माननीयों को पुरानी पेंशन तो कर्मचारियों से परहेज क्यों
अगर नई पेंशन योजना इतनी ही अच्छी है तो, माननीयों को लेने में परहेज क्यों है।;
सत्यपाल सिंह कौशिक
OPS : संविधान की अवधारणा ही है, "हम भारत के लोग।" इसमें कहीं भी मैं शब्द का उल्लेख नहीं है। लेकिन सरकारें हैं कि, "अहं ब्रह्मास्मि" को ही सब कुछ मानती हैं। अपना भला होना चाहिए, चाहे जैसे भी हो। लेकिन वह व्यक्ति जो 60 वर्ष की उम्र में सरकार का सहयोग करके आया हो, उसके विषय में यह सरकारें नहीं सोचती हैं। अपने लिए पुरानी पेंशन की बात हो तो माननीयों को सब सही लगता है, लेकिन वहीं सरकारी कर्मचारियों के पुरानी पेंशन की बात हो तो इन माननीयों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगता। अपने लिए पुरानी पेंशन अच्छी है, लेकिन वही जब कर्मचारियों को देनी हो तो, पुरानी पेंशन बुरी हो जाती है। अपने लिए माननीयों को एक नहीं, दो-दो, तीन-तीन पेंशन चाहिए और वही जब कर्मचारियों को देने की बात आती है तो एक पेंशन भी नहीं दे पाती है सरकार।
माननीयों का हाल तो यह है कि, यदि कोई विधायक बाद में सांसद बन जाए, तो उसे विधायक की पेंशन के साथ ही लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता भी मिलता है। अब वही सांसद बना माननीय अगर केंद्रीय मंत्री बन जाए तो, उसे विधायक की पेंशन, सांसद की पेंशन और साथ ही मंत्री पद का वेतन और भत्ता मिलता है। मतलब एक ही व्यक्ति को तीन प्रकार का लाभ।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि, यदि कोई व्यक्ति केवल एक ही दिन के लिए सांसद या विधायक बन जाए तो भी उसे पूरी उम्र पुरानी पेंशन मिलती है और अन्य सुविधाएं मिलती हैं।
अब देखिए, रेल मंत्रालय ने वरिष्ठ नागरिक, मान्यता प्राप्त पत्रकार, युवा, किसान, सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड, भारत सेवा दल, रिसर्च स्कॉलर्स, पदक विजेता शिक्षक व खिलाड़ियों सहित करीब तीस से ज्यादा कैटेगरी के लोगों को टिकटों पर मिलने वाली 30 प्रतिशत की छूट बंद कर दी है, तो वहीं विधायक और सांसदों को एसी सेकंड टियर में एक सहायक के साथ असीमित यात्रा कूपन दिया जाता है।
जनसूचना के मुताबिक, दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा के 4796 पूर्व सांसद पेंशन ले रहे हैं।इनकी पेंशन पर हर साल 70 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इनके अलावा 300 पूर्व सांसद ऐसे हैं, जिनका निधन हो चुका है और उनके परिवार वालों को पेंशन मिल रही है। आर्थिक रूप से समृद्ध कई पूर्व सांसद ऐसे हैं, जो पेंशन का लाभ ले रहे हैं। सांसद-विधायकों की पेंशन का विरोध इसलिए भी किया जाना चाहिए क्योंकि इनके पास पहले से ही काफी संपत्ति होती है। ये सरकार में रहें या विपक्ष में अपनी आने वाली पीढ़ियों की व्यवस्था कर ही लेते हैं। तो वहीं 4 साल की नौकरी करने वाला अग्निवीर (सैनिक) हो या बच्चों का भविष्य संवारने वाला शिक्षक किसी को भी पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिलता। सरकार के अनुसार, इनके लिए नई पेंशन योजना ही मुफीद है। सरकारी कर्मचारी अपनी पूरी जवानी सरकार का सहयोग करता है। रोज औसतन 7-8 घण्टे तो कभी कभी विशेष परिस्थितियों में 24 घंटे काम करता है। औसतन एक नियमित कर्मचारी 50 से 60 हजार महीने की नपी-तुली तनख्वाह पाता है। तनख्वाह पाने से पहले ही खर्चों की पूरी लिस्ट तैयार रहती है। किसी तरह महीने के अंतिम तक जाते-जाते, बमुश्किल कुछ रुपए ही बचा पाता है। इसी तरह उसकी पूरी उम्र बीवी-बच्चों की ख्वाहिशें और उनको अच्छी परवरिश देने में ही कट जाती है। सभी की तमाम जरूरतों को पूरा करने और जिम्मेदारियों से लड़ते-लड़ते एक दिन रिटायर हो जाता है। फिर सरकार उसके ही पैसे से काटकर हर महीने जमा की हुई कुछ रकम देती है, और फिर उसको अपने आगे की जिंदगी गुजारने के लिए जरूरत होती है पेंशन की (जो 2005 से पहले तनख्वाह की आधी होती थी), लेकिन अब उसको पेंशन मिलती है, किसी महीने में 1000 तो किसी महीने में 2000, अब ऐसी परिस्थितियों में इस महंगाई में उसका जीवन-यापन कैसे हो, यह विचारणीय है। लेकिन माननीयों को इस बात से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि उनको तो पुरानी पेंशन मिल ही रही है। जब अपने हित की बात आएगी तो माननीय सांसद-विधायक अपनी मेजें थपथपाकर अपनी बातों को मनवा लेंगे।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि, यदि नई पेंशन व्यवस्था इतनी ही अच्छी है तो माननीय सांसद-विधायको, को इससे परहेज क्यों है? जिस तरह कर्मचारियों को नई पेंशन दी जा रही है। उसी तरह इनको भी सहर्ष भाव से नई पेंशन को स्वीकार करना चाहिए। और समानता का भाव प्रदर्शित करना चाहिए। यदि माननीयों को पुरानी पेंशन ही चाहिए तो इस पेंशन का लाभ कर्मचारियों को भी मिलना चाहिए।