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किसान और गाय दोनों असुरक्षित, यह कैसा है सबका साथ सबका विकास

भारत की कुल कृषि भूमि के महज 35% हिस्से में कृषि कार्य होता है शेष 65% भूमि खाद गड्ढे, गोचर, ऊसर और बंजर के नाम राजस्व भू-अभिलेख में दर्ज है। इस विपुल भू संपदा पर हुक्मरानों का लगभग आधी सदी से अधिक से खुलेआम अतिक्रमण है। हुकूमतें आती है चली जाती हैं लेकिन गोचरी की भूमि कभी गोवंश के लिए खाली नहीं की जाती सिर्फ गौशाला निर्माण का कोरा ढोंग होता है। जिस वजह से देश का गोधन खाना-ब-दोश सड़कों बाजारों खेत खलियानों में लावारिस भूखा प्यासा लहूलुहान भटक रहा है।
आज देश का हर किसान असुरक्षित और असहाय हो चुका है। मौसम की प्रतिकूलता का कहर जितना किसान को बर्बाद नहीं कर पा रहा है उससे कहीं अधिक आवारा घूमते हुए पशुओं का कहर किसान की जिंदगी पर कलंक का धब्बा बन चुका है। पूरे देश का किसान आज भटकते हुए गौवंश के दंश से बेहद असुरक्षित है। प्रशासन मौन धरे मूकदर्शक जैसा खड़ा है किसान अपने हालात पर रो रहा है। इस विद्रूपता के कारण विपुल मात्रा में गोबर और गोमूत्र सड़कों पर बिखर कर बर्बाद हो रहा है। किसान यूरिया और विषाक्त रासायनिक कीटनाशकों के बदौलत खेती करने को मजबूर है। जिसके कारण पूरा देश विषाक्त रोगों से ग्रसित है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा रोग ग्रस्त राष्ट्र बन चुका है। दुनिया के सर्वाधिक कैंसर, डायबिटीज, हार्ट अटैक, असंतुलित रक्तचाप और चर्म रोगों से ग्रसित राष्ट्र हो चुका है। यदि संपूर्ण गोचर भूमि खाली हो जाए तो न तो देश का किसान असुरक्षित रहेगा और ना ही भारतवर्ष रोग ग्रस्त राष्ट्र होगा।
गोचर की भूमि को यदि गोधन के लिए समुचित इस्तेमाल किया जाए तो भारतवर्ष पुनः गौ आधारित अर्थव्यवस्था पर अवलंबित हो जाएगा जिससे समूल रूप से बेरोजगारी पर अंकुश लगाया जा सकता है। राष्ट्र आत्मनिर्भर हो सकता है। राष्ट्र में उत्तरोत्तर सुधार हो सकता है। सुनिश्चित रूप से अपना राष्ट्र पुनः सोने की चिड़िया हो जाएगा लेकिन हमारे हुक्मरान जमीन के बंदरबांट में लगे हुए हैं। प्रशासन मौन दर्शक बना खड़ा है। किसी को भी किसान की इस विषम समस्या से कोई वास्ता नहीं है। आज अगर हम इस व्यवस्था के लिए लामबंद नहीं हुए तो हमारी जिंदगी का संकट दिन-ब-दिन गहराता जाएगा। अतः आवश्यक है। हम सब मिलकर इस दुर्व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन प्रारंभ करें। भारत को आज नंदी सेना की आवश्यकता है। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के अवसर पर एक विशाल नंदी यात्रा माघ पर्यंत निकालने का प्रस्ताव रखा गया है। जिसके तहत न्यूनतम 500 गोधन की एक यात्रा पूरे मेला क्षेत्र में लगातार एक महीने निकालकर विश्व के हर वर्ग के समक्ष अपनी व्यथा का उद्घाटन करने का अवसर हमारे सामने है। हम सब लोग इस दिशा में एक साथ अग्रसर हो कर अपनी समस्या का समाधान हो सकते हैं। कुंभ मेले के अवसर पर नंदी यात्रा निकालने के लिए आइए हम सब लोग पहल करें कुंभ मेले में यात्रा निकालने के बाद पूरे उत्तर प्रदेश के हर गांव के भटकते हुए गोधन को हम लोग एक साथ लेकर लखनऊ में विधानसभा का घेराव करें सारे ही पशु धन को एकत्रित करके लखनऊ ले चलें और उन्हें हुकूमत को सौंप दें।
आज आबादी के इलाकों में 5 किलोमीटर की परिधि के अंतर्गत लगभग 6000 पशुधन निर्वासित आवारा भटक रहे हैं। यदि इतने आंकड़े के गोधन के गोबर और गोमूत्र को वैज्ञानिक विधि से प्रयोग किया जाए तो 500 गैस के सिलेंडर नित्य उत्पादित किए जा सकते हैं 40000 किलो कंपोस्ट और वर्मी कंपोस्ट की खाद तैयार हो सकती है। कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से गोमूत्र के द्वारा प्राकृतिक तरीके से कीटनाशकों का निर्माण हो सकता है। विभिन्न प्रकार की औषधियां बन सकती हैं। जिनसे नित्य लगभग ₹4000000 ( चालीस लाख ) रोज की आय हर नंदीग्राम से प्राप्त की जा सकती है जिसके द्वारा देश की समूची बेरोजगारी पर सुनिश्चित रूप से अंकुश लगाया जा सकता है। देश को स्वस्थ किया जा सकता है। भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाया जा सकता है अतः आवश्यक है कि हम सब आज लामबंद हो जाएं कुंभ मेले के इस महान अवसर का लाभ उठाएं और देश को सोने की चिड़िया बनाने का यत्न सिद्ध करें।