राह्मणों का बसपा से जुड़ने का कारण बहुजन समाज पार्टी का वैकल्पिक रूप सेराष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा से ज़्यादा मज़बूत होना ही था , बिगाड़ती क़ानून व्यवस्था से नाराज़ ब्राह्मण समाज ने विकल्प के तौरपर पहले बार राष्ट्रीय पार्टियों से इतर क्षेत्रीय पार्टी को समर्थन दिया था । हालाँकि बसपा ये कमाल लोकसभा 2009 में नहीं दिखा पायी, मायावती के जन्मदिन के आसपास हुई इंजीनियर मनोज गुप्ता की हत्या और कांग्रेस के सियासी समीकरणों ने बसपा की उम्मीदों कोझटका दिया । 2012 आते आते ब्राह्मण नाम का तिलिस्म टूट गया और घोटालों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में हुई हत्याओं से समूचाउत्तर प्रदेश दहल गया नतीजा बसपा सत्ता से बेदख़ल हो गई और बदली हुई छवि के साथ युवा अखिलेश के प्रभाव वाली समाजवादीपार्टी को बहुमत की सत्ता मिल गई , इधर अपने 2006 से पहले के कार्यकाल में परशुराम जयंती पर छुट्टी का एलान करने वाले पूर्वमुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सत्ता की कमान अपने इकलौते बेटे अखिलेश यादव को दे दी । समाजवादी पार्टी के टिकट पर भी 21 ब्राह्मण विधायक जीत कर विधानसभा पहुँचें ,अयोध्या की प्रतिष्ठित सीट पार्टी के ब्राह्मण उम्मीदवार छात्र नेता पवन पांडेय ने जीत लीतो लखनऊ से आइआइएम के प्रोफ़ेसर रहे प्रो अभिषेक मिश्रा जीत कर आए ,समय बीता अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में भी राजा रामपांडेय , अभिषेक मिश्रा , मनोज पांडेय सरीखे ब्राह्मण चेहरे थे. वही माता प्रसाद पांडेय फिर से विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए परशुरामजयंती पर छुट्टी का एलान फिर हुआ पर ब्राह्मण अगले 2014 के लोकसभा चुनावों में भ्रष्टाचार में घिरी कांग्रेस की विदाई और यूपी मेंतुष्टिकरण के आरोप झेल रही मुज़फ़्फ़रनगर के दंगो के बाद के परिदृश्य वाली समाजवादी पार्टी के ख़िलाफ़ भारतीय जनता पार्टी केसाथ जुड़ गए नतीजा लोकसभा में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इकाई में आ गए तो बहुजन समाज पार्टी का सूपड़ा साफ़ हो गया ।

कार्यकाल के आख़िरी दौर में राज्य की सत्ता के साथ साथ पारिवारिक कलह की चुनौतियों से रूबरू अखिलेश यादव राष्ट्रीय दल कांग्रेससे गठबंधन के बावजूद ब्राह्मण समेत तमाम सवर्णों यहाँ तक कि ओबीसी में भी ग़ैर यादव वर्गों का समर्थन खो बैठे और भारतीय जनतापार्टी को सहयोगियों समेत 324 का विशाल बहुमत मिला । 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने उत्तरप्रदेश में महागठबंधन बनाया समीकरणों को लेकर ख़ूब दावे हुए पर ज़मीनी गणित ने सब फेल कर दिया नतीजा भाजपा को बड़ीसफलता मिली समीकरणों के सहारे बसपा दहाई में पहुँच गई पर समाजवादी पार्टी 2014 के आँकडें से आगे नहीं बढ़ पायी यही नहींअखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव , भाई धर्मेंद्र और अक्षय यादव भी चुनाव हार गए । जानकारों ने कहा केवल ओबीसी और दलितवोट बैंक की सियासत दोनो क्षेत्रीय दलों के महागठबंधन पर भारी पड़ गई, उधर कड़ी चुनौती के बाद भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन कियाऔर कांग्रेस तो इस बार अमेठी भी न बचा पायी । अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश में चुनाव आया है सभी सियासी दलों ने फिर अपनीमुखरता के प्रसिद्ध ब्राह्मण वर्ग को लुभाने की कोशिश शुरू कर दी , बसपा ने 23 जुलाई से ब्राह्मण सम्मेलन करने का एलान किया है तोसमाजवादी पार्टी ज़िलों ज़िलों में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाने का एलान कर रखा है ।

वहीं सत्ता से दशकों से दूर कांग्रेस को अभीभी पंडित नेहरू के परिवार का ही सहारा है , प्रियंका गांधी यूपी की प्रभारी है और कांग्रेस उन्हें के चेहरे से ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिशकर रही है वही भाजपा ने योगी सरकार के ख़िलाफ़ ब्राह्मण चेतना परिषद बना कर प्रदेश व्यापी अभियान चलाने वाले दिग्गज कांग्रेसीजितिन प्रसाद को ही तोड़ कर भाजपा में जोड़ लिया है अब वे योगी सरकारी नीतियों की तारीफ़ कर रहे है । चुनावों में अभी लगभग 6 महीने बाक़ी है ऐसे में उत्तर प्रदेश की सियासत में अभी कई नए नए मोड़ आने बाक़ी है वैसे ब्राह्मणों को जोड़ने की चौतरफ़ा कोशिश होरही है लेकिन सामाजिक रूप से सक्षम ब्राह्मण वर्ग को आज भी राष्ट्रीय मुद्दों जैसे आतंकवाद , देश की सुरक्षा , आर्थिक तरक़्क़ी , राष्ट्रवाद जैसे के साथ जुड़ने में सुकून मिलता है पर समाज आज रोज़गार और महंगाई की चुनौती से रूबरू है. ऐसे में देखना होगा किचुनावों के दौरान सत्ता या विपक्ष में बैठे दल किन मुद्दों पर ज़ोर डाल कर उन्हें लुभाने की कोशिश करते है ।



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