बिहार चुनाव स्पेशल: सबहिं नचावत राम गुसाईं - प्रेमकुमार मणि
पौराणिक चीलों ने उसका कलेजा काढ़ खाया ; लेकिन उसने धरती पर आग लाकर ऊर्जा स्रोत ला दिया और मर्त्यलोक का अँधेरा मिटा दिया .;
प्रेम कुमार मणि
लोकजनशक्ति पार्टी के सदर चिराग पासवान इस चुनाव में अलग- थलग दिख रहे हैं . उनकी पार्टी एनडीए के कुजात हिस्से के रूप में 135 सीटों पर चुनाव लड़ रही है . वह अपवाद स्वरुप एक या दो सीट पर भाजपा उम्मीदवार के भी खिलाफ हैं ;लेकिन मुख्य रूप से उनकी लड़ाई नीतीशे कुमार से है . उनका संकल्प है किसी भी प्रकार नीतीश कुमार को सत्ता में नहीं आने देना है .
भाजपा नेताओं की तरह चिराग भी पौराणिक प्रतीकों का खूब इस्तेमाल करते हैं . अयोध्या के राममंदिर निर्माण के दौरान उसका स्वागत करते हुए उन्होंने खुद को शबरी की संतान बताया था . मैंने एक पोस्ट के द्वारा उनसे पूछा था कि आप स्वयं को शम्बूक की संतान क्यों नहीं मानते . लेकिन ,इस पर तो उनकी मर्जी होनी ही चाहिए कि किस धारा या परंपरा से जुड़ते हैं . अब वह अपने को हनुमान बतला रहे हैं . ऐसा प्रतीत होता है रामकथा से उन्हें विशेष लगाव है . यह अच्छी बात है . पौराणिकता का इस्तेमाल करना कोई बुरी बात नहीं . महान विचारक कार्ल मार्क्स स्वयं को प्रोमेथ्युस( Prometheus ) के रूप में रखते थे . प्रोमेथ्युस एक ग्रीक देवता है ,जो स्वर्ग से आग लेकर धरती पर आ रहा था . वह शहीद हो गया . पौराणिक चीलों ने उसका कलेजा काढ़ खाया ; लेकिन उसने धरती पर आग लाकर ऊर्जा स्रोत ला दिया और मर्त्यलोक का अँधेरा मिटा दिया .
कल एक कार्यक्रम के दौरान मुझ से पूछा गया कि चिराग के हनुमान रूप पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? यह एक अजूबा -सा सवाल था मेरे लिए . लेकिन मैंने कहा कि हनुमान और शम्बूक रामकथा में दलितों के दो रूप हैं . हनुमान पराक्रमी थे . बहादुर और जादुई व्यक्तित्व . कुछ भी उनके लिए असंभव नहीं था . उन्होंने अपनी पूरी शक्ति से राम की सेवा की . लंका- युद्ध में उनका पराक्रम सर्वोपरि था . उनकी बदौलत ही राम ने रावण को पराजित किया और सीता को मुक्त कराया . लेकिन रामराज में उनकी कोई खास औकात नहीं बन सकी . हनुमान पूंछ डुलाते और राम के चरणों में बैठे देखे गए . एक बार तो उन्हें भक्ति का प्रमाण भी दिखाना पड़ा ,जिस में वह अपना सीना फाड़ कर राम को वहाँ अवस्थित दिखाते हैं . मेरे लिए यह अत्यंत ही करुण प्रसंग है . लेकिन कुल मिला कर यह होता है कि रामभक्ति के लिए अंततः उन्हें पुरस्कार मिलता है . जगह -जगह मंदिर , मूर्तियां और लड्डुओं के पुख्ता इंतजाम .
लेकिन शम्बूक एक अलग प्रसंग है . वह दैहिक ताकत नहीं ,ज्ञान की ताकत का प्रतीक है . ज्ञान हासिल करने का अधिकार वर्णाश्रमी समाज में केवल द्विज का है . दलित -शूद्र हनुमान की तरह शारीरिक पराक्रम दिखलाएं , भक्ति करें . इसके एवज में उनके लिए सत्ता में लड्डुओं के इंतजाम संभव हैं . लेकिन यदि उन्होंने ज्ञान की ताकत हासिल करने की कोशिश की ,तो सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा . रामराज में हनुमान के लिए लड्डुओं की व्यवस्था हुई और शम्बूक का वध हुआ . यही रघुकुल रीति है . रामराज का आदर्श है .
चिराग होशियार हैं . वह शम्बूक की चर्चा भी नहीं करते ,उनके पिता अपने सोशलिस्ट दौर में खूब करते थे . चिराग चालाक हैं . उन को हनुमान बनना है . उनकी नजर सत्ता के लड्डुओं पर है . उन्हें अपने राम के लिए काम करना है . उनके राम आज उनके नरेंद्र मोदी हैं . जिनकी छवि उनके ह्रदय में विराजमान रहती है . अपने इस भाव को चिराग ने पूरी भक्ति और स्पष्टता के साथ बार -बार दुहराया है . अपने बिहार के प्रथम चुनावी रैली में ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस भक्त के दिवंगत पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि दी और ऐसा कर के बहुत कुछ कह दिया .
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का यह आधुनिक हनुमान अपने आप में पहेली है . पौराणिक हनुमान ने तो रावण से लड़ाई की थी . यह हनुमान विभीषण से लड़ रहा है . चुनाव सभा के मंच पर विभीषण बार -बार राम की तरफ देख रहा है कि राम अपने हनुमान को कुछ फटकार लगाएंगे . लेकिन राम ने इस विषय पर चुप्पी साध ली . कोई भी इस चुप्पी के अर्थ को समझ सकता है .
बिहार के इस चुनाव में एनडीए अपने चरित्र में भीतर फाँके तीन है . उसे अपने अंदरूनी लड़ाई से ही फुर्सत नहीं है . उसकी इस स्थिति ने महागठबंधन के लिए अनुकूलता पैदा कर दी है . लेकिन जनता को तो समझना है कि विभीषण के विरुद्ध हनुमान के प्रत्यक्ष और राम के छुप कर तीर चलाने की राजनीति क्या है . पौराणिक रामकथा में बाली को समझ में नहीं आया था कि सात ताड़ -वृक्षों से छुप कर मर्यादा पुरुषोत्तम भला तीर क्यों चला रहा है ! उसने गहरे दुःख के साथ कहा ' कारन कवन नाथ मोहि मारा ' . इस आधुनिक कथा में विभीषण को समझ में नहीं आ रहा कि इस ज़माने का राम भला छुप कर तीर क्यों चला रहा है ! उसकी स्थिति भी बाली की तरह ही है . वह भी बरबस कहना चाहता है -' कारन कवन नाथ मोहि मारा ' .
लेखक बिहार से एमएलसी रह चुके है