अमित शाह के एक बयान ने ही कैसे बदल दी बिहार की पूरी राजनीति!
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, दोनों पार्टियों का गठबंधन 'अटल' है. जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी चुनाव में एक साथ नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही उतरेंगी. यह एकदम स्पष्ट है
पटना. नेटवर्क 18 के एडिटर-इन-चीफ राहुल जोशी (Rahul Joshi) के साथ बात करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (Amit shah) ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार में 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) का नेतृत्व नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ही करेंगे और पूरा एनडीए उन्हीं के लीडरशिप में चुनाव लड़ेगा. जाहिर है उनके इस एक बयान ने न सिर्फ डैमेज कंट्रोल (Damage Control) कर दिया बल्कि बिहार की पूरी राजनीति ही बदल कर रख दी. उनके इस एक स्टेटमेंट ने अविश्वास और असमंजस के बीच फंसी बिहार एनडीए की राजनीति (NDA Politics) को एक झटके में तमाम कयासबाजियों और बयानबाजियों के भंवर से निकाल दिया है.
BJP-JDU के बीच खत्म हुई भ्रम की स्थिति
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि अमित शाह के बयान का सबसे ज्यादा असर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं पर होगा क्योंकि उनके बीच भ्रम की स्थिति खत्म होगी. सीएम नीतीश कुमार और बिहार NDA के बारे में अब किसी को कोई भ्रम नहीं रहेगा कि आखिर NDA का नेता और चेहरा बिहार में कौन है. दूसरी ओर इसका असर विरोधी महागठबंधन पर भी पड़ना लाजिमी है, क्योंकि वो यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि बीजेपी-जेडीयू अलग होते हैं तो उन्हें इसका लाभ मिलेगा.
नीतीश की सर्वमान्यता पर लगी मुहर
बता दें कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, दोनों पार्टियों का गठबंधन 'अटल' है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और बीजेपी चुनाव में एक साथ नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही उतरेंगी. यह एकदम स्पष्ट है. रवि उपाध्याय के मुताबिक इस घोषणा के बाद ही यह भी एक बार फिर साबित हो गया कि नीतीश कुमार न सिर्फ एनडीए का चेहरा हैं बल्कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी अभी यही चाहता है कि उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ा जाए.
हार में कयासबाजियों पर रोक लगी
बिहार में बीते कई महीनों से अटकलों का बाजार गर्म था कि बीजेपी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से जुदा होकर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती है. कयास लगाए जा रहे थे कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, संजय पासवान और सच्चिदानंद राय जैसे नेताओं को इसी कारण आगे किया गया था ताकि दोनों ही पार्टियों के बीच दूरी बढ़े और मौका देखकर अलग हो जाया जाए. हालांकि यह अटकलें निर्मूल (निराधार) निकलीं.