धनखड़ की खामोशी करेगी जबरदस्त विस्फोट ?

धनखड़ कोई आम नेता नहीं हैं। उनका राजनीतिक इतिहास बताता है कि वे टकराव से डरते नहीं, बल्कि उसका सटीक जवाब देना जानते हैं।;

Update: 2025-08-01 14:31 GMT

महेश झालानी, वरिष्ठ पत्रकार 

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की रहस्यमयी चुप्पी अब केवल एक संवैधानिक मर्यादा नहीं रही। यह चुप्पी अब सियासी गलियारों में चर्चा का केंद्र बन चुकी है। जब कोई इतना मुखर, स्पष्टवादी और तेजस्वी नेता अचानक से शांत हो जाए, तो समझा जाना चाहिए कि पानी के नीचे कुछ बड़ा पक रहा है। राजनीतिक संकेत साफ कह रहे हैं कि धनखड़ एनडीए को भीतर से चुनौती देने की तैयारी में हैं।

धनखड़ कोई आम नेता नहीं हैं। उनका राजनीतिक इतिहास बताता है कि वे टकराव से डरते नहीं, बल्कि उसका सटीक जवाब देना जानते हैं। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल रहते हुए उन्होंने ममता बनर्जी को जिस प्रकार खुली चुनौती दी, वह उनकी कार्यशैली का परिचायक है। वे कभी ‘गौरवशाली चुप्पी’ में विश्वास नहीं करते रहे । लेकिन आज उनका यह मौन, वास्तव में एक बगावत की प्रस्तावना बनता दिख रहा है।

जगदीप धनखड़ अनुकूल समय का इंतजार कर रहे है। समय आने पर वे तुरुप का इक्का निकालकर उन लोगो को कठघरे में खड़ा कर सकते है जिनकी वजह से उन्हें इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा ।

वे इस बात पर भी गम्भीरतापूर्वक विचार कर रहे है कि कहीं सतपाल मलिक की तरह उनका कारतूस फुस्स साबित नही हो जाए । अपना नफा और नुकसान भी तोलना धनखड़ को बखूबी आता है । वे जानते है कि सत्ता में ऐसे लोग भी बैठे है जो उनको नेस्तनाबूद करने के लिए सीबीआई और ईडी को पीछे लगा सकते है । सभी बिन्दुओ पर विचार भी किया जा रहा है और अपने शुभचिंतको से निरन्तर विचार विमर्श भी जारी है ।

एनडीए की मौजूदा राजनीति में जहां एक नेता के इर्द-गिर्द सत्ता का पूरा चक्र केंद्रित हो चुका है, वहां स्वतंत्र विचार रखने वाले नेताओं के लिए स्थान लगभग समाप्त हो गया है। धनखड़ जैसे व्यक्ति के लिए यह घुटनपूर्ण स्थिति असहनीय हो सकती है। यही कारण है कि अब उनके इर्द-गिर्द की गतिविधियां असामान्य रूप से तेज़ हो गई हैं। न तो वे भाजपा नेतृत्व से प्रत्यक्ष संवाद में हैं, न ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में सक्रिय। खबर मिल रही है कि वे भीतर ही भीतर अपने लिए अगली लड़ाई की जमीन तैयार कर रहे हैं।

सियासी गलियारों में कानाफूसी है कि धनखड़ न केवल भाजपा के असंतुष्ट वर्ग से संवाद कर रहे हैं, बल्कि विपक्षी नेताओं, विशेष रूप से कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के कुछ प्रमुख चेहरों के साथ परोक्ष व अपरोक्ष संपर्क में हैं। यह संवाद फिलहाल अनौपचारिक है । लेकिन इसका स्वरूप गंभीर होता जा रहा है। विपक्ष की नज़र में धनखड़ वह चेहरा बन सकते हैं जो संविधान, मर्यादा और भाजपा के ‘भीतर के विद्रोह”, इन तीनों का संतुलन बनाकर प्रस्तुत किया जा सकता है। चोट खाए धनखड़ को भी इससे कोई गुरेज नही होने वाला है । उनके मन मे जबरदस्त ज्वालामुखी धधक रही है जो वक्त आने पर जलजला पैदा अवश्य करेगी ।

सूत्रों से पता चला है कि कुछ राजनीतिज्ञ धनखड़ के निकट सम्पर्क में है । लेकिन धनखड़ सुन सबकी रहे है । लेकिन वे क्या करने वाले है, इसकी भनक किसी को लगने नही दे रहे है । धनखड़ बहुत ही घाघ राजनीतिज्ञ माने जाते है । उनको कब हंसना और कब आंखे दिखानी है, यह बखूबी जानते है । इसी खूबी के चलते भाजपा की विचारधारा के इतर होते हुए भी वे न केवल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बन गए बल्कि उप राष्ट्रपति की कुर्सी पर भी विराजमान होगये है । मोदी और शाह का करीबी बनने का “गौरव” हर किसी को नसीब नही होता है । लेकिन धनखड़ की अति महत्वाकांक्षा की वजह से वे मोदी और शाह की आंखों की किरकिरी बन गए थे ।

भविष्य की तस्वीर थोड़ी थोड़ी साफ दिखाई दे रही है। यदि धनखड़ भाजपा से खुलकर अलग होते हैं तो 2027 के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष उन्हें अपना प्रत्याशी बना सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह एनडीए के लिए सिर्फ एक चुनावी चुनौती नहीं, बल्कि एक गहरे मनोवैज्ञानिक झटके की तरह होगा। धनखड़ इस समय जितने शांत हैं, उतने ही तैयार भी हैं। उनकी चुप्पी में गूंज है, और उनकी आंखों में वो भाषा है जो सत्ता की सीमाओं को चुनौती देना जानती है। यह बात जितनी जल्दी भाजपा नेतृत्व समझे, उतना ही अच्छा। क्योंकि यदि वे जागे नहीं, तो जल्द ही उन्हें अपने ही आंगन से उठती एक बगावत की आवाज़ सुनाई दे सकती है । उस बगावत का नाम होगा - जगदीप धनखड़। क्योंकि इतिहास गवाह है । कुछ तूफान शब्दों से नहीं, चुप्पियों से जन्म लेते हैं।

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