नीतीश की चाल ,बीजेपी बेहाल!

शायद बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व को इसका भान नही रहा होगा कि नीतीश और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे में यही अंतर है कि उद्धव गाली देकर भी मोदी के सामने आत्मसमर्ण कर देते है और नीतीश वगैर वोले भी शान से खड़े रहते है.;

Update: 2019-05-31 10:31 GMT

गुरूवार की शाम जब पूरा देश मोदी मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के रंग में सराबोर था तब एकाएक खबर आई की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर जद यू के वरिष्ठ नेताओं की मंत्रणा चल रही है. जिसमें मंत्रिमंडल में शामिल होने पर विचार चल रहा है. यानि शपथ ग्रहण समारोह के अंतिम क्षण में जद यू के मंत्रिमंडल में शामिल होने के सस्पेंश की खबर पर सभी चैनलो की नजरे चली गयी. फिर क्या था पल - पल की खबरे आने लगी कि नीतीश के पास कौन- कौन नेता पहुंचे.लेकिन दूसरी तरफ टी वी चैनलो पर खबर भी चल गयी कि आर सी पी सिंह प्रधानमंत्री आवास पहुंच गये, लेकिन यह खबर गलत निकली और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीडिया कर्मियो को जानकारी दी कि जद यू मंत्रिमंडल में शामिल नही होगी.


इसकी वजह नीतीश ने बतलायी कि जद सांकेतिक रूप से मंत्रिमंडल में शामिल नही होना चाहती. यानि जद यू कीजितनी हिस्सेदारी होनी चाहिये वह उसे नही मिल रही है तो फिर क्यो जद यू सरकार में शामिल हो. बस क्या था मोदी के शपथ ग्रहण के साथ जद यू के शामिल नही होने की खबर भी सुर्खियो में आ गयी. फिर आज दिल्ली से पटना लौटने के बाद नीतीश ने वही बात दुहरायी और भविष्य़ में भी शामिल नही होने के संकेत दिये. नीतीश ने मीडिया में छपी इन खबरो को भी बेबुनियाद बतलाया जिसमें जद यू के बारे में तीन सीटो की मांग की गयी थी. यानि जब पूर्ण बहुमत के साथ मोदी दूसरी बार शपथ ले रहे हो और देश विदेश में मोदी का डंका बज रहा हो एन डी ए के सभी घटक दल के नेता मोदी के समक्ष नतमस्तक हो उस समय नीतीश ही एक ऐसे नेता है जो इतना बड़ा फैसला ले सकते है.


यानि जिसकी कल्पना दूर -दूर तक कोई राजनीतिक समीक्षक और पत्रकार ना कर सकते है नीतीश ऐसा फैसला लेकर सबको हैरान कर देते है. यही नीतीश कुमार की खासियत है और हैसियत. दिल्ली में पिछले 24 घंटे राजनीतिक ड्रामा चला और किसी को भनक नही लगी. नीतीश के इस फैसले से भले ही उनके राजनीतिक विरोधी तंज कसने से बाज नही आ रहे और 2020 के विधान सभा चुनाव के बारे भविष्यवाणी कर रहे है लेकिन नीतीश का राजनीति फैसला र अधिकांश वार विरोधियो पर भारी पडा है. भला नीतीश की हैसियत जब आर पी आई के नेता रामदास अठावले की तरह आंकी जाय तो वह इसे कैसे बर्दाश्त कर ले. बिहार में 17 सांसदो की हैसियत बाली भाजपा के कैबिनेट में 5 मंत्री हो और जद यू के एक मंत्री यह नीतीश कैसे मान लेंगें.


शायद बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व को इसका भान नही रहा होगा कि नीतीश और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे में यही अंतर है कि उद्धव गाली देकर भी मोदी के सामने आत्मसमर्ण कर देते है और नीतीश वगैर वोले भी शान से खड़े रहते है. नीतीश के इस फैसले से तत्काल जद यू को जो नुकसान होता हुआ दिख रहा हो लेकिन नीतीश ने इस फैसले को लेकर एक नये राजनीतिक संकेत दिया है कि चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति हो वे झुकने वाले नही है. फिलहाल एन डी ए गठबंधन के पक्ष में पूरी मजबूती के साथ खड़े रहने का संकेत देकर नीतीश ने गेंद भाजपा के पाले में डाल दिया अब वह उसे गोल होने दे या बचाये.

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