
Supreme Court में जूता कांड! वकील एपी सिंह तो गज़ब भड़क गए! जमकर सुनाई खरी-खोटी CJI B.R. Gavai
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकना या फेंकने की कोशिश करना उन्हें घायल या जख्मी करने के लिए नहीं किया गया होगा। फेंकने वाला कोई ऐरा-गैरा होता तो बात अलग हो सकती थी लेकिन वह वकील है, ‘बच्चा’ नहीं है और 71 साल का है। मामला निजी भी नहीं है। वकील ने नारा लगाया सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान। जाहिर है, मामला मुख्य न्यायाधीश पर ही नहीं, संविधान पर हमले का भी है। आज इसकी खबर वैसे नहीं है जैसे होनी चाहिए थी। खबर के और भी कई पहलू हैं वो भी होने चाहिए थे लेकिन वैसा कुछ भी नहीं है। साफ है कि यह खबर भी हेडलाइन मैनेजमेंट के काम ही आई। सुबह हमला हुआ, खबर बनी और शाम को बिहार में चुनाव की घोषणा हो गई। इस तथ्य के बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर सुनवाई चल रही थी। आज उसकी तारीख थी। इस तरह देश में जो चल रहा है वह सब तो है ही लेकिन खबरें खास ही छपती हैं और अगर हमला नहीं हुआ होता तो शायद खबर यह होती कि सुप्रीम कोर्ट में तारीख है और चुनाव की घोषणा हो गई। खबर यह भी हो सकती थी कि इसकी आशंका पहले से जताई जा रहे थी और सुप्रीम कोर्ट में अगर मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के मामले में फेट एकम्पली की स्थिति हुई तो अब एसआईआर के मामले में भी हो गई। लेकिन सीजेआई पर हमले की खबर के बाद यह सब गौण हो गया और जाहिर है इसकी खबरें रह गईं। लेकिन सीजेआई पर हमले की खबर तो ठीक से छपती।
अमर उजाला में आज बिहार में चुनाव की घोषणा छह कॉलम में लीड है। सीजेआई पर जूता फेंकने की खबर दो कॉलम की सेकेंड लीड है। नवोदय टाइम्स में चुनाव की घोषणा ही लीड है और भोजपुरी में घोषणा का शीर्षक भोजपुरी में है। सीजेआई पर जूता फेंकने की खबर दो कॉलम में है इसके साथ एक्स पर प्रधानमंत्री के पोस्ट, हर भारतीय नाराज का हवाला भी है लेकिन इसमें मुद्दा था प्रधानमंत्री को यह पोस्ट करने में लगा समय। यहां यह खबर नहीं है। यह जरूर बताया गया है कि मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वे विचलित नहीं हैं। पर वह मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि भाजपा शासन में संविधान या सिस्टम या कानून व्यवस्था को हाथ में लेने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। कई मामलों में दिखता है कि सरकार समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और कई ऐसे मामलों में भाजपा का प्रचार तंत्र या उसकी सोशल मीडिया टीम ऐसा हंगामा करती है जैसे भारी अनर्थ हो गया हो लेकिन कायदे से शिकायत, एफआईआर या कार्रवाई नहीं होती है। राहुल गांधी उसके उदाहरण हैं और सेना के अफसर के लिए अपशब्द कहने वाले मध्य प्रदेश के मंत्री सरकारी सुरक्षा के। ऐसा मामले जिस ढंग से बढ़ रहे हैं उसमें यह तय किया जा सकता था कि इसकी खबर नहीं देनी है और यह हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग हो सकता था। लेकिन खबर जैसे छपी है उससे नहीं लगता है कि इसपर विचार किया गया होगा या ऐसे ही छपने देने का निर्णय़ होगा या मीडिया ने ऐसे निर्णय़ को मान लिया होगा।