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चुनाव आयुक्त पर सवाल: कोर्ट में ‘लिफाफों का खेल’ और पोस्टल बैलेट पर उठी शंका

Arun Mishra
26 Sept 2025 9:39 AM IST
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सुनवाई के दौरान यह मुद्दा सामने आया कि पोस्टल बैलेट की गिनती और उसके रखरखाव में पारदर्शिता की कमी रही।

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग को हमेशा एक निष्पक्ष और पारदर्शी संस्था माना जाता है। लेकिन हाल ही में कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद चुनाव आयुक्त की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठे हैं। विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि “लिफाफों का खेल” यानी पोस्टल बैलेट से जुड़े दस्तावेज़ों में गड़बड़ी पकड़ी गई, जिसने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

कोर्ट में क्या हुआ?

सुनवाई के दौरान यह मुद्दा सामने आया कि पोस्टल बैलेट की गिनती और उसके रखरखाव में पारदर्शिता की कमी रही। कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख दिखाते हुए सवाल उठाया कि क्यों मतगणना की पूरी प्रक्रिया को साफ-साफ और सार्वजनिक रूप से दर्ज नहीं किया गया।

पोस्टल बैलेट क्यों बने विवाद का कारण?

पारदर्शिता की कमी:

विपक्ष का कहना है कि कई सीटों पर पोस्टल बैलेट की गिनती या तो देर से हुई या उसे अंतिम राउंड तक रोका गया।

दस्तावेज़ों की सुरक्षा पर प्रश्न:

‘लिफाफों का खेल’ शब्द का इस्तेमाल इस बात की ओर इशारा करता है कि जिन लिफाफों में पोस्टल बैलेट सुरक्षित रखे जाते हैं, उनमें छेड़छाड़ की आशंका है।

आरोप और अविश्वास:

जब भी किसी चुनाव में परिणाम बेहद करीबी होते हैं, तो पोस्टल बैलेट निर्णायक साबित होते हैं। ऐसे में विपक्ष का मानना है कि गड़बड़ी कर परिणाम को प्रभावित किया गया।

चुनाव आयोग की सफाई

चुनाव आयोग ने हमेशा यह दावा किया है कि पूरी प्रक्रिया सुरक्षित और कानूनन तय नियमों के तहत होती है।

हर पोस्टल बैलेट का रिकॉर्ड होता है और उसकी गिनती भी पारदर्शी तरीके से होती है।

कोर्ट में पेश हुए अधिकारी ने कहा कि तकनीकी त्रुटियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है।

राजनीति में गर्मी

विपक्ष लगातार कह रहा है कि चुनाव आयोग अब सरकार की कठपुतली बन गया है।

सत्ता पक्ष का कहना है कि हार की हताशा में विपक्ष संस्थानों को बदनाम कर रहा है।

सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर जमकर बहस हो रही है।

“लिफाफों का खेल” और पोस्टल बैलेट पर उठे सवाल लोकतंत्र की नींव पर चोट हैं।

यदि वास्तव में गड़बड़ी हुई है तो यह बेहद गंभीर मामला है और चुनाव आयोग की साख पर धब्बा है।

अगर आरोप सिर्फ राजनीतिक हथकंडे हैं, तो यह भी उतना ही खतरनाक है क्योंकि इससे जनता का विश्वास चुनाव प्रक्रिया से उठ सकता है।

सच्चाई जो भी हो, ज़रूरत इस बात की है कि पोस्टल बैलेट की गिनती और उसकी पारदर्शिता को लेकर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो। तभी चुनाव आयोग अपनी साख बचा पाएगा और लोकतंत्र पर विश्वास कायम रह सकेगा।



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