कांग्रेस और बसपा के बीच क्यों फंसे केजरीवाल?

और फिर यह लाइनें चरित्रार्थ हो रही थी , तुम निकले थे लेने स्वराज, सूरज की सुर्ख़ गवाही में , पर आज स्वयं "टिमटिमा" रहे, जुगनू की नौकरशाही में...

Update: 2019-05-21 11:14 GMT

जिन कामों का विरोध करने के कारण दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को एक बड़ा जनाधार सौंप दिया ताकि दिल्ली की कमान एक ईमानदार पार्टी के हाथ देकर भ्रष्टाचार मुक्त राज्य का सपना देख लिया. 

इस पार्टी की कमान उस समय देश के जाने माने प्रतिष्ठित वकील प्रशांत भूषण , जानेमाने विश्लेषक योगेंद्र कुमार , हिंदी के बड़े कवि डॉ कुमार विश्वास , पूर्व कानून मंत्री, विशाल लाठे , समेत कई ईमानदार दिग्गज इस कारवाँ को चला रहे थे. अब इस कारवाँ को दिल्ली की जनता ने इतना ज्यादा प्यार दे दिया जो इनको कुपच करने लगा तो इसका असर शुरू हुआ. जिसका प्रभाव सर्वप्रथम सीएम केजरीवाल पर दिखने लगा और पार्टी में खेमें बाजी शुरू हो गई. 

इस खेमेंबाजी ने पार्टी की नई सरकार की पोल खोल दी और एक मीटिंग में सरेआम पार्टी के संस्थापक सदस्यों की पार्टी के विधायकों ने भरी मीटिंग में बेइज्जती कर दी और प्रशांत भूषण, उनके पिता जी , योगेंद्र यादव , विशाल लाठे समेत कई समर्थकों को मीटिंग से निकाल दिया गया. उसके बाद जिसने भी केजरीवाल का विरोध किया उसे बाहर का रास्ता दिखाया गया. जिसमें बाद में कई बड़े नेता और भी या तो पार्टी छोड़ गए या निकाल दिए गये. 




 अब पार्टी पूरी तरह से राजनैतिक रूप लेकर जवान हो चुकी थी. तो इसकी जवानी पर बीजेपी की नजर लगनी शुरू हो चुकी थी यह पार्टी के सयोंजक अरविन्द केजरीवाल का कहना है. अब रोज रोज नव यौवना पार्टी से बीजेपी छेड़छाड़ करने लगी थी. उधर आप पार्टी भी अपनी अस्मत बचाने के लिए गुप्ता बन्धुओं के पास अपनी परेशानी लेकर पहुंच चुकी थी. अब केजरीवाल का भ्रष्टाचार वाला थैला खो चूका था. उधर थैला खोने की खबर सुनकर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चैन की सांस ली. 

अब केजरीवाल ने पाला बदलना शुरू कर दिया अब उनका उद्देश्य ईमानदार और सुचिता से उत्पन्न की गई राजनीती से नहीं अब उद्देश्य पीएम मोदी को हटाना हो चूका था. उधर कागज खो जाने से निर्भय हुई शीला ने भी केजरीवाल को आँख दिखाना शुरू कर दिया था. केजरीवाल ने अब कांग्रेस के आगे हथियार डाल दिए थे कहा कि माई बाप आप मेरे साथ कुछ भी करो लेकिन दिल्ली में मेरे साथ मिलकर चुनाव लड़ लो. कांग्रेस ने उनकी कोई बात नहीं सुनी और चुनाव हो गया. 

अब दिल्ली में वोट पड़ चुके थे. उधर केजरीवाल को दिल्ली लुटने की खबर मिल चुकी थी कि अब उनकी पार्टी को दिल्ली ही नहीं पूरे देश में कहीं कोई सीट नहीं मिल रही थी. उधर केजरीवाल को अपने किये गये कुछ कार्यों पर संदेह जरुर हो रहा था तो उनको मोदी को रोकना जरूरी था. इसलिए वो अब कांग्रेस और बसपा के बीच में आ चुके थे. उन्हें लग रहा था कि अब वो खतरे के निशान से बाहर है. लेकिन अब सब कुछ बदलने की सौगंध खाने वाले केजरीवाल वास्तव में पूरी तरह बदलकर सौगंध पूरी कर चुके थे. 

और फिर यह लाइनें चरित्रार्थ हो रही थी 

तुम निकले थे लेने स्वराज, सूरज की सुर्ख़ गवाही में ,

पर आज स्वयं "टिमटिमा" रहे, जुगनू की नौकरशाही में...

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