जदयू के खिलाफ चिराग को बीजेपी से क्या है हासिल!

Update: 2020-10-15 03:14 GMT

क्या चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर लड़ने के पीछे बीजेपी की है कहानी है? क्या चिराग पासवान का अलग से चुनाव लड़ना राजनीति का एक हिस्सा है? यह सवाल तब उठे जब बिहार में एलजीपी ने सिर्फ आक्रमक रूप से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी. वल्कि बीजेपी के कई नेताओं का अब ठिकाना भी बन रही है.

हालांकि आधिकारिक रूप से बीजेपी ने चिराग की राजनीति से खुद को अलग कर दिखाते हुए पूरी तरह से नीतीश कुमार के साथ रहने की बात कही है. कहा है कि जो नेता एनजेपी में चले गए हैं अगर वह 12 अक्टूबर तक वापस नहीं होंगे तो उन्हें पार्टी के लिए पार्टी से हमेशा हमेशा के लिए बर्खास्त कर दिया जाएगा, पार्टी ने उन्हें निष्कासित भी कर दिया. पार्टी ने यह भी कहा है वह लिखित रूप से चुनाव आयोग से कहेगी चिराग पीएम मोदी या बीजेपी के साथ की बात अपने प्रचार में नहीं करें. लेकिन इससे चर्चाओं का दौर थमा नहीं जदयू के नेता दैनिक तौर पर भाजपा पर आरोप नहीं लगाते हैं.

लेकिन आप दा रिकॉर्ड बातचीत में कहते हैं कि चिराग अपने दम पर इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकते थे. उन पर बीजेपी का आंतरिक रुप से हाथ है इसलिए वह खुलकर आंतरिक रूप से नीतीश का विरोध कर रहे हैं और बीजेपी का सपोर्ट कर रहे हैं. दरअसल एलजेपी के अलग होने से बीजेपी को सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि उसे राज्य में जदयू के साथ पहली बार 115 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का मौका हासिल हुआ है .ऐसी चर्चा भी है कि क्या होगा अगर चुनाव के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी दो कौन होगा मुख्यमंत्री पद का दावेदार वहीं बीजेपी की नई पीढ़ी में पिछले कई सालों से पार्टी को अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की वकालत करता रहा है. अब लगता है बीजेपी के 115 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद वह विकल्प भी खुल गया है.

हालांकि इस अटकल को ही खारिज करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि चुनाव के बाद अगर जेडीयू की सीटें कम भी हुई. तब भी मुख्यमंत्री पद का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे. लेकिन सूत्रों के अनुसार बीजेपी ने यह बयान जदयू के दबाव में दिया है. कुल मिलाकर चिराग के अलग होने से बीजेपी को अधिक लाभ और जदयू को भारी नुकसान दिख रहा है चिराग ने सिर्फ जदी उम्मीदवारों के खिलाफ लड़ने का ऐलान भी किया है यह सवाल भी उठाया है कि अगर बीजेपी की से हासिल है तो वैसे क्या अखिल करना चाहती है. जहां एक तरफ नीतीश कुमार को अपने मुख्यमंत्री बनने की बात कह रही है. तो वही पीछे से चिराग के दीपक में तेल डालकर उसे दो मौका हासिल हो रहे है.

पहले कदम के अनुसार बीजेपी के इस कदम से एक तरह से राज्य में अपना स्वतंत्र वजूद खोजना है और महाराष्ट्र में शिवसेना की ओर से धोखा खाने के बाद पार्टी प्लान बी भी बिहार में तैयार रखना चाहती है. दूसरा तर्क यह भी है नीतीश कुमार के खिलाफ ऐसी खबरें आ रही हैं. ऐसे में जहां जदयू के उम्मीदवार होंगे वहां वोटर को उनके खिलाफ वोट करने की विकल्प आरजेडी गठबंधन के अलावा चिराग की पार्टी भी हो जाएगी ऐसे में हिंदी वाले वोट कट जाएंगे जिससे एनडीए को ही लाभ होगा. लेकिन इतने चिराग पासवान को क्या हासिल होगा इसका कोई शक अब तक सामने नहीं आया है. वही रामविलास पासवान के निधन के बाद अब जदयू के लिए हालात और प्रतिकूल होते जा रहे हैं. अब शायद बीजेपी चिराग के खिलाफ उतनी हमलावर नहीं होगी और यदि इसके लिए दबाव ही नहीं डाल पाएगी.

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