वेणुगोपाल और सचिन पायलट की मौजूदगी में गहलोत का नेताओं को खरी खरी सुनाना मतलब !

ऐसे कई मौके आए जब आलाकमान ने अपना अधिकार उपयोग करने की कोशिश की मगर शायद गहलोत की मर्जी के बिना कुछ नही कर पाए।

Update: 2023-08-12 11:18 GMT

जब से याने 25 मार्च से जिस दिन अशोक गहलोत के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर सोनिया गांधी के निर्देश पर जयपुर में आयोजित होने वाली विधायक दल की बैठक में आब्जर्वर बनकर आए मल्लिकार्जुन खड़गे और अजीत माकन की बैठक को बहिष्कार किया गया था तभी से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पद को लेकर काफी गंभीर और सक्रिय और सजग हैं। भले ही उन्होंने यह कह दिया हो कि मैं मुख्यमंत्री को छोड़ना चाहता हूं लेकिन कुर्सी मुझे नहीं छोड़ने देती।

अब इस बात में कितनी सच्चाई है यह आसानी से कहा और समझा जा सकता है। जहां तक बात आलाकमान की की जाए तो कांग्रेस आलाकमान भी सब कुछ समझते हुए वास्तविकता अपनाने में नासमझ बनकर बैठा हुआ है। मोटे तोर पर बात की जाए तो मैं तो राजस्थान में कहीं बार अटकलें लगने के बावजूद भी मंत्रिमंडल में कोई बदलाव हुआ और न ही गहलोत के विरोधी समझे जाने वाले सचिन पायलट को किसी पद से नवाजा गया है। 25 मार्च की घटना के मामले में जिन नेताओं को दोषी माना गया था उनको नोटिस देने के बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं होना गहलोत का दबाव ही माना जाता है। ऐसे कई मौके आए जब आलाकमान ने अपना अधिकार उपयोग करने की कोशिश की मगर शायद गहलोत की मर्जी के बिना कुछ नही कर पाए।

लगभग 3 महीने पहले मल्लिकार्जुन के आवास पर गहलोत और पायलट को संतुष्ट करने के लिए बुलाई गई बैठक के बाद के सी वेणुगोपाल ने दोनों को एक साथ चुनाव लड़ने की बात तो जरूर कह दी लेकिन गहलोत और पायलट ने उसे समय कुछ नहीं कहा। खैर इस तरीके कई मौके आए मगर आला कमान कुछ कम नहीं उठा पाया। अगर बात की जाए कल के सी वेणु गोपाल और प्रदेश कांग्रेस प्रभारी रंधावा की मौजूदगी में आयोजित बैठक की तो जिस तरह से गहलोत ने रघु शर्मा और प्रताप सिंह खाचरियावास सहित दो अन्य नेताओं को खरी खरी सुना कर शायद आलाकमान को यह आवाज करा दिया कि आज भी उनके सामने कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं करता।

शायद सचिन पायलट की मौजूदगी मैं उनको कुछ ऐसा आभास हुआ होगा की आलाकमान अफेयर्स कमेटी के माध्यम से कुछ थोपी हुई राजनीति करना चाहता है इसी को लेकर उन्होंने जिस कदर गुस्सा करके धुरंधर नेताओं को खरी खोटी सुना कर चुप कर दिया उसके बाद भले ही वेणुगोपाल नाराजगी के साथ वापस दिल्ली लौट गए हो मगर उन्होंने जो दृश्य देखा उस से उनके मस्तिष्क में भी राजस्थान की राजनीति का कोई रोड मैप अवश्य रेखंकित हुआ होगा। मगर यह निश्चित है कि या तो जिन लोगों को कल खरी खरी सुनाई गई व्वे पिछले दरवाजे से अपनी बात आलाकमान तक पहुंचाएंगे या फिर राजस्थान है वही सब कुछ होगा जो सिर्फ अशोक गहलोत चाहेंगे! देखने वाली बात ही होगी इस बार क्या कुछ आधा का मन कर पाएगा या फिर वह सब कुछ वैसा के वैसा ही राजस्थान में चलता रहेगा। जो अब तक चलता आ रहा है।

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