
Archived
BHU: प्राचीन समय में दिक्षा मिलती थी, अब सिर्फ डिग्री मिलती है।
शिव कुमार मिश्र
8 April 2018 6:13 PM IST

x
रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग,आयुर्वेद संकाय,चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू के द्वारा आज पदम् श्री वैद्य बालेन्दु प्रकाश, वैद्य चन्द्र प्रकाश कैंसर शोध संस्थान देहरादून एवं शशि चन्द्र रस शाला रामपुर के व्याख्यान का आयोजन किया गया।
आशुतोष त्रिपाठी
वाराणसी। रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग,आयुर्वेद संकाय,चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू के द्वारा आज पदम् श्री वैद्य बालेन्दु प्रकाश, वैद्य चन्द्र प्रकाश कैंसर शोध संस्थान देहरादून एवं शशि चन्द्र रस शाला रामपुर के व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने कहा की आज आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति विश्व में सर्व मान्य हो चुकी है। उन्होंने इसके शास्त्रीय प्राविधानो का गूढ़ अध्ययन कर माइग्रेन की चिकित्सा अन्वेषित की ,जिसका सफलता पूर्वक अध्ययन आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के न्यूरोलॉजी विभाग में चार वर्षो तक चला।
इनका शोध यह कहता है की माइग्रेन बीमारी का सीधा सम्बन्ध आपके खान पान एवं दिनचर्या पर निर्भर करता है। असमय भोजन ,चिन्ता तनाव इसके प्रमुख कारण है। माइग्रेन के रोगियों की पित्त की नाद्दी प्रबल होती है। आज यह बीमारी विश्व स्वास्थय संगठन की सातवे नंबर की बीमारी है जो मनुष्य को अक्षम बना रही है। इन्होंने कहा की यदि नारिकेल लवण एवं रसोन वटी का आयुर्वेदीय चिकित्सक की सलाह के अनुसार किया जाये तो,माइग्रेन की बीमारी से निजात मिल सकती है।
क्रोनिक पंक्रेअतितिस ( पित्ताशय के शोथ ) के सन्दर्भ में बोलते हुए वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने कहा की लगभग १००० करोड़ रुपये भारतीयों के द्वारा इस रोग की चिकित्सा पर खर्च होते है। यह बीमारी १९ -४५ वर्ष के मध्य के रोगियों में अधिक हो रही है। आपने कहा की यदि हम आठ घन्टे की नीद ,तीन भोजन ,तीन नाश्ता एवं तनाव मुक्त जीवन चर्या अपनाये तो एस रोग से मुक्त हो सकते है।
पदम् श्री वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने बल देकर कहा की आज की जमीन एवं जल ,अपनी प्राकृतिक खनिज प्रचूरता को खो चूका है। इसका कारण अत्याधुनिकता है ,रासायनिक अभिक्रियायो का दुष्प्रभाव है। फलस्वरूप हमे प्राकृतिक रूप में वनस्पतियों एवं जल में घुलित ताम्र के खनिज नहीं मिल पा रहे है। अतः क्रोनिक पंक्रेअतितिस (पित्ताशय की शोथ ) की बीमारी बड रही है ,यह एक घातक बीमारी का रूप ले चुकी है। किन्तु इसकी चिकित्सा आयुर्वेद पद्धति से सम्भव है।
वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने छात्रों को उत्साहित करते हुए कहा की आप संकल्पवान बनिये ,सफलता आपके कदम चूमेंगी। होता यह है की आयुर्वेद के विद्यार्थी व शिक्षक साधनों की कमी का रोना रोते है । आज आप डिग्री लेने के लिये पढते है।प्राचीन समय से गुरु से पूर्ण ज्ञान प्राप्ति के पश्चात दिक्षा मिलती थी ,अब सिर्फ डिग्री मिलती है। ज्ञान आपके लिये द्वितीय वरीयता है। होना यह चाहिए की आप ज्ञानार्जन हेतु अध्ययन करे।
वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने कहा की मै अपनी रस औषधियों का निर्माण स्वयं करता हूँ ,मेरी सफलता पारदिय ,ताम्र एवं लौह भस्मो एवं अनेक वानस्पतिक औषधियों से सम्यक निर्मित आयुर्वेदीय औषधियों के कारण ही है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रोफ आनन्द चौधरी ने कहा की आयुर्वेदीय रस औषधियों की सम्पूर्ण सफलता उनकी निर्माण प्रक्रिया में शास्त्र निर्देशों का पालन करने पर ही निर्भर करता है।उन्होंने कहा की लैब में धातू ( स्वर्ण ,रजत ,ताम्र या लौह ) का रासायनिक अभिक्रिया से सूक्ष्मीकरण कर नैनो साइज़ में लाने से इन धातुओ में कोई चिकित्सकीय गुण नहीं उत्पन्न होता है। चिकित्सकीय गुणों की अभिसिंचन हेतु एन धातुओ को आयुर्वेदीय भस्मीकरण की प्रक्रिया से परिपूरित होना ही पड़ता है ।
कार्यक्रम में भारी संख्या में सीनियर रेजिडेंट्स ,जूनियर रेजिडेंट्स ,एवं बी ए एम एस के छात्रों ने भाग लिया।डा० अभिषेक पाठक ,न्यूरोलॉजी विभाग ,आई एम् एस ,डा० संजीव कुमार ,डा० चन्द्रशेखर ,डा० कोमल बंसल ,डा० गुरु प्रसाद ,डॉ विकास ,डॉ गरिमा ,डा० अमित वैभव एवं डा० गुपुन्जे आदि उपस्थित थे ।
व्याख्यान कार्यक्रम के प्रारम्भ में मालवीय जी महाराज के प्रति आभार प्रकट किया गया । अतिथियों का स्वागत प्रोफ के आर सी रेड्डी ,विभागाध्यक्ष ,रस शास्त्र , धन्यवाद ज्ञापन डॉ वन्दना मीणा एवं संचालन डॉ सौम्या गुलाटी ने किया ।
Next Story