समाज के मैल और फोड़े, तुम ख्वामखाह मे मैल और फोड़े को छूने की गलती ना कर बैठना!
सुनील कुमार मिश्रा
चीन के संत लाओत्से से हर वक्त लोग आग्रह करते कि जो आपने "जाना" है उसको लिख दीजिये। लाओत्से कहता 👉उस के कोई तय मार्ग नही है, कोई पदचिन्ह नही है जिनको देखकर उस तक पहुंचने का मार्ग तय किया जा सके। आकार और नाम से परे जिसका अस्तित्व हो उस पर कुछ भी लिखना समाज मे भ्रम पैदा करेगा और लोगों के आग्रह को टाल देता।
एक दिन जब वह राज्य छोड़कर जा रहा था और राजा को खबर लग गई। तो राज्य की सीमा पर चुंगी नाके पर उसको रोक लिया गया। राजा का आदेश हुआ कि जब तक 👉तुमने जो जाना है उसको लिख कर चुंगी अदा नही कर देते, नही जा सकते। मजबूरी मे चुंगी नाके मे उसने एक किताब लिखीं और नाम दिया👉"ताओ ते चिंग", ताओ-धर्मिकों का कहना है कि लाओत्से ने प्रकृति के जिन स्वरुपों और मार्गों की चर्चा की है वह👉सत्य, धर्म और समस्त ब्रह्माण्ड ऊर्जा स्त्रोत के अस्तित्व का है।
भारत मे लाओत्से पर सबसे पहले ओशो ने बोला और ताओ के रहस्यों को समाज के सामने रक्खा। उसके बाद ताओ पर बहुत सारे लोगो ने बोला और लिखा, लेकिन जो व्याख्या ओशो ने ताओ की ओशो ने की वो अनमोल है..👇
लाओत्से (चीनी संत)कहते है👉जो अपने पंजो के बल खड़ा होता है वह दृढ़ता से खड़ा नही होता, जो अपने कदमो को तानता है वह ठीक से नही चलता, जो अपने को दिखाता फिरता है वह वस्तुतः दीप्तवान नही है, जो स्वयं अपना औचित्य बताता है वह विख्यात नही है, जो अपनी ढींग हांकता है वह श्रेय से वंचित रह जाता है, जो घमंड करता है वह लोगो का अग्रणी नही होता। ताओ(मूल धर्म, प्रकृति का मूल स्वभाव) की दृष्टि मे उन्हे समाज के तलछट(द्रव पदार्थ के नीचे बैठनेवाला मैल), और फोड़े कहते है वो जुगुप्सा (निंदा, बुराई) पैदा करने वाली चीजें है, इसलिए ताओ (मूल धर्म अस्तित्व) का प्रेमी उनसे दूर रहता है...
लेकिन यहाँ भी लाओत्से एक महत्वपूर्ण बात कहता है☛तुम कुछ ना करना, तुम तो ठीक वैसे ही बन जाओ जैसे हवा 👉किसी की बातों से वायु ना मार्ग बदलती है और ना अपनी गति। ठीक उस भांति ही तुम अप्रभावित रह जाना। क्योंकि लाओत्से का मानना है कि ऐसा व्यक्तित्व अमृत को भी जहर बना लेता है और प्रकृति स्वयं उसकी निकासी का मार्ग तैयार कर रही होती है। तुम ख्वामखाह मे मैल और फोड़े को छूने की गलती ना कर बैठना.