यूपी की बदायूं लोकसभा सीट और मुस्लिम राजनीती

UP's Badaun Lok Sabha seat and Muslim politics

Update: 2023-08-24 11:33 GMT

अंसार इमरान 

कुछ लोगों को लगता होगा कि हिंदू मुसलमान की राजनीति के बदले में 90 के दशक में जो ओबीसी की राजनीति की शुरुआत हुई उसकी वजह से मुसलमान को राजनीतिक तौर पर बहुत लाभ हुआ होगा मगर शायद वह लोग गलत हैं! देखने में तो कुछ समय के लिए लग सकता है कि कुछ मुसलमान नेताओं को सीटों के रूप में फायदा हुआ है या यूं कह लीजिए कि जो कभी कांग्रेस का हिस्सा थे उन्होंने अपने आप को इस राजनीति में तब्दील कर लिया उनको सीटों के रूप में फायदा पहुंचा।

मगर जब लंबे समय की राजनीति को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि मुसलमान अभी भी राजनीतिक तौर पर हाशिये पर ही है। उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा सीट है बदायूं! यहां की राजनीति कभी वहां के कद्दावर नेता सलीम इकबाल शेरवानी के इर्द-गिर्द घूमती थी। कई दफा वह यहां से लोकसभा के सांसद भी रहे हैं।

सब कुछ सही चल रहा था मगर फिर 2009 का दौर आता है। अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को राजनीति में फिट करने के लिए सेफ सीट का चुनाव किया जाता है और उसमें सबसे बेहतर उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट होती है। वजह साफ़ यहां पर सबसे बड़ी गिनती यादव समुदाय की है उन्हीं के बराबर या थोड़ी बहुत कम मुसलमान की आबादी है।

इस कांबिनेशन से धर्मेंद्र यादव को यहां से चुनाव जीतने में कोई मसला नहीं होता। सलीम इकबाल शेरवानी भी यहां से सपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ते और जीते थे तो इसे सपा का गढ़ कहा जाता था। फिर 2009 की उठा पटक में समाजवादी पार्टी ने सलीम इकबाल शेरवानी को यहां से सीट देने से इनकार कर दिया और धर्मेंद्र यादव को चुनाव लड़वाने की घोषणा कर दी और उम्मीद के मुताबिक धर्मेंद्र यादव यहां से चुनाव जीत भी जाते हैं।

मगर उसके बाद होता यह है कि जो सीट कभी मुस्लिम राजनीति का केंद्र होती थी वहां से मुस्लिम राजनीति सांसदी और विधायिकी से हटकर केवल पार्षदी और जिला पंचायत तक ही अटक कर रह गई।

मुसलमान को राजनीतिक तौर पर हाशिये पर धकेलना का काम केवल किसी एक खास पार्टी ने या उसकी डर की वजह से दूसरी पार्टी ने नहीं किया है बल्कि उन पार्टियों का भी उतना ही योगदान दिया है जिनको आज तक मुसलमान अपना हितेषी समझता आ रहा है।

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