पहली बार लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई लालू यादव की पार्टी
आरजेडी, कांग्रेस, रालोसपा, हम, वीआईपी और सीपीआईएम के गठबंधन को केवल एक सीट, किशनगंज से संतोष करना पड़ा.
मोदी मैजिक और नीतीश के काम का ऐसा घोल तैयार हुआ कि एनडीए की झोली में 40 में से 39 आ गिरीं. किशनगंज कांग्रेस ने जीती. प्रदेश में इस तरह के रिजल्ट आपातकाल विरोधी लहर और 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानूभूति की लहर में ही देखने को मिले थे. जिन सीटिंग सांसदों ने चुनाव लड़े उन्हें 2014 के मुकाबले कई गुना ज्यादा मतों से जीत मिली. इसकी वजह ये नहीं है कि जनता सांसद से खुश थी बल्कि इसके पीछे मोदी का मैजिक था. ये अंडर करंट था, जनता ने चुपचाप वोट दिया.
एनडीए के घटक दलों में जबरदस्त तालमेल देखने को मिला. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव के दौरान 171 जनसभाएं कीं, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी के साथ 8, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के साथ 23 और केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के साथ 22 सभाएं भी शामिल हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इस जीत ने हमारी जिम्मेदारी और बढा दी है.
धरातल पर नहीं दिखी महागठबंधन की ताकत
महागठबंधन मजबूत नजर आ रहा था. लेकिन यह मजबूती धरातल पर नहीं नजर आई और तालमेल का अभाव दिखा. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और आरजेडी के तेजस्वी यादव की संयुक्त रैली काफी देर से हुई. जाति के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश नाकाम रही. विपक्षी दल राष्ट्रवाद के मुद्दे की आलोचना करते रहे और उसका उल्टा एनडीए के उम्मीदवारों को होता गया.
महागठबंधन को इस चुनाव में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की कमी खली. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कुशल नेतृत्व का घोर अभाव दिखा. 10 सीटों पर महागठबंधन के दलों में तालमेल की कमी और भितरघात साफ दिख रहा था. 2014 की मोदी लहर में भी आरजेडी 4 सीटें जीतने में सफल रही थी.