जूता कांड: CJI ने दिखाई उदारता, BCI ने सिखाया अनुशासन का पाठ – आरोपी वकील की वकालत पर रोक

जूताकांड के बाद सीजेआई के कहने पर पुलिस ने आरोपी वकील को छोड़ दिया है. उनका जूता और अन्य सामान भी लौटा दिया है;

Update: 2025-10-07 03:59 GMT

देश की सर्वोच्च अदालत में हाल ही में जो हुआ, उसने न केवल न्यायपालिका की गरिमा को चुनौती दी, बल्कि यह भी साबित किया कि कानून के मंदिर में अनुशासन से बड़ा कोई अधिकार नहीं होता।

एक वकील द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर जूता फेंकने की शर्मनाक घटना ने हर किसी को चौंका दिया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जिस तरह से CJI ने माफी स्वीकार की और BCI ने कार्रवाई की, वह लोकतंत्र में संस्थाओं की परिपक्वता और संतुलन का जीवंत उदाहरण बन गया।

 क्या हुआ था कोर्ट में?

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, एक वकील ने नाराज़गी में आकर मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंका। यह एक ऐसा कृत्य था जो ना केवल अदालत की गरिमा के खिलाफ था, बल्कि पूरे वकील समुदाय को शर्मिंदा करने वाला था।

हालांकि, जब आरोपी वकील को कोर्ट में पेश किया गया, उसने बिना शर्त माफी मांग ली। मुख्य न्यायाधीश ने संवैधानिक मर्यादा और न्यायिक गरिमा को बनाए रखते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाया और उसे क्षमा कर दिया।

BCI ने नहीं दी ढील – वकालत पर रोक

जहां सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी कार्यवाही को वहीं समाप्त किया, वहीं बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस घटना को न्यायिक अनुशासन के उल्लंघन के रूप में देखा और स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की।

BCI का स्पष्ट फैसला:

“कोर्ट परिसर में ऐसा अमर्यादित व्यवहार, भले ही माफ किया गया हो, पेशे की गरिमा को चोट पहुंचाता है। इसलिए आरोपी वकील की वकालत पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाती है।”

BCI ने यह भी स्पष्ट किया कि यह रोक अस्थायी है, लेकिन इसके बाद अनुशासनात्मक जांच की जाएगी।

 इस कार्रवाई के मायने

माफी का मतलब सजा से छूट नहीं:

CJI ने संवेदनशीलता दिखाई, लेकिन BCI ने यह संदेश दिया कि पेशेवर आचरण से कोई समझौता नहीं होगा।

वकालत केवल अधिकार नहीं, जिम्मेदारी भी:

वकील अदालत का हिस्सा होते हैं — उनका आचरण न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता तय करता है।

संस्थाओं का संतुलन:

जहां एक ओर न्यायपालिका ने दया दिखाई, वहीं BCI ने अनुशासन को प्राथमिकता दी। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है।

सबक क्या है?

न्यायपालिका पर हमला, दरअसल कानून पर हमला है।

माफी मिल सकती है, लेकिन जिम्मेदारी से भागा नहीं जा सकता।

कानूनी पेशा एक विशेषाधिकार है — इसका दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

 निष्कर्ष

इस घटना ने पूरे देश के वकीलों को चेताया है कि सम्मान अर्जित करना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है उसे बनाए रखना। CJI की माफी ने इंसानियत का उदाहरण पेश किया, जबकि BCI की सख्ती ने पेशे की मर्यादा को थामे रखा।

यह केवल एक मामला नहीं, बल्कि एक नज़ीर (precedent) है — जो बताता है कि अदालतें बड़े दिल से चलती हैं, लेकिन पेशा अनुशासन से।

आपकी राय क्या है? क्या BCI की कार्रवाई उचित थी? क्या इस तरह के मामलों में आजीवन वकालत पर रोक लगनी चाहिए? कमेंट में अपनी बात जरूर रखें।


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