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UP Assembly Election News: अखिलेश कर रहे हैं गठबंधन पर गठबंधन, भाजपा का क्या है प्लान
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को लेकर इस समय भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में पॉलिटिकल माइलेज लेने की होड़ मची हुई है। इसको लेकर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जहां ज्यादा से ज्यादा गठबंधन करने की रणनीति अपना ली है। वही इसके लिए भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक घेरने में लगे हुए हैं। वहीं भाजपा ने भी पुरानी जीत दोहराने के लिए बूथ मैनेजमेंट, जातिगत समीकरण बैठाने और यूपी की बदलती छवि पर फोकस कर लिया है।
2022 में अखिलेश यादव का कुनबा कैसा होगा, उसकी तस्वीर अब करीब-करीब साफ हो गई है। उनके गठबंधन में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), डॉ संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) और कृष्णा पटेल गुट का अपना दल, केशव प्रसाद मौर्य के महान दल ,पॉलिटिकल जस्टिस पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है। जबकि जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन पर सहमति बन गई है। वहीं लेबर एस पार्टी ,भारतीय किसान सेना का सपा में विलय करा लिया है।
सूत्रों के अनुसार अगले हफ्ते मेरठ में समाजवादी पार्टी एक बड़ी रैली करने वाली है। जिसमें राष्ट्रीय लोकदल के साथ औपचारिक गठबंधन का ऐलान हो सकता है। इसके तहत करीब 35-40 सीटों को शेयर करने का फॉर्मूला तैयार हुआ है। इसके तहत कुछ सीटों पर सपा के उम्मीदवार आरएलडी के टिकट पर भी चुनाव लड़ सकते हैं। साफ है कि अखिलेश छोटे दलों को लेकर अपना वोट प्रतिशत बढ़ाना चाहते हैं।
भाजपा ने सबसे पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटव वोटों में सेंध लगाने की तैयारी की है। इसके लिए पार्टी ने समुदाय के लोगों के साथ मेरठ सहित कई जिलों में बैठकें भी शुरू कर दी हैं। इसके लिए पार्टी ने उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को जाटव चेहरे के तौर पर पेश करने का दांव चला है। इसके अलावा पार्टी को उम्मीद है कि बसपा का एक बड़ा जाटव वोटर उसके साथ आ सकता है। खास तौर से प्रधानमंत्री आवास योजना और कोविड दौर से शुरू हुई अन्नपूर्णा योजना उसके लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकती है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद कम से कम नेताओं को लोगों के खुलकर विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि गांवों में एक वर्ग ऐसा भी है जो वापसी पर समर्थकों की खिंचाई भी कर रहा है। साथ ही कैराना में हिंदू पलायन जैसे मुद्दे से भी पार्टी को हिंदू वोट एकजुट होने की उम्मीद है।
इसी तरह गुर्जर जाति , गाजियाबाद, नोएडा, संभल, शामली, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर में काफी प्रभाव रखती है। पिछले चुनावों में भाजपा को जाटों के साथ-साथ गुर्जर वोट भी मिले थे। ऐसे में वह उन्हें साध कर रखना चाहती है। इसीलिए भाजपा ने अशोक कटियार को आगे बढ़ाया है और वह इस समय प्रदेश में मंत्री भी है। नंदकिशोर गुर्जर, तेजपाल नागर , डॉ. सोमेंद्र तोमर, प्रदीप चौधरी भाजपा के विधायक हैं। पार्टी को उम्मीद है कि गुर्जर नेताओं के सहयोग से वह गुर्जर मतदाताओं को साध सकती है।
इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी और अनुप्रिया पटेल के अपना दल के साथ मिलकर भाजपा ने निषाद और कुर्मी वोटर को साधने की कोशिश की है। विकास योजनाओं के जरिए भी पार्टी 2017 जैसा इतिहास दोहराना चाहती है। पार्टी के लिए पूर्वांचल कितना अहम है, यह इसी बात से समझा जा सकता है। पार्टी ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को गोरखपुर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को बनारस की जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी का पूर्वी उत्तर प्रदेश में बूथ मैनेजमेंट पर खास तौर से जोर है। इसके तहत पन्ना प्रमुख से लेकर सभी अहम नियुक्तियां पूरी कर ली गई हैं।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि केवल जातिगत समीकरण पर ही हमारा फोकस नहीं है। हम बदलते उत्तर प्रदेश की छवि को मजबूत करना चाहते हैं। इसके लिए योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में कानून व्यवस्था से लेकर विकास योजनाओं और वैक्सीनेशन में किए गए काम हमारी रणनीति का प्रमुख हिस्सा है।
इसीलिए पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के जरिए सपा के प्रभाव वाले क्षेत्रों में सेंध लगाने से लेकर, जेवर एयरपोर्ट, कुशीनगर एयरपोर्ट,सबसे ज्यादा मेडिकल कॉलेज वाले राज्य, सबसे ज्यादा कोविड-वैक्सीनेशन वाले राज्य के जरिए भी हम जनता के बीच, प्रदेश की बदलती छवि को लेकर जाएंगे। इसी तरह कोशिश है कि जल्द ही बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का भी उद्घाटन कर दिया जाय। काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर का भी दिसंबर में उद्घाटन होना है। साफ है कि भाजपा, अखिलेश के गठबंधन दांव की तोड़ के लिए विकास योजनाएं, नई जातियों में सेंध लगाने से लेकर बूथ मैनजमेंट पर फोकस कर रही है। और राम मंदिर निर्माण मुद्दे को तो पार्टी अपना ट्रंप कार्ड मानती ही है।