सुल्तानपुर

डी एम मिश्र की ग़ज़ल की किताब "लेकिन सवाल टेढ़ा है" -का लोकार्पण परिसंवाद

Shiv Kumar Mishra
2 Sep 2021 7:15 AM GMT
डी एम मिश्र की ग़ज़ल की किताब लेकिन सवाल टेढ़ा है -का लोकार्पण परिसंवाद
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डी एम मिश्र की ग़ज़लों का मूल स्वर राजनीतिक है - डॉ जीवन सिंह

गज़लें अपने समय को मूर्त करती हैं - रामकुमार कृषक

लिखावट संस्था की ओर से चर्चित कवि व ग़ज़लकार डी एम मिश्र के नये और पांचवें ग़ज़ल-संग्रह 'लेकिन सवाल टेढ़ा है' का लोकार्पण हुआ । कार्यक्रम गूगल मीट पर आनलाइन सम्पन्न हुआ। श्री मिश्र की गजलों पर विस्तार में बात हुई ही, साथ ही उनके नये ग़ज़ल संग्रह के माध्यम से हिन्दी ग़ज़ल की परंपरा, उर्दू व हिन्दी से उसके रिश्ते तथा ग़ज़ल की वर्तमान दशा-दिशा पर परिसंवाद के अन्तर्गत वक्ताओं ने अपने विचार रखे। अध्यक्षता प्रसिद्ध कवि व 'अलाव' पत्रिका के संपादक रामकुमार कृषक ने की। स्वागत वक्तव्य 'पतहर' पत्रिका के संपादक विभूति नारायण ओझा ने दिया। उनका कहना था कि डी एम मिश्र सही अर्थों में जनवादी ग़जलकार हैं। उनकी ग़ज़लों में जन का स्वर है।

इस मौके पर लिखावट के संस्थापक व सुप्रसिद्ध कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा कि डी एम मिश्र की ग़ज़लें अपने समय का प्रतिरोध रचती हैं और अदम गोंडवी की परंपरा को आगे ले जाती हैं। 'पतहर' पत्रिका ने उनकी ग़ज़लों पर केन्द्रित एक विशेषांक निकाला है, यह अच्छा काम हुआ है। उनकी ग़ज़लें अपने समय से जुड़ती है, इसीलिए हमने उन पर यह आयोजन करने का निर्णय लिया।

वरिष्ठ कवि व 'रेवांत' पत्रिका के संपादक कौशल किशोर ने कहा कि हिन्दी में भारतेंदु और उसके बाद के हर दौर में ग़ज़लें लिखी गईं/कही गईं। लेकिन आज जब हम ग़ज़ल पर बात करते हैं तो अदम और दुष्यंत हमारे सामने होते हैं। उनकी सामाजिक चेतना, सामाजिक सरोकार, आधुनिक भावबोध और यथार्थवादी सोच ने ग़ज़ल की जमीन को बदला। उसे जनजीवन से जोड़ा। उन्होंने आगे कहा कि श्री मिश्र दुष्यंत और अदम से बहुत कुछ सीखकर आगे बढ़ रहे हैं। इनकी ग़ज़लें आइने के समान हैं जिनमें आप खुद को देख सकते हैं और अपने आसपास के समाज और इस व्यवस्था को भी। इनकी ग़ज़लों में हौसला, उम्मीद और संघर्ष है तो उतना ही उत्साह भी। उन्होंने डीएम मिश्र का एक शेर उद्धृत करते हुए कहा कि देखिए कि यह शेर हमें कहां तक ले जाता है - 'फ़ूल तोड़े गये, टहनियां चुप रहीं/पेड़ काटा गया बस इसी बात पर'।

चर्चित कवि व आलोचक सुशील कुमार ने कहा डी एम मिश्र निरंतर ग़ज़ल के जनपक्ष पर आगे बढ़ रहे हैं। श्री मिश्र की ग़ज़लों में कंटेंट जितना गहन और जनपक्षधर है उतनी ही उनकी भाषा लचीली और भावप्रवण है। अदम के बाद जिस साहस के साथ ग़ज़ल के कंटेंट, शिल्प, संरचना, संप्रेषणशीलता और भाषागत परिवर्तन पर काम किया गया है, उसमें श्री मिश्र का नाम विश्वास से लिया जा सकता है। उनकी ग़ज़लों का खास गुण उसकी भाषा है जो बोलचाल के बहुत करीब है। उनकी ग़ज़लों में अभिजात्यवादी दृष्टि नहीं बल्कि जनवादी सौंदर्य दृष्टि है। डी एम मिश्र अपनी ग़ज़लों की अंतर्वस्तु और कलापक्ष के बीच जो संतुलन बनाकर रखते हैं, वह अद्भुत है । यही वजह है कि उनकी ग़ज़लें इतनी कम्युनिकेटिंग होती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि श्री मिश्र की ग़ज़लों में दुष्यंत, अदम और कृषक की त्रिवेणी का आस्वाद मिलता है।

वरिष्ठ कवि व आलोचक राजकिशोर राजन ने एक सवाल से अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा कि देखा यह जाना चाहिए कि किसी कवि -शायर ने नया क्या दिया? जब मैंने इस संग्रह को पढ़ा तो यह देखा डाॅ मिश्र ने हिंदी ग़ज़ल के नाम पर ग़ज़ल लिखा है , हिंदी नहीं। हिंदी के शब्दों को उन्होंने जबरदस्ती ठूंसा नहीं है। डी एम मिश्र की ग़ज़लें चमत्कृत करने वाली वाह-वाह ,आह-आह की ग़ज़लें नहीं हैं। यह ग़ज़लें असाधारण के प्रति हमारा जो आग्रह है उसके आगे की ग़ज़लें हैं। इनमें शिशु सुलभ सहजता है। डी एम मिश्र कुछ नया कहने के लिए हजारों शेर जाया कर देने में विश्वास करते हैं । पर नया कहने का आग्रह नहीं छोड़ते।

प्रख्यात आलोचक व कवि डॉ जीवन सिंह ने कहा कि डी एम मिश्र की ग़ज़लें सेकुलर लोकतंत्र की रक्षा करती हैं। ये आदम, दुष्यंत और कृषक से बहुत कुछ सीखते हैं लेकिन यह वही नहीं है। यदि डी एम मिश्र अदम हो जायेंगे तो इनको क्यों पढ़ा जायेगा? अदम को ही न लोग पढ़ लेंगे। डी एम मिश्र की ग़ज़लें बार-बार दुख दर्द की याद दिलाती हैं। जो चीजें लोगों के दुख -दर्द से नहीं जुड़ी होती कविता में उसका कोई मायने नहीं होता। ऐसी ही ग़ज़लें नवजागरण का काम करती हैं। इनकी ग़ज़लें लोकतंत्र के बचाव में खड़ी होती हैं। इनकी भाषा हिंदुस्तानी है क्योंकि ये मिश्रित समाज की पक्षधर हैं ‌।

डॉ जीवन सिंह ने आगे कहा कि श्री मिश्र की ग़ज़लों का मूल स्वर राजनीतिक स्वर है। इनका एक गुण और है। वह छुपाते नहीं सीधे कहते हैं। वह डरते नहीं। अधिकतर व्यंजना में कहते हैं लेकिन वह दो अर्थी नहीं होती। सबकी समझ में आ जाती है। उनकी ग़ज़लें मुखर जनवादी ग़ज़लें हैं। दुख के मार्फत जिंदगी को संवारना डी एम मिश्र की ग़ज़लों की खासियत है। समय इनके यहां मुखर होकर बोलता है। वह अन्याय के विरुद्ध है। अन्याय की गहरी समझ इनकी शायरी में है और इनमें खूब संप्रेषणीयता है। इनकी ग़ज़लें साहित्यकारों को संबोधित नहीं है बल्कि उस आम आदमी के लिए है जिसके लिए लिखी गयी हैं। इनके पास नवोन्मेषी दृष्टि है तभी यह ग़ज़लों में तरह-तरह की नयी रदीफ़ें लाते हैं। जैसे बुल्डोजर चला देगा, लाकडाउन हो गया आदि।

अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध कवि व ग़ज़लकार रामकुमार कृषक ने कहा कि इनके शेर स्वयं अपनी बात कहते हैं, उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने मिश्र जी के कई शेर उद्धृत किये। उन्होंने आगे कहा मिश्र जी के शेर अपने समय कअध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध कवि व ग़ज़लकार रामकुमार कृषक ने कहा कि इनके शेर स्वयं अपनी बात कहते हैं, उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने मिश्र जी के कई शेर उद्धृत किये। उन्होंने आगे कहा मिश्र जी के शेर अपने समय को मूर्त करते हैं। उन्होंने आगे कहा डी एम मिश्र की ग़ज़लें संप्रेषणीय तो हैं ही , भाषा से उनका बहुत गहरा रिश्ता है।

अंत में डी एम मिश्र ने सभी का आभार व्यक्त किया और लोगों के आग्रह पर अपनी एक ग़ज़ल का पाठ किया। इसी से कार्यक्रम का समापन हुआ। इस लोकार्पण कार्यक्रम में प्रशांत जैन, भास्कर चौधरी, दीपक चांदवानी, डी पी सिंह, नारायण ओझा चक्रपाणि ओझा, नागेंद्र मिश्र, डॉ पंकज कर्ण, समदर्शी अशोक, रेनू त्रिवेदी मिश्रा, परशुराम तिवारी, सर्वेश्वर ओझा, अंजुमन मंसूरी आदि उपस्थित रहे।

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