जन्मदिन विशेष : वरिष्ठ नवगीतकार माहेश्वर तिवारी...

सत्ता जब-जब निरंकुश होगी, कविता की प्रासंगिकता बढ़ती ही जाएगी - डाॅ माहेश्वर तिवारी...

Update: 2021-07-22 13:32 GMT

सत्ता जब-जब निरंकुश होगी, कविता की प्रासंगिकता बढ़ती ही जाएगी - डाॅ माहेश्वर तिवारी

यश भारती पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ नवगीतकार डॉ माहेश्वर तिवारी जी का आज जन्मदिन है, जिन्होंने माहेश्वर तिवारी जी को पढ़ा है या उनके करीबी रहे हैं वे अच्छे से जानते होंगे कि, सब उन्हे बाबा कहते हैं। हमारे बाबा आज 81 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन नवगीत के जादूगर की धार आज भी बिल्कुल ताजगी भरी है।

18 मार्च 2021 का वह दिन था, जब मुरादाबाद के हिन्दू कॉलेज में हिन्दी परिषद् की बैठक में विशेष अतिथि के रूप में बाबा शामिल हुए थे। इस परिषद् की अध्यक्षता, मैं कर रहा था। उन दिनों कृषि कानूनों का विरोध भी आवेग पर था। बाबा का उद्बोधन शुरू हुआ -

बाबा ने अपने उद्बोधन में कहा -"कि जब-जब सत्ता निरंकुश होगी, तब-तब ओजस्वी कवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना -'सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है' गूंजेगी। बाबा जी ने ऐसा समसामयिक मुद्दे पर केन्द्रित होकर कहा था। आज सरकारें अपने खिलाफ सुनना नहीं चाहती, पत्रकारिता का गला घोट दिया गया। उपनिवेशवाद से लेकर हम आज यहां तक आए हैं, इसमें ना जाने कितने लेखकों, पत्रकारों, कवियों और समाजसेवियों ने अपनी भूमिका निभाई , केवल इसलिए कि हमें ऐसी सरकारों की जरूरत थी !!

बर्फ होकर

जी रहे हम तुम

मोम की जलती इमारत में

इस तरह

वातावरण कुहरिल

धूप होना

हो रहा मुश्किल

जूझने को

हम अकेले हैं

एक अंधे महाभारत में'

..........

हिंदी नवगीत के जीते-जागते हस्ताक्षर बाबा...

माहेश्वर जी का यह गीत आज के माहौल को बताने के लिए काफी है। आगे बाबा कहते हैं- कविता, सत्ता की निरंकुशता का पर्दाफाश करती है, आपातकाल लगने पर जैसे दुष्यंत कुमार की गजलें मुंहजुबानी गायी जाती थी ,जरूरत पड़ने पर ऐसा दोहराया जा सकता है।

बाबा कहते हैं , कविता में कवित्व महाप्राण अंग है, जो उसकी नींव है। यदि कविता में कवित्व मर जाए, तो कवि को हम जिन्दा कह सकते हैं क्या ?? कदापि नहीं!!

हर आदमी हथियार लेकर युद्ध नही करता। युद्ध संसाधनों का नहीं, साहस का काम है। सच्चा रचनाकार कालजयी होता है, जो हमेशा-हमेशा के लिए अपने पाठको में जीवित रहता है। पाठक, किसी भी लेखक के स्तम्भ होते हैं समय की मांग है, कि लेखको को अपने पाठको से संवाद करना चाहिए, ताकि लेखन को आवश्यकतानुसार मोड़ा जा सके।

लेखक समाज की वह नींव है, जिस पर इमारत खड़ी की जाती है। यदि भविष्य को सुधारने के लिए लेखक सख़्त हो जाए, तो दुनिया की कोई ताकत भविष्य को बिगाड़ नहीं सकती।

माहेश्वर जी कविता की भाषा के बारे में कहते हैं कि, कविता की भाषा केवल एक होती है वो है- संवेदना।

कविता का मतलब केवल छंद होना नहीं है। हर वो लाइन कविता है जिसमें संवेदना शामिल होती है। जिस कवि में यह गुण विद्यमान है, उसके लिए कविता लेखन वरदान है।

.....

हिंदी परिषद की बैठक लगभग समाप्त होने पर हमने उनसे एक नवगीत के लिए निवेदन किया, जो बाबा का सुप्रसिद्ध नवगीत है -

एक तुम्हारा होना

         क्या से क्या कर देता है,

बेजुबान छत दीवारों को

         घर कर देता है ।

ख़ाली शब्दों में

         आता है

ऐसे अर्थ पिरोना

गीत बन गया-सा

         लगता है

घर का कोना-कोना

एक तुम्हारा होना

        सपनों को स्वर देता है ।

आरोहों-अवरोहों

         से

समझाने लगती हैं

तुमसे जुड़ कर

        चीज़ें भी

बतियाने लगती हैं

एक तुम्हारा होना

       अपनापन भर देता है ।

.......

'याद तुम्हारी जैसे कोई

कंचन-कलश भरे

जैसे कोई किरन अकेली

पर्वत पार करे

लौट रही गायों के संग-संग

याद तुम्हारी आती

और धूल के संग-संग मेरे

माथे को छू जाती

दर्पण में अपनी ही छाया-सी

रह-रह उभरे

जैसे कोई हंस अकेला

आंगन में उतरे'

हिन्दी के विख्यात गीतकवि स्व. भवानीप्रसाद मिश्र को यह गीत बहुत पसंद था, उन्होंने होशंगाबाद के एक कवि सम्मेलन में इस गीत की काफी प्रशंसा की थी -

... ...

आने वाले हैं

ऐसे दिन आने वाले हैं

जो आँसू पर भी

पहरे बैठाने वाले हैं

आकर आसपास भर देंगे

ऐसी चिल्लाहट

सुन न सकेंगे हम अपने ही

भीतर की आहट

शोर-शराबे ऐसा

दिल दहलाने वाले हैं'

.........

सोये हैं पेड़

कुहरे में

सोये हैं पेड़।

पत्ता-पत्ता नम है

यह सबूत क्या कम है

लगता है

लिपट कर टहनियों से

बहुत-बहुत

         रोये हैं पेड़।

जंगल का घर छूटा,

कुछ कुछ भीतर टूटा

शहरों में

बेघर होकर जीते

सपनो में खोये हैं पेड़।

......

धूप में

जब भी जले हैं पाँव

घर की याद आई

नीम की

छोटी छरहरी

छाँह में

डूबा हुआ मन

द्वार का

आधा झुका

बरगद : पिता

माँ : बँधा आँगन

सफर में

जब भी दुखे हैं घाव

घर की याद आई

यह शहर का

शोरगुल

वह गाँव का

सूता-परेता

आग में झुलसी हुई

तुलसी

धुएँ में

जया-जेता

रेत में

जब भी थमी है नाव

घर की याद आई

.....



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