पुलवामा के नाम पर वोट मांगने वाले मोदी यूपी में गोरखपुर ऑक्सीजन हादसे के नाम भी मांगें वोट?

जिसमें कुछ पार्टी अपने सजातीय वोटों के साथ चुनावी वैतरणी को पार करना चाहती है जबकि कुछ पार्टी अपने परम्परागत वोट बेंक के सहारे अपनी नाव पार करने में लगी हुई है. इस देश की किसी को चिंता नहीं है.

Update: 2019-04-12 02:55 GMT

जब चुनाव आयोग ने खुले शब्दों में यह कह दिया था कि सेना के नाम को चुनाव में कोई भी राजनैतिक पार्टी प्रयोग नहीं करेगी जबकि बीजेपी के नेता सेना को मोदी की सेना की भी संज्ञा दे चुके है. लेकिन चुनाव आयोग ने अब तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं की. 


अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से सरेआम यह कहा कि पुलवामा के नाम पर वोट जरुर करें. यह शब्द वास्तव में आचार सहिंता के कारण ठीक नहीं है लेकिन अगर जनता का कोई आदमी अगर यह शब्द कहे कि जो अच्छे काम सरकार करती है उनका श्रेय सरकार को मिलना चाहिए तो सरकार के दौरान हुए गडबडियों का जिम्मेदार कौन होगा. 


बात इसी बीजेपी सरकार की करते है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर में बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन की कमी के चलते कई बच्चे काल के मुंह में समा गये कई बहन बेटियों की गोद सूनी हो गई लेकिन सरकार ने कुछ नहीं बोला. कई जांच हुई लेकिन कुछ नहींहुआ. 


तो जब सरकार पुलवामा के नाम पर वोट मांग सकती है तो गोरखपुर के नाम पर उत्तर प्रदेश में वोट नहीं मांगना चाहिए. बिलकुल मांगना चाहिए. लेकिन नपुंसक विपक्ष इस बात पर बहस नहीं करेगा और न ही कुछ बोलेगा जैसे मुंह में दही जम गया हो. केवल जनता मोदी को हटा दे और में नहीं बोलूँगा कुछ भी. 


इस देश के नेता सभी बुरी तरह से फंसे हुए है किसी के नस कहीं दबी हुई है. सब जनता के और ताक रहे है लेकिन खुद मुंह में दही जमाकर प्रचार कर रहे है. केवल अमर्यादित भाषा से हमला कर रहे है. न महंगा डीजल मुद्दा है न बेरोजगार मुद्दा ही न शिक्षा और स्वास्थ्य मुद्दा है न किसान मुद्दा है. मुद्दा है तो सत्ता और विपक्ष का केवल और केवल हिन्दू और मुस्लिम का. जिसमें कुछ पार्टी अपने सजातीय वोटों के साथ चुनावी वैतरणी को पार करना चाहती है जबकि कुछ पार्टी अपने परम्परागत वोट बेंक के सहारे अपनी नाव पार करने में लगी हुई है. इस देश की किसी को चिंता नहीं है. 


वो तो अच्छा हुआ कि पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने पीएम मोदी की वापसी की बात की है. अगर कुछ और कहा होता तो कुछ प्रबल हिंदुत्व के पुरोधा अब तक की विपक्षियों को टिकिट और पाकिस्तान का बीजा भी भेज चुके होते है. तो कुछ नये टपोरी भी करोड़ों सर कलम करने पर देने की घोषणा कर चुके होते . इस देश के दुर्भाग्य है कि जब कुछ सही होता है तो उसे होने नहीं दिया जाता है. 


प्रथम चरण का चुनाव हो चुका है लेकिन अब 91 सीटों का भाग्य ईवीएम में कैद हो चूका है. अब जनता को जो भी अच्छा लगा होगा वो किया होगा लेकिन इतना तो तय है कि यह समुद्र में तूफ़ान आने से पहले वाली शांति दिखना प्रबल भूकम्प का निर्देश दे रहा है. चाहे जो भी हो लेकिन खामोश जनता ने एक माह के लिए सभी नेताओं को ब्लड प्रेशर के दवा जरुर खरीदवा दी है. 

Tags:    

Similar News