
GST का असर आम आदमी की ज़िंदगी पर
त्योहारों का मौसम भारत में सिर्फ खरीदारी और सजावट का समय नहीं होता, बल्कि यह परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों से जुड़ाव का एहसास भी कराता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में एक सवाल हर मध्यमवर्गीय और गरीब परिवार के मन में उठता है—“जेब खाली है, तो उत्सव कैसे मनाएं?”
इसका एक बड़ा कारण है GST (Goods and Services Tax), जो 2017 में लागू हुआ। सरकार का दावा था कि इससे टैक्स सिस्टम आसान होगा और महंगाई पर रोक लगेगी। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि आज आम आदमी को रोज़मर्रा की चीज़ों पर भी ज़्यादा खर्च करना पड़ रहा है।
1. रोज़मर्रा की ज़रूरतें महंगी क्यों?
GST के आने से पहले अलग-अलग चीज़ों पर अलग-अलग टैक्स लगता था। अब सब कुछ एक स्लैब में आ गया है—5%, 12%, 18% और 28%।
दूध, अनाज जैसी चीज़ें ज़्यादातर टैक्स-फ्री हैं, लेकिन पैकेज्ड फूड, मिठाई, कपड़े, जूते, गैजेट्स—सब पर 5% से 18% GST लगता है।
त्योहारों में यही सब चीज़ें खरीदी जाती हैं, जिससे बजट बिगड़ जाता है।
2. छोटे व्यापारियों पर बोझ
छोटे दुकानदारों और कारोबारियों को भी अब हर लेन-देन पर GST का हिसाब रखना पड़ता है।
उन्हें ऑनलाइन रिटर्न भरना होता है।
कंप्यूटर, अकाउंटेंट और टैक्स कंसल्टेंट पर खर्च करना पड़ता है।
इसका असर ये हुआ कि दुकानदार अपना खर्च निकालने के लिए ग्राहकों से ज्यादा पैसे वसूलते हैं।
3. त्योहारों की खरीदारी में गिरावट
पहले लोग दशहरा, दिवाली, ईद या छठ पर नई चीज़ें जरूर खरीदते थे। लेकिन अब GST और बढ़ती महंगाई के कारण लोग ज़रूरी चीज़ों तक ही सीमित हो गए हैं।
कपड़े, जूते, मोबाइल, गिफ्ट्स की सेल घट गई है।
मिठाई और सजावट की चीज़ों में भी लोग सस्ता विकल्प चुन रहे हैं।
4. सरकार का पक्ष
सरकार कहती है कि GST से टैक्स चोरों पर लगाम लगी है और लंबी अवधि में देश को फायदा होगा। टैक्स से मिलने वाला पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर, सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च किया जा रहा है।
लेकिन सवाल ये है कि अगर आम आदमी त्योहार ही ढंग से न मना पाए, तो विकास का फायदा किसे मिल रहा है?
5. आम आदमी के लिए रास्ता क्या?
साझा उत्सव: परिवार और मोहल्ले मिलकर एक जगह उत्सव मनाएं, ताकि खर्च बंट जाए।
स्थानीय चीज़ें खरीदें: ब्रांडेड चीज़ों के बजाय लोकल प्रोडक्ट खरीदने से जेब पर बोझ कम होगा और छोटे व्यापारियों को भी सहारा मिलेगा।
सीमित खर्च, गहरी खुशी: असली उत्सव सजावट या महंगे तोहफों में नहीं, बल्कि साथ बैठकर हंसने-बोलने में है।
GST ने अर्थव्यवस्था को एक ढांचा तो दिया है, लेकिन आम आदमी की जेब पर बोझ भी बढ़ाया है। जब महंगाई और टैक्स दोनों मिलकर जेब खाली कर दें, तो त्योहारों की चमक फीकी पड़ जाती है। असली चुनौती यही है कि विकास और टैक्स सुधारों के बीच आम जनता की मुस्कान बनी रहे।