सरहिंद की ज़मीन पर मुगलों का अत्याचार, साहिबजादों का बलिदान और दीवान टोडरमल के समर्पण की कथा

Update: 2022-07-17 05:46 GMT

क्या आप जानते है कि विश्व में किसी भूमि के टुकड़े का सबसे अधिक दाम चुकाया गया है वह स्थान अपने देश में ही पंजाब पंजाब प्रांत में स्थित सरहिन्द है और विश्व की इस सबसे महंगी भूमि को ख़रीदने वाले व्यक्ति का नाम दीवान टोडरमल था जो की एक मुगल कर्मचारी थे।

आइए आज आपको गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे साहिबज़ादों बाबा फ़तेह सिंह और बाबा ज़ोरावर सिंह की शहादत की दास्तान सुनाता हूं। यहीं सरहिन्द के फ़तेहगढ़ साहिब में मुग़लों के तत्कालीन फ़ौजदार वज़ीर खान ने दोनो साहिबज़ादों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था l हम भारतीयों ने गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को सिर्फ 300 साल में भुला दिया। कितनी जल्दी भुला दिया हमने इस शहादत को.:-

अपने धर्म से का त्याग नहीं किया

मौत के भय से इस्लाम ग्रहण नहीं किया

लालच इनको छू नहीं पाया

दर्दनाक मौत स्वीकार की लेकिन

उसूलों और धर्म को आंच ना आने दी।

अपने धर्म को त्यागना उचित नहीं समझा।

आइए आपको सरहिंद ले चलता हूं। उस दिन की बातचीत सुनाता हूं।

पूस का 13वां दिन… नवाब वजीर खां ने पूछा बोलो इस्लाम कबूल करते हो ?

6 साल के छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा…अगर मुसलमान हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे ?

तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमान हो के भी मरना ही है, तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें ?

दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ ।

दीवार चिनी जाने लगी, जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा l फ़तेह ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है ?

जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर कौम के लिए शहीद तू पहले हो रहा है l उसी रात माता गूजरी ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए।

दीवान टोडर मल जो कि इस क्षेत्र के एक अमीर व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ लुटा देने को तैयार थे उन्होंने मुग़ल नवाब वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की और वह भूमि जहाँ वह शहीद हुए थे वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की l वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी l वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी वही इस भूमि का दाम होगा l

दीवान टोडर मल के अपने सब धन एकत्र करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी ताकि अधिक से अधिक मोहरें वसूली जाकें l ख़ैर दीवान टोडर माल ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज़ भूमि को ख़रीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके l इसी सरहिंद का नाम इसके बाद बदलकर फतेहगढ़ साहिब कर दिया गया।

विश्व के इतिहास में ना तो ऐसे त्याग की कहीं कोई और मिसाल मिलती है ना ही कहीं पर किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया l जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा की वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा.

ज़रा सोचिए दीवान टोडर मल ने क्या माँगा होगा गुरु जी से ?

दीवान जी ने गुरु जी से जो माँगा उसकी कल्पना करना भी असम्भव है l दीवान टोडर मल जी ने गुरु जी से कहा की यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म ले और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए l

इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए l गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दे l दीवान टोडर मल ने उत्तर दिया कि गुरु जी, यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर ख़रीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी मैं नहीं चाहता की कल को मेरे वंश आने वाली नस्लों में से कोई कहे की यह भूमि मेरे पुरखों ने ख़रीदी थी l

गुरु साहिब जी के परिवार के प्रति इस वफादारी के बदले क्रूर नवाब इतना आग बबूला हुआ कि उसने बाद में दीवान टोडरमल की हवेली तथा उनकी सारी जमा पूंजी नष्ट करवा दी।

चंडीगढ़ से आनंदपुर के रास्ते में पंजाब में वह जगह सरहिंद आज भी है और वहां दीवान टोडरमल की हवेली आज भी उसी टूटी-फूटी अवस्था में खड़ी हुई है | जिस अवस्था में नष्ट करने के बाद नवाब वजीर खान के सिपाहियों ने नष्ट करके छोड़ी थी | शुक्र है अब इसके नवीनीकरण का कार्य प्रारभं हो गया है | उन साहिबजादों और दीवान टोडरमल को श्र्द्धांजलि देने इतिहासकार मनीष कुमार गुप्ता पहुंचे।

इतिहासकार मनीष कुमार गुप्ता लिखते है कि जब गुरु परिवार पर संकट की घडी आई, जहाँ अपने ही जान के लाले पड़ रहे हो, हिन्दुओं और सिखों की आन-बान-शान खतरे में हो ऐसे में दीवान टोडरमल ने धर्म की रक्षा हेतु और गुरु गोविन्द साहिब के प्रति जो वफ़ादारी दिखाई इसे उनका नाम न केवल सिख इतिहास में अमर हो गया।

इतिहास में जब भी दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह जी तथा फ़तेह सिंह जी की शहादत की चर्चा होगी तो दीवान टोडरमल की गुरु घर के प्रति निष्ठा तथा समर्पण का जिक्र किए बगैर इतिहास आगे नहीं बढ़ेगा। यह सप्ताह भारत के इतिहास में 'शोक सप्ताह' होता है, शौर्य का सप्ताह होता है, और हमनें जिहादी सोच और आतताइयों से दोस्ती कर ली खालिस्तान का चोगा ओढ़कर पाकिस्तान से मिलने की साजिशे रचाने लगे। अगर यह पढ़कर आपकी आंखों में पानी नहीं आया तो सोचो कहां आ गए हम?

हमारे पुरखे जो जो बलिदान देकर गए हैं वह अभूतपूर्व है और इन्ही बलिदानों के कारण ही हम लोगों का अस्तित्व अभी तक है l हमारी इतनी औक़ात नहीं कि हम इस बलिदान के हज़ारवें भाग का भी ऋण उतार सकें l

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मनीष कुमार गुप्ता पौराणिक इतिहासकार 9810771477

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