राजस्थान में राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने फंसाया पेंच, दो सीटें कांग्रेस जीतने का कर रही है दावा

Update: 2020-03-18 15:51 GMT

जयपुर: राजस्थान में राज्यसभा की तीन सीटें हैं और इन सीटों पर इस बार निर्विरोध निर्वाचन नहीं बल्कि चुनाव से ही फैसला होगा. दरअसल, बीजेपी की तरफ से ओंकार सिंह लखावत का नाम वापस नहीं लिए जाने के बाद यह स्थिति बनी है. अब चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के दो-दो प्रत्याशी मैदान में हैं. दोनों ही पार्टियां इस बार अपना दमखम परखने की तैयारी कर रही हैं. कांग्रेस जहां अपने दोनों प्रत्याशियों की जीत को लेकर आश्वस्त दिख रही है. वहीं बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है.

कहा जाता है कि चुनाव भले किसी भी स्तर का हो न तो वह आसान होता है और न ही उसे हल्के में लिया जा सकता है. राजस्थान में हो रहे राज्यसभा चुनावों पर भी यही बात लागू होती दिख रही है. चार साल बाद प्रदेश में एक बार फिर राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग होना तय हो गया है. इससे पहले साल 2016 में चार सीटों पर चुनाव के वक्त वोटिंग हुई थी. लेकिन इस बार यह परिस्थिति बीजेपी की तरफ से चुनाव मैदान में दोनों प्रत्याशियों को बरकरार रखने के चलते बनी है. कांग्रेस की तरफ से एआईसीसी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी को प्रत्याशी बनाया है. जबकि बीजेपी ने राजेन्द्र गहलोत और ओंकार सिंह लखावत को प्रत्याशी बनाया है.

चुनाव में वोटों के गणित के सवाल पर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया कहते हैं कि गणित कुछ भी हो लेकिन इतना तय है कि बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. इसलिए पार्टी सरकार के कामकाज को परखने के नजरिये से राज्यसभा चुनाव में विधायकों का रुख परखना चाहती है. कटारिया कांग्रेस और सरकार का दमखम परखना चाहते हैं. वहीं, सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी बीजेपी पर पलटवार करते दिख रहे हैं. जोशी कहते हैं कि कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही बीजेपी को कहीं खुद के विधायकों की ही बाड़ेबंदी न करनी पड़ जाए?

हालांकि, इस चुनाव को बीजेपी के प्रत्याशी ओंकार सिंह लखावत भी चुनौतीपूर्ण मानते हैं और वे कहते हैं कि इस बार उनकी पार्टी विपक्ष में है. उनके पास विधायकों की संख्या भी स्पष्ट बहुमत से कम है, लेकिन फिर भी उन्हें संगठन पर पूरा भरोसा है. जबकि, लखावत कहते हैं कि मौजूदा सरकार के कामकाज से कांग्रेस विधायकों के साथ ही निर्दलीय विधायकों में भी असंतोष है. इस चुनाव में कांग्रेसी खेमे की पूरी परख हो जाएगी. साथ ही, लखावत ने कहा कि उनके लिए यह चुनाव गणित का विषय नहीं बल्कि इतिहास और साहित्य का विषय है.

उधर, वोटों के गणित के हिसाब से कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों की जीत का दावा करते हुए सरकारी उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी कहते हैं कि उनकी पार्टी ने तो बीजेपी से राज्य की परम्परा का हवाला देते हुए एक प्रत्याशी का नाम वापस कराने का आग्रह भी किया था. चौधरी ने कहा कि कांग्रेस के प्रत्याशियों के पास 125 वोट का पूरा गणित है और बीजेपी 75 वोट के साथ भी अगर अपना प्रत्याशी मैदान में रख रही है तो इससे बीजेपी की सोच भी उजागर होती है.

चार साल बाद राजस्थान में राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग की स्थिति आई है, लेकिन इस चुनाव में पार्टियों की खेमेबंदी सिर्फ चुनाव तक ही सीमित नहीं दिख रही. बल्कि एक दूसरे के खेमों की भीतरी गुटबाजी और अपनी एकजुटता को परखने की कवायद ज्यादा दिख रही है. इस चुनाव में कामयाबी के लिए दोनों पार्टियों के सामने स्थिति भी अलग-अलग है. चुनाव में बीजेपी जीतना चाहती है तो उसे कांग्रेस कैम्प में भारी सेंधमारी करनी होगी. जबकि कांग्रेस अगर जीतना चाहती है तो उसे मजबूती से अपनी किलेबंदी बचाए रखनी होगी.

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