फिर हार गए मोदी इंदिरा से, क्यों किया मोदी ने ऐसा काम जो दी जायेगी ये मिशाल!

Update: 2019-04-24 14:57 GMT

पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के परिवार को हर मंच से बुरा भला कहने वाले मोदी एक बार फिर से इंदिरा से हार गये है. काश देश के हर प्रधानमंत्री की सोच इस तरह की हो ताकि हर अधिकारी अपने कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करे. 


देश में मोदी सरकार बनने के बाद एक बात तो सबके भेजे में आ गई है. पीएम मोदी किसी को भी बख्सते नहीं है चाहे सामने वाला कितना भी ताकतवर हो. पीएम मोदी के पिछले लोकसभा से लेकर देश में हर एक चुनाव में सबसे बाद मुद्दा कांग्रेस और इंदिरा परिवार रहा है. जबकि इंदिरा का आधा परिवार मोदी की भाजपा में भी है. एक बेटे का परिवार उनकी पार्टी को आगे बढ़ा रहा है तो एक बेटे का परिवार उन्हीं की पार्टी का विरोध करता रहा है. लेकिन फिर भी मोदी और मोदी की भाजपा कांग्रेस की कभी बख्स्ती नहीं है. 


अब बात करते है उस बात की जिस बात का जिक्र हम करने जा रहे है. मोदी हमेशा जिस इंदिरा की तरह शासन सत्ता चलाने का प्रयास करते है लेकिन उनके नक्शे कदम पर चलने का प्रयास नहीं करते है. जब इंदिरा गांधी के पीएम होने के दौरान एक आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने उनकी गाडी का चालान किया तो इंदिरा ने उन्हें अपने घर पर बुलाया. उनका सम्मान करते हुए उनकी पीठ थपथपाई थी और उनके साथ भोजन भी किया था. यह उनका बड़प्पन था, लेकिन एक पीएम के इस व्यवहार से देश के सभी अधिकारीयों का मनोबल बढ़ा था इससे सभी अधिकारी रोमंचित हो गये थे. 




 अब बात करते है पीएम मोदी की जिन्होंने अपनी तलाशी लेने वाले आईएएस अधिकारी मोहसिन को सस्पेंड करते हुए उसका तबादला भी कर दिया, इससे अधिकारीयों में किसी अन्य नेता के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत भी नहीं होगी. इससे अधिकारीयों का मनोबल भी टूटेगा. इसके बाद उन्हीं की पार्टी की भोपाल संसदीय सीट से उम्मीदवार ने एक आईपीएस शहीद अधिकारी के बारे में भी अपशब्द कहे, जिसको लेकर आईपीएस एसोसिएशन भी सामने आई और पार्टी ने उनका निजी बयान बताकर अपना पिंड छुड़ा लिया जबकि पुरे देश में इस बयान का विरोध हुआ. 


बता दें कि अधिकारीयों से बदले की भावना से काम करने वाली सरकार कभी कामयाब सरकार नहीं मानी जाती है. क्योंकि अधिकारी ही इस देश को चलाते है. जब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी तब एक ईमानदार अधिकारी कहे जाने वाले आईएएस खेमका आज भी फुटबाल की तरह ट्रांसफर होते रहते है. यूपी में एक आईपीएस अधिकारी ने एक ववाल के दौरान बीजेपी सरकार की मंशा से कार्य नहीं किया तो उसको आज किसी जनपद में कार्य करने की लिये नहीं भेजा, कई अधिकारीयों की इस तरह की लिस्ट बनी हुई है. कभी बदले की भावना से काम नहीं होना चहिये सरकार किसी की हो, अखिलेश सरकार पर बदले की भावना से काम करने पर हश्र देखा, मायावती का हश्र देखा. देर होगी लेकिन परिणाम आपको भी जरुर मिलेगा, फिलहाल पिछले चुनाव की अपेक्षा सीटें काफी कम आएँगी. 

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