सुल्तानपुर

शबेग़म का सीना चीरकर उजालों की तारीख़ लिखती है डी एम मिश्र की शायरी

Shiv Kumar Mishra
30 July 2021 11:08 AM GMT
शबेग़म का सीना चीरकर उजालों की तारीख़ लिखती है डी एम मिश्र की शायरी
x

लेखक ....हबीब अजमली

एक आम इन्सान भी वही सोचता है जो एक शायर या कवि सोचता है । शायर का क़सूर सिर्फ़ इतना होता है कि वह अपनी सोच और ख़याल को शब्दों का लिबास अता करता है और यही कारण है कि उसके द्वारा रची हुई किसी कविता या ग़ज़ल के अश्आर में श्रोता या पाठक को अपनी कैफ़ियत नज़र आती है । शायर का अपने अश्आर के ज़रिये आम इंसान के दिल में उतर जाने का हुनर ही उसे आम इंसान से ख़ास बनाता है । डी एम मिश्र अपनी जिस जीवन नौका पर सवार हैं मैं भी उसी कश्ती का एक अदना सा मुसाफ़िर होने के नाते उन्हें बहुत क़रीब से जानता और पहचानता हूँ । सीधे -सादे एक आम इंसान नज़र आने वाले डी एम मिश्र फ़ितरी तौर पर पहले शायर हैं बाद में और कुछ ।

अदब और साहित्य सुलतानपुर की मिट्टी या यूँ कहिए यहाँ की आत्मा में रचा -बसा है । पं0 राम नरेश त्रिपाठी , मजरूह , अजमल, त्रिलोचन ,व मान बहादुर सिंह जैसे महान कवि और शायर इसी माटी की उपज हैं । इन महान हस्तियों से अपार स्नेह व श्रद्धा रखने वाले इसी धरती के अज़ीम फ़रज़न्द डी एम मिश्र किसी परिचय के मोहताज नहीं । हिन्दी -उर्दू मंचों पर यकसाँ मक़बूल और सराहे जाने वाले इस शायर ने हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के आसान और खू़बसूरत शब्दों से अपनी शायरी के निगारख़ाने को सजाया और सँवारा है । शायर वही है जिसका कलाम इंसानी दर्द व ग़म का तर्जुमान तो हो लेकिन हताशा व निराशा के बजाय उसके कलाम में ज़माने के दुख -दर्द का हौसले के साथ मोक़ाबला करने का जज़्बा नुमायाँ हो । डी एम मिश्र की शायरी ऐसी ही तमाम नफ़सियाती विशेषताओं की हामिल है । वे कवि पद की गरिमा और शायरी के मक़सद दोनों से भलीभाँति वाक़िफ़ हैं । उनकी रचनाओं में इंसान और शायर दोनों की श्रेष्ठता का एहसास नुमायाँ तौर पर झलकता दिखायी देता है ।

डी एम मिश्र शबे ग़म से परेशान नहीं होते। वे उजालों की तारीख़ लिखते हैं । उनकी शायरी ग़म की काली रात का सीना चीरकर नयी सुबह के आने की खुशख़बरी देती है। शायरी , संगीत , चि़त्रकारी या नृत्यकला हमारी सतही सोच और ख़यालात से अपना रिश्ता मज़बूत नहीं करती बल्कि हमारी अंतरात्मा को बेदार करने के लिए हमारा हृदयद्वार खटखटाती है । ऐसे ही दिल को छू लेने वाले कुछ अश्आर मुलाहेज़ा कीजिए -

झोपड़ी गिरती थी उसकी फिर उठा लेता था वह

कौन -सा तूफ़़ान था जो उससे टकराया न था

वक़्त की हर मार उसने मुस्कराकर झेल ली

मुफ़लिसी थी सिर्फ़ घर में कुछ भी सरमाया न था

सुबह से शाम तक जो खेलते रहते हैं दौलत से

उन्हें मालूम क्या मुफ़लिस की क्या होती है दुश्वारी

सहारा था उन्हें बनना सहारा ढूँढते हैं वो

कहीं का भी नहीं रखती जवाँ बच्चों को बेकारी

कुछ लोग शायरी का हुस्न केवल पानी, रंग या सनअतकारी में खोजते हैं हालाँकि यह मनुष्य के उच्च विचारों और तीव्र अनुभवों का सूचक है । चाहे वह बीता हुआ युग हो या आज का , हर ज़माने में उसी कवि की रचनाओं को सराहा गया जिसने आदमी कें दर्द को महसूस किया और माहौल के कर्ब को अपनी कविता का पैराहन दिया है । डी एम मिश्र के ये शेर भी आपकी निगाहों के तालिब हैं -

ग़रीबों की बुझी आँखों में दिखलायी नहीं देता

अँधेरी खोह के भीतर हमेशा रात होती है

कहीं छप्पर उड़ा देना , कहीं दीये बुझा देना

हमें मालूम है आँधी की जो औक़ात होती है

उधर आकाश था ऊँचा , इधर गहरा समंदर था

हमारे पास टकराने को उनसे एक ही सर था

अपने शहर की गली -कूचों यद्यपि वो बहुत ही आकर्षक और आबाद हैं इसके बावजूद वे स्वयं को अकेला महसूस करते है जिसे जुल्म की चक्की रातदिन पीस रही है,पर वो किसी से कुछ नहीं कहते सिवाय ईश्वर के क्योंकि -'' सुनि अठि लइहैं लोग सब बाँटि न लेइहैं कोय '- -

ज़िंदगी जितना तुझको पढ़ता हूँ

उतना ही और मैं उलझता हूँ

जब कोई रास्ता नहीं सूझे

ऐ ख़ुदा तुझको याद करता हूँ

अपनी फ़रियाद कहाँ ले जाऊँ

सामने सिर्फ़ तेरे रखता हूँ

डी एम मिश्र की इंसानी हमदर्दी और दुनिया के दर्द को महसूस करने की सलाहियत व क़ाबिलियत उनकी रचनाओं की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती है । यह वह असलियत है जो बड़ी मुश्किल से इंसान के अन्दर पैदा होती हैं । वे शब्दों की बाज़ीगरी से ख़ुद को बचाये रखते हैं । एक जागरूक फ़नकार की तरह वे अपने चारों ओर देश में होने वाली घटनाओं और दुर्घटनाओं पर मौन नहीं रहते बल्कि लोगों को सावधान करते हैं और ज़ालिम पर तंज़ के कड़े प्रहार भी करते हैं -़

यह मत भूलो बापू जी के सपनों का यह भारत है

जिसमें हिटलरशाही हो मैं उस वज़ीर से डरता हूँ

यह देश तुम्हारा भी है भूलो न मेरे यार

रक्खो ज़मीं पे पाँव तो अधिकार से चलो

पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे

हर क़दम पर भेड़िये पहले न थे

इन नेताओं की फ़ितरत को पहले आप समझ लें

बाहर से ये लगें विरोधी एक हैं लेकिन अन्दर

डी एम मिश्र के यहाँ जो अलामतें इस्तेमाल हुई हैं उनमें नयापन है और यही नयापन उनके लहजे को एक अलग रूप देता है । '' बचपन का एलबम ,तिनके को तलवार बनाना ,माथे की अशुभ लकीरें ,ख़ुद्दार जुगनू, नियति का मधुमास , हिंदू होते हुए ख़ुद को थोड़ा मुसलमान करना ,कुल्हाड़ा देखकर पेड़ का रोना , अमन के लिए पत्थर उठाना , सुबहों , शामों, यादों,अरमानों,ख़्वाबों , नोटों और लाशों पर हुकूमत का बुलडोज़र चलाना ,जनतंत्र का कोठा ,छप्परों की क़ब्र ,काँटों के बिस्तर से इश्क़, आँसुओं की नदी में मोतियों का थाल , और भूख - प्यास पर ताले लगाना इत्यादि जैसी तरकीबें हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं। यह तो कुछ भी नहीं उनके यहाँ ऐसी तरकीबों का एक सैलाब है जो उनकी काव्य शैली को एक अनोखी पहचान अता करता है । यह इज़हार , यह अलामतें उनकी अपनी हैं। वे न तो किसी की नक़ल करते हैं और न ही किसी की पैरवी । उन्होंने अपनी राहें ख़ुद निकाली हैं । यह अश्आर भी हमें ग़ौरो फ़िक्ऱ करने पर आमादा करते हैं -

नज़र उसकी गड़ी रहती मेरी गाढ़ी कमाई पर

यही डर है वो फिर नोटों पे बुलडोज़र चला देगा

साँस लेने पर भी जी एस टी लगे

वेा मसौदा भी बनाया जा रहा

उधर लुटेरे देश लूटकर , देश से भाग रहे

चैकीदार सो रहा है रखवाली गायब है

स्वप्ननगरी के लिए मेरी ज़मीनें छिन गयीं

छप्परों की क़ब्र पर अब इक शहर था सामने

मेरे लिए सबसे बड़ी प्रसन्नता और थोड़ा कुछ तअज्जुब की बात यह है कि शऊरी और लाशऊरी तौर पर कहीं -कहीं उनकी शायरी में दुष्यन्त , अदम , अजमल की शायराना नुदरत बयानी के साथ ही अपनी सदी के सबसे बड़े शायर अल्लमामा इक़बाल की ख़ुदी को क़ायम रखने वाली नसीहतों की प्रतिध्वनि भी सुनायी देती हैं । यह बहुत बड़ी बात है कि इनके विचारों को इन महान हस्तियों का समर्थन प्राप्त है जो कोई ऐब नहीं बल्कि किसी कवि के लिए बडे सौभाग्य की बात है । ज़्यादा विस्तार में जाने से मज़मून तवील हो जायेगा इसलिए केवल एक उदाहरण पेश कर रहा हूँ -

राम , रावन सब इसी दुनिया में आ करके बनें

जन्म से इन्साँ कोई अच्छा बुरा होता नहीं

- डी एम मिश्र

अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नुम भी

ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है , न नारी है

-- अल्लामा इक़बाल

डी एम मिश्र के यहाँ ऐसे अश्आर की अधिकता है जो हमारे मुर्दा ज़मीरों को झिंझोड़ते हैं । हमारी ख़ुद्दारी , हमारे स्वाभिमान को जगाते हैं और उनकी रक्षा के सजग प्रहरी बन जाते हैं । उनका यह संग्रह '' वो पता ढूँढें हमारा '' ग़ज़लों का एक ऐसा इत्र-ए - मजमूआ है जो पाठकों के दिलोदिमाग़ और रूह तक को अपनी खुशबू से मोअत्तर करता है ।

डी एम मिश्र जी कोई ऐसे गुमनाम शायर नहीं हैं जिनका पता खोजना पडे़ । किसी आधार या पैन कार्ड में नहीं उन्हें पाने के लिए हमें उनकी काविशों के इस ख़ूबसूरत संग्रह के पृष्ठों को पलटना होगा जिसका एक - एक शेर अपने अन्दर उनके होने का पता देता है । मिश्र जी मुझसे उम्र में बड़े हैं लेकिन शेर कहने की उमंगें मुझसे ज़्यादा जवान हैं । मेरी कामना है कि उनकी शायरी का यह सफ़र कभी न ख़त्म हो -

सामने गर हो किनारा तो बहुत कुछ शेष है

हौसला जिंदा तुम्हारा तो बहुत कुछ शेष है

असफल हों या सफल हों पर आस मर न जाये

बेशक हों तृप्त लेकिन यह प्यास मर न जाये

यूँ तो डी एम मिश्र ने शायरी की हर विधा में महारत रखने के साथ - सााथ गद्य लेखन में भी अपना खास मोकाम बनाया है मगर मेरी नज़र में उनकी ग़ज़लगोई का शजर ज़्यादा फूलता फलता हुआ मालूम होता है । मुझे विश्वास है कि उनकी ग़ज़लों का यह संग्रह '' वो पता ढूँढें हमारा '' पाठकों द्वारा काफ़ी पसंद किया और सराहा जायेगा । इसी के साथ ही मैं डॉ इक़बाल के इस शेर के साथ अपनी बात ख़त्म करता हूँ-

तू रहनवर्दे शौक़ है मंज़िल न कर क़बूल

लैला भी हमनशीं हो तो महमिल न कर क़बूल

सम्पर्क -हबीब अजमली , 1806 /5 हनीफ़नगर , सुलतानपुर , मोबाइल नं0 9919798772

डी एम मिश्र की चर्चित ग़ज़ल की किताबें .1 आईना दर आईना 2 वो पता ढूँढें हमारा 3 लेकिन सवाल टेढा है

Next Story