उपेंद्र कुशवाहा को बड़ा झटका, RLSP के दो विधायक और एक एमएलसी JDU में शामिल

एक तरह से रालोसपा का अस्थित्व लगभग समाप्त हो गया है क्योंकि इस पार्टी का अब कोई सांसद नहीं है और न ही कोई विधायक रहा.

Update: 2019-05-26 12:24 GMT

पटना : बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के नेता उपेंद्र कुशवाहा को रविवार को तब बड़ा झटका लगा जब उनकी पार्टी के दोनों विधायकों ने सत्तारूढ़ दल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ज्वॉइन कर ली. बिहार विधानसभा में रालोसपा के खाते में मात्र दो ही विधायक थे जो अब जेडीयू में शामिल हो गए हैं.

बिहार विधानसभा के स्पीकर ने दोनों विधायकों को जेडीयू में शामिल होने की इजाजत दे दी. इसी के साथ रालोसपा के विधायक दल का जेडीयू विधायक दल में विलय हो गया. बिहार विधानसभा अध्यक्ष ने इसी के साथ रालोसपा के दोनों विधायकों को जेडीयू के साथ बैठने की स्वीकृति दे दी.

बिहार विधानसभा में फिलहाल आरजेडी के 80, जेडीयू के 71, रालोसपा के 2 (अब जेडीयू में), कांग्रेस के 27, लोजपा के 2, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (1) और अन्य के खाते में 7 विधायक हैं. इस तरह रालोसपा के दो विधायकों के विलय के बाद जेडीयू की संख्या अब 73 हो गई है. इस बार रालोसपा आरजेडी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ी थी. सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए से उनकी अनबन हुई थी जिसके बाद उन्होंने एनडीए छोड़कर गठबंधन का दामन थाम लिया था लेकिन उपेंद्र कुशवाहा एक साथ दो सीटों पर खड़े हुए और दोनों जगर चुनाव हार गए.

आरएलएसपी के दो विधायक और एक एमएलसी ने जनता दल यू में विलय के लिए विधानसभा अध्यक्ष को पत्र दिया था. ये विधायक हैं ललन पासवान और सुधांशु शेखर. इनके साथ पार्टी के एक मात्र एमएलसी ने भी जेडीयू विधायक दल में शामिल होने के लिए विधान परिषद के सभापति को पत्र दिया है. एक तरह से रालोसपा का अस्थित्व लगभग समाप्त हो गया है क्योंकि इस पार्टी का अब कोई सांसद नहीं है और न ही कोई विधायक रहा.

रालोसपा की स्थापना उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में जेडीयू से अलग होने के बाद की थी. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और अपनी तीनों सीट पर विजय पाई थी. तब उपेंद्र कुशवाहा केंद्र में राज्य मंत्री बने थे लेकिन 2019 के चुनाव से ठीक पहले सीटों की संख्या को लेकर उनकी बात एनडीए से नहीं बनी और वे महागठबंधन का हिस्सा बन गए. महागठबंधन ने उन्हें पांच सीटें दीं लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. यहां तक कि उजियारपुर और काराकाट दो जगह से लड़े उपेंद्र कुशवाहा को दोनों जगह हार का मुंह देखना पड़ा.

उपेंद्र कुशवाहा ने जब एनडीए छोड़ा, उसी समय उनकी पार्टी के दो विधायक और एक एमएलसी ने बगावत कर दी और महागठबंधन का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. उसके बाद से ही वे एनडीए के संपर्क में और खासकर अपने को जेडीयू का हिस्सा मान कर चल रहे थे लेकिन शुक्रवार को विधायक दल ने जेडीयू में विलय का फैसला किया. विलय का पत्र विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा जिसे विधानसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया.

कौन असली रालोसपा है इसका फैसला अभी चुनाव आयोग को करना है क्योंकि अस्तित्व में आने के बाद इसके कई टुकड़े हो चुके हैं. सबसे पहले जहानाबाद से 2014 में चुनाव जीते अरुण कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा से बगावत कर अपने को असली रालोसपा बताया. फिर उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए छोड़ा तो विधायक बागी हो गए और वे अपने को असली रालोसपा बताते रहे.

लोकसभा चुनाव में कुशवाहा ने हार मानते हुए कहा कि जनता का निर्णय सर आंखों पर. उन्होंने ट्वीट किया, "महागठबंधन, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के लिए किसी पर आरोप लगाने के बजाए आत्म-मंथन करने का समय है. यह जीत किसी उम्मीदवार या राज्य सरकार में सत्तासीन नेताओं की नहीं, जनता के नब्ज को विपक्ष के नेताओं की ओर से सही से नहीं समझ पाने का नतीजा है."

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने हार की समीक्षा करने की बात करते हुए लिखा, "आगे की लड़ाई के लिए चुनाव परिणाम की समीक्षा करते हुए ठोस और गंभीर रणनीति की आवश्यकता है. बिना समय गंवाए हमें इस ओर बढ़ना है. जनता का निर्णय सर आंखों पर." गौरतलब है कि इस चुनाव में कुशवाहा ने एनडीए छोड़कर महागठबंधन का दामन थाम लिया था. महागठबंधन की ओर से रालोसपा के हिस्से पांच सीटें आई थीं.

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