वाराणसी

देश के सबसे बड़े मुकाबले की तैयारी, वाराणसी में है किसका पलड़ा भारी, देखिये रिपोर्ट

Special Coverage News
22 April 2019 8:55 AM IST
देश के सबसे बड़े मुकाबले की तैयारी, वाराणसी में है किसका पलड़ा भारी, देखिये रिपोर्ट
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बाबा भोलेनाथ की नगरी में अब एक बार फिर से एक चर्चा गर्म हो रही है. उधर मौसम का तापमान बढ़ता जा रहा है. इधर वाराणसी संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की धडकन तेज हो रही है. अगर प्रियंका और मोदी चुनाव लडे तो वोट किसे देंगे?

पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा है कि अगर उनके भाई और पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं तो वह पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी में चुनाव लड़ने को तैयार हैं. केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र में राहुल गांधी के समर्थन में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यह बात कही. वायनाड लोकसभा क्षेत्र में राहुल गांधी के समर्थन में प्रचार के लिए दो दिवसीय दौरे पर यहां पहुंचीं थीं प्रियंका गांधी. बता दें कि राहुल गांधी अपनी पारंपरिक सीट अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं.


प्रियंका गांधी ने कहा, 'अगर राहुल गांधी कहेंगे तो मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं और मैं वाराणसी से लड़ूंगी.' इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर पीएम मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती हैं तो भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा मुकाबला माना जाएगा क्योंकि एक ओर बीजेपी की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी होंगे और दूसरी ओर गांधी परिवार का बड़ा चेहरा और कांग्रेस की ट्रंप कार्ड मानी जा रहीं प्रियंका गांधी होंगी. प्रियंका अगर वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो हो सकता है कि कांग्रेस को इसका फायदा वाराणसी की आसपास सीटों पर हो सकता है. लेकिन इस मुकाबले के लिए वाराणसी कितना है और स्थानीय समीकरण क्या कहते हैं इस पर भी नजर होगी.

2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे. नरेंद्र मोदी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल से तकरीबन 3 लाख 77हज़ार वोटों से हराया था. दूसरे स्थान पर रहने वाले आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 वोट मिले.

जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के अजय राय को 75,614 वोट, बीएसपी को तकरीबन 60 हज़ार 579 वोट, सपा को 45291 वोट मिले थे. यानि सपा-बसपा और कांग्रेस का वोट जोड़ दे तो 3लाख 90 हज़ार 722 वोट हो जाते हैं.

मतलब पीएम मोदी की जीत जो अंतर था वह सभी दलों के संयुक्त वोट बैंक से पीछे हो जाता है. सवाल इस बात है कि जिस तरह से सपा-बसपा ने रायबरेली और अमेठी में अपने प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो क्या उनके लिए भी रास्ता खाली कर दिया जाएगा.

बात जातिगत समीकरण की करें तो वाराणसी में बनिया मतदाता करीब 3.25 लाख हैं जो कि बीजेपी के कोर वोटर हैं. अगर नोटबंदी और जीएसटी के बाद उपजे गुस्से को कांग्रेस भुनाने में कामयाब होती है तो यह वोट कांग्रेस की ओर खिसक सकता है.

वहीं ब्राह्मण मतदाता हैं जिनकी संख्या ढाई लाख के करीब है. माना जाता है कि विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने में जिनके घर सबसे ज्यादा हैं उनमें ब्राह्मण ही हैं और एससी/एसटी संशोधन बिल को लेकर भी नाराजगी है. यादवों की संख्या डेढ़ लाख है. इस सीट पर पिछले कई चुनाव से यादव समाज बीजेपी को ही वोट कर रहा है. लेकिन सपा के समर्थन के बाद इस पर भी सेंध लग सकती है.

वाराणसी में मुस्लिमों की संख्या तीन लाख के आसपास है. यह वर्ग उसी को वोट करता है जो बीजेपी को हरा पाने की कुवत रखता हो. इसके बाद भूमिहार 1 लाख 25 हज़ार, राजपूत 1 लाख, पटेल 2 लाख, चौरसिया 80 हज़ार, दलित 80 हज़ार और अन्य पिछड़ी जातियां 70 हज़ार हैं. इनके वोट अगर थोड़ा बहुत भी इधर-उधर होते हैं तो सीट का गणित बदल सकता है.

आंकड़ों के इस खेल को देखने के बाद अगर साझेदारी पर बात बनी और जातीय समीकरण ने साथ दिया तो प्रियंका गांधी मोदी को टक्कर दे सकती हैं.हालांकि मोदी ने जिस तरह से पिछले साढ़े चार सालों में वाराणसी में विकास के जो काम किया है क्या उसे नजरंदाज किया जा सकता है, यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

लेकिन हो चाहे कुछ भी लेकिन देश ही नही पूरे विश्व की निगाह में होगा वाराणसी संसदीय क्षेत्र अगर ये दोनों दिग्गज मैदान में उतरे तो. यहाँ एक बात और बता दें कि प्रियंका गांधी के पास कुछ भी खोने को नहीं है पाना ही पाना है जबकि मोदी का कैरियर उसी तरह दाँव पर होगा जिस तरह इंदिरा के सामने राजनारायण थे. अब देखना होगा कि रण होगा या यह भी अफवाह निकलेगी.

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