नीतीश थक चुके हैं लेकिन तेजस्वी पर भरोसा करना मुश्किल!

जब मीडिया में खबरे चली तो वह बिहार लौट कर आएं हैं। पटना में मॉल, सबीआई केस, पेट्रेाल पंप मामला किसी से छूपा नहीं है।

Update: 2020-07-24 06:00 GMT

बिहार में कोरोना और बाढ़ के दोहरे संकट के बीच चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है। अंदरखाने ही सही सियासी दलों ने भी तैयारी शुरू कर दी है। चुनावी सुगबुगाहट के बीच बिहारी आवाम का मूड लगातार बदल रहा है। बिहार के आगमी चुनाव का तापमान मापने के लिए मैंने भी अपने स्तर पर छोटा ही सही लेकिन एक सर्वे किया तो एक कॉमन बात ये जरूर दिखी कि नीतीश कुमार को लोग थका हुआ मान रहे हैं लेकिन तेजस्वी यादव पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा है।

पटना के रहने वाले और सियासी गलियारे में अच्छी पकड़ रहने वाले पं. मनोज मिश्रा कहते हैं कि नीतीश कुमार अब थक चुके हैं। यह थकावट उनके काम करने के तरीके में दिख भी रहा है। जब मैंने पूछा कि क्या विकल्प तेजस्वी बन सकते हैं तो उन्होंने कहा मुश्किल है। मैंने पूछा क्यों तो वो कहते हैं कि लंबे समय के बाद आरजेडी और जेडीयू 2015 से लेकर 2017 तक करीब 20 महीने सत्ता में रही। उस दौरान तेजस्वी या तेजप्रताप कोई बड़ा सुधार तो नहीं कर पाएं लेकिन माफिया डॉन शहाबुद्दीन को जरूर जेल से बाहर ला दिए। जेल से उसे लेने के लिए राजद नेता करीब 1300 एसयूवी गाड़ियों से पहुंचे थे। उस दौरान एक बार फिर से बिहार में एक खास तबके का उग्र रूप दिखाई देने लगा था। ऐसे में कोई भी नहीं चाहेगा कि एक बार फिर से बिहार में डर का माहौल हो।

हजीपुर के रहने वाले अभय सिंह बताते हैं कि नीतीश से लोग कोरोना और बाढ़ को लेकर जरूर नराज लेकिन वह एक गंभीर और सधे हुए नेता है। बिहार के पास मौजूदा समय में विकल्पहीनता की स्थिति है। हंसते हुए अभय कहते हैं कि जिस तरह लोग मजदूरों को पैदल चलना भूल गए हैं वैसे ही कोरोना और बाढ़ को कुछ दिन के बाद भूल जाएंगे। आप मजबूरी समझे या कुछ और नीतीश के अलावा दूसरा विकल्प अभी दिखाई नहीं दे रहा है। मैं पूछा कि आरजेडी और तेजस्वी को लेकर क्या समस्या है तो मनोज मिश्रा वाली बात दोहराते हैं।

अभय लालू प्रसाद के बड़े बेटे और उस समय के स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जरा उनके बयान को गूगल कर लिजिए। जब वो स्वास्थ्य मंत्री थे अपने काम को लेकर नहीं बल्कि बयान को लेकर ही सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने सुशील मोदी के बारे में कहा था कि घर में घुसकर मारेंगे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खाल उतरवाने की बात कही थी। स्वास्थ्य मंत्री रहते अपने घर के बाहर 24 घंटे एंबुलेंस खड़ी करवाने का काम किया था। स्वास्थ्य विभाग में कोई बेहतर काम करने को लेकर चर्चा में नहीं आएं लेकिन 'दुश्मन मारण' जाप, 'कान्हा अवतार', बांसुरी की धुन पर सुधरेगा स्वास्थ्य विभाग, शिव अवतार में वीडियो बनाकर जरूर चर्चा में रहे। ऐसे में एक बार फिर कैसे जनता उनपर भरोसा कर लें।

बीते दो महीने से #तेजस्वी सोशल मीडिया से लेकर जमीन स्तर पर स्रक्रिय दिख रहे हैं लेकिन कोरोना शुरू होने के तीन महीने तक उनको बिहारी आवाम की कोई फ्रिक्र नहीं थी। जब मीडिया में खबरे चली तो वह बिहार लौट कर आएं हैं। पटना में मॉल, सबीआई केस, पेट्रेाल पंप मामला किसी से छूपा नहीं है।

क्या #पूप्प यादव इस बार विकल्प बन सकते हैं? इस पर शिवान जिले के रहने वाले राजन से मेरी बात हुई तो उन्होंने सिरे से इस संभावना को नकार दिया। उसने कहा कि बिल्कुल ऐसा नहीं होने जा रहा है। पप्पू यादव ने काम अच्छा किया है लेकिन यादव उनको नेता नहीं मानता है। अगर ऐसा होता तो वह और उनकी पत्नी चुनाव नहीं हारती। वैसे भी बिहार में चुनाव जीतने के लिए काम मायने नहीं रखता है। चुनाव जीतने के लिए जातीय समीकरण, कार्यकर्ताओं की फौज, पैसा और बल जरूरी है। ऐसे में पप्पू यादव 5 से 10 सीट भी जीत जाएं तो बड़ी बात होगी।

और अंत में खुद को सीएम कैंडिडेट बताने वालीं #पुष्पम प्रिया चौधरी की क्या स्थिति पर मुजफ्पफरपुर के ब्रजेश से जानना चाहा तो उसने कहा कि भैया उन्हें अभी बहुत काम करना होगा। इस चुनाव में उनका कोई भविष्य नहीं है। कुल मिलाकर बिहारी आवाम में इस बार अपने नेता को लेकर धोर निराश है। ऐसे में क्या बिहारी जनता इस बार दल, जात—पात से ऊपर उठकर चुनाव में वोट कर पाएगी अभी कहना मुश्किल है। चुनावी समीकरण 24 घंटे के अंदर बदल जाते हैं। ऐसे में ऊँट किस करवट बैठता है यह कहना अभी जल्दबाजी है।

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