प्रशांत किशोर के बढते राजनीतिक ग्राफ को रोकने के लिए JDU ने रचा ये 'खास चक्रव्यूह'!

प्रशांत किशोर ने भले ही सार्वजनिक तौर पर इस बात का ऐलान किया था कि बिहार चुनाव में हार या जीत के लिए किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे,

Update: 2020-02-22 08:44 GMT

पटना। बिहार में भले ही सियासी दंगल का शंखनाद नहीं हुआ है, मगर अभी से ही राजनीति की हवा तेज होने लगी है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सक्रियता से किस तरह बिहार में सियासी खिचड़ी पक रही है, इसका अनुमान लगाना फिलहाल थोड़ा मुश्किल है, वही प्रशांत किशोर का कार्यक्रम 'बात बिहार की' बिहार में लांच होते ही पहले ही दिन हिट हो गया। गुरुवार शाम 5 बजे तक इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले लोगों की संख्या तीन लाख 32 हजार को पार कर गई। 

वही दो साल पहले जब प्रशांत किशोर जेडीयू में शामिल किया गया था, तो सीएम नीतीश कुमार  ने उन्हें भविष्य का लीडर कहा था. अब जब दोनों के बीच राजनीतिक सियासत में खटास आ गई है और पीके ने जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हालांकि उनके सीधे निशाने पर सीएम नीतीश न होकर उनके विकास के दावे हैं. पीके ने जब 18 फरवरी को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस किया तो उन्होंने साफ कर दिया कि वे इसे ही टारगेट करेंगे और नया बिहार बनाने के लिए नए विकल्प की तलाश की बात जनता से करेंगे.

पीके इस समय पूरे जोश में दिख रहे है और वे लगातार इस कोशिश में हैं कि पूरा विपक्ष एक साथ आए. इस बीच जेडीयू ने भी पीके से निबटने के लिए एक खास रणनीति तैयार कर ली है, और वह है प्रशांत किशोर के किसी भी हमले पर रिएक्ट नहीं करने की रणनीति. जेडीयू के सूत्रों से खबर है कि अब पीके की हर गतिविधि पर नजर रखी जाएगी, लेकिन प्रतिक्रिया से परहेज किया जाएगा. यही वजह है कि इक्के-दुक्के नेताओं को छोड़ दें तो पीके पर हमलावर रुख रखने वाले पार्टी के नेता और प्रवक्ता लगातार खामोश हैं.

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि आरसीपी सिंह और ललन सिंह जैसे पार्टी के सीनियर नेता तो पहले से पीके का नाम नहीं लेते हैं. यही नहीं, पीके बयानों पर प्रतिक्रिया देने से भी बचते हैं. यहां तक कि प्रवक्ता भी पीके की बातों को अधिक तवज्जो देते हुए नहीं दिखना चाहते हैं. बकौल रवि उपाध्याय इसके पीछे कुछ खास वजहें भी हैं.

दरअसल, प्रशांत किशोर पिछले महीने तक जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और वे सीएम नीतीश की तारीफ करते नहीं थकते थे. विधानसभा चुनाव 2015 में उन्होंने ही यह नारा गढ़ा था-बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है. पर अब राजनीति उलट गई है और पीके के निशाने पर सीएम नीतीश कुमार ही हैं।


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