मेरठ

हम मर, कब जाते हैं ...??

Desk Editor
24 Jun 2021 9:55 AM GMT
हम मर, कब जाते हैं ...??
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दो महीने के बच्चे के साथ बेसलूकी, पुलिस के आतंक की कल्पना करिए,मासूम की जान भी जा सकती थी...

पूरे विश्वास और श्रद्धा भक्ति से कह सकता हूँ कि यदि आपकी नजरे इस फोटो को देखकर झुक नहीं जाती हैं तो आपके इंसान होने में मुझे शक है। कोरोना से देशभर में मरने वालो की संख्या तेजी से बढ़ी है, इससे भी तेज लोग-बाग ज़मीर से मर रहे हैं। कल जैसे पुलिसकर्मी मेरठ में मर चुके हैं।

सवाल है, हम मरते कब है?

"मौत होना, मरना नहीं है"

..तो मित्रो, हम उस वक्त मर जाते हैं जब एक लड़की प्रिया प्रकाश वरियर आंख मारती है और देश की मुख्य धारा की मीडिया प्रिया प्रकाश के कदमों में सजदा करने लगती है सुप्रसिद्ध साहित्यकार निर्मल वर्मा ने कहा है कि -"मरने के लिए आत्महत्या बहुत जरूरी नहीं है...!!"मेरठ पुलिस की बेशर्मी तो देखिए, एक गरीब के दो महीने के मासूम बच्चे के साथ पुलिस किस तरह से पेश आ रही है? पुलिस के आतंक की कल्पना करिए,मासूम की जान भी जा सकती थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि, उत्तर प्रदेश पुलिस है तो उन्हें यूँ लगता हो कि जैसे सारी जनता उनकी प्रजा है !! कुछ भ्रष्ट प्रशासनिक अफसरों के दिमाग में आज भी यथा राजा तथा प्रजा वाली अवधारणा जुड़ी हुई है।


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