श्याम रजक का फिर से जहर पीना, वहीं लालू राबड़ी को सुकून 11 वर्षों बाद श्याम घर लौटा
Shyam Rajak joins RJD in Bihar;
साल 2009 की बात है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का दो दिन पहले ही जन्म दिन काफी धूम धाम से मनाया गया था। उस जन्म दिन की तैयारी की कमान श्याम रजक ने संभाली थी। गुलाब के फूलों से लालू यादव के जन्म दिन को ऐतिहासिक बनाया गया था। लेकिन यह क्या दो दिन के बाद ही श्याम रजक ने लालू का साथ छोड़ने का ऐलान किया।
लालू राबड़ी समेत सभी राजद के लोग हक्के बक्के।श्याम पार्टी छोड़ने के साथ ही विधायक पद से इस्तीफा दिया। और आरोप लगाया कि पार्टी में उन्हें जाति सूचक गाली दी जाती है। फिर पूरे ताम झाम के साथ जे पी के गांव सिताबदियारा पहुंचे। कसमें खाई और नीतीश के साथ हो लिए। हालाकि मेरे जैसे लोगो को पता था कि ये राजद को जल्द बाय बाय करने वाले है। हालाकि उप चुनाव में रजक की शहादत को फुलवारी शरीफ की जनता ने नकारा और उप चुनाव में उदय मांझी ने श्याम को मात दी।
लेकिन 2010 और 2015 के चुनाव में रजक ने जीत हासिल है नहीं की मंत्री भी बने। इतना ही नहीं जदयू मा रह कर लालू और उनके परिवार पर श्याम ने जितना हमला किया शायद। कोई दूसरा नेता नहीं कर पाया हो। लेकिन फिर ऐसा कौन। सा कारण आया कि श्याम फिर उसी घर में चले गए जहां उन्हें जाति सूचक गाली दी जाती रही थीं। वजह साफ है नेताओं की जान कुर्सी में रहती है। श्याम रजक को पता है कि फुलवारी विधान सभा में करीब 56 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंखयक वोटर है। यादव की तो बात ही अलग। फिर ऐसे में उनकी चुनावी नैया जदयू से पार नहीं लगती। कारण अल्प संख्यक अभी बीजेपी से नाराज है नहीं आक्रोशित भी है। ऐसे में एक बार हार का स्वाद चख चुके रजक उम्र के इस पड़ाव पर रिस्क नहीं लेना चाहते। इसके पूर्व एक बड़े दलित नेता उदय नारायण चौधरी का हश्र उन्होंने अर्श से फर्श पर होते देखा है।
यो तो कहा जाता है कि जहर लोग जीवन लीला समाप्त करने के लिए पीते है लेकिन इसके उलट श्याम रजक ने अपना राजनीतिक जीवन बचाने के लिए पिया है यह जानते हुए कि अब राजद लालू यादव की नहीं तेजस्वी के जमाने की है। जहां स्वाभिमान की रक्षा करना रघुवंश सिंह जैसे लोगो के लिए मुश्किल है ऐसे में जदयू में आरसीपी पर आरोप लगाना और टिकट काटें जाने की आशंका जताना यह महज राजनीतिक स्टंट बाजी नहीं तो और क्या। जदयू में अशोक चौधरी के पदार्पण के बाबजूद श्याम रजक को मंत्री बनाकर नीतीश ने साफ संदेश दिया था कि वे भी उनके लिए महत्व पूर्ण है।
जानकर सूत्रों के मुताबिक श्री रजक इस बार मसौढ़ी से अपना भाग्य आजमा ना चाहते है। वजह साफ है जिस तरह से ओवैसी ने बिहार के जिन मुस्लिम बहुल विधान सभा क्षेत्र को अपना टारगेट बनाया है उसमे फुलवारी शरीफ भी एक है। ऐसे में जहर को दवा के रूप में पीने वाले रजक का राजनीतिक जीवन कितना बच पता है इसके लिए चुनाव परिणाम तक इंतजार करना पड़ेगा।फिलहाल राबड़ी और लालू के लिए एक सुकून है कि उनका श्याम 11 वर्षों के बाद लौट आया है अब राम यानी राम कृपाल यादव कितने दिनों में लौट आते है।